भारत के सबसे ग़रीब राज्यों में शुमार किए जाने वाले उत्तर प्रदेश की महिलाएं क्या वास्तव में संपन्न हो रही हैं, जहां का माहौल अभी भी ‘पितृसत्तात्मक और सामंती’ है? राज्य की वर्तमान आबादी क़रीब 24 करोड़ है और वोटरों की संख्या 15 करोड़ के आसपास है. इनमें महिला वोटरों की तादाद क़रीब सात करोड़ है.
दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं की एक सभा में कहा कि उन्हें भरोसा है कि वे सब अपनी पार्टी को फिर से चुनेंगी. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने महिलाओं को सुरक्षा प्रदान की और उन्हें मज़बूत बनाने के लिए काम किया है.उनके अनुसार, बीजेपी के राज में यूपी ऐसा स्थान बन गया जो “महिलाओं के लिए सुरक्षित और अवसरों से भरपूर है.’
ग़रीबी से हर कोई प्रभावित होता है, लेकिन महिलाओं पर इसका प्रभाव कहीं अधिक होता है
हालांकि चिंता की कई वजहें भी हैं. हाल ही में पहली बार जारी हुए बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक (एमपीआई) में पाया गया कि राज्य के 24 करोड़ लोगों में से 44 फ़ीसदी लोग अब भी पर्याप्त पोषण से वंचित हैं. लाखों बच्चे स्कूल नहीं जाते.राज्य में माताओं और शिशुओं की मृत्यु दर बहुत ख़राब है. वहीं राज्य के 32 फ़ीसदी लोगों के पास स्वच्छता की सुविधाओं का अभाव है.ग़रीबी से हर कोई प्रभावित होता है.
लेकिन महिलाओं पर इसका प्रभाव कहीं अधिक होता है. ख़ासकर पितृसत्तात्मक समाज में. साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28046 मामले दर्ज किए गए.जिसमें से अकेले राजस्थान में कुल 5,310 मामले दर्ज हुए. जबकि दूसरे स्थान पर मौजूद उत्तर प्रदेश में बलात्कार के 2,769 मामले दर्ज हुए.
राज्य में माताओं और शिशुओं की मृत्यु दर बहुत ख़राब है
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने तो बक़ायदा महिलाओं को केंद्रित करते हुए ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ नाम का एक अभियान चला रखा है. अक्टूबर में उन्होंने एलान किया था कि उनकी पार्टी इस बार 40 फ़ीसदी महिला उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट देगी.कांग्रेस ने इसके अलावा वादा किया है कि यदि वो सत्ता में आई तो महिलाओं को नौकरियों में आरक्षण देगी. साथ ही महिलाओं को बस में मुफ़्त यात्रा करने की सुविधा मिलेगी. उन्हें इलेक्ट्रिक स्कूटर और स्मार्टफ़ोन भी दिए जाएंगे.
महिलाओं की समस्याएं शायद ही कभी चुनावी एजेंडा बन पाती हैं
जेंडर से जुड़े मुद्दों पर लगभग चार दशकों से काम कर रही प्रोफ़ेसर वर्मा कहती हैं, कि जब महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की बात आती है तो बीजेपी अकेली नहीं है और भी पार्टियों में ऐसा ही होता है.वो कहती हैं, “सभी राजनीतिक दल महिलाओं के साथ ग़लत व्यवहार करते हैं. कोई निर्दोष नहीं है. मैंने सभी दलों को ताक़तवर अपराधियों को बचाते देखा है.
हालांकि दूसरे दलों को जनता की राय की परवाह है और उन्हें शर्म आ सकती है. लेकिन इस सरकार को इसकी परवाह नहीं है.”वे कहती हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की महिलाएं सशक्त हैं, तो ये “हमारे घावों पर नमक छिड़कने जैसी बात है.”प्रोफ़ेसर वर्मा कहती हैं कि महिलाओं की समस्याएं शायद ही कभी चुनावी एजेंडा बन पाती हैं. वो कहती हैं कि इसका कारण यह है कि ‘हमारे यहां जाति और धर्म के आधार पर वोट डाले जाते हैं.‘
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