भोजपुरी, मगही, अंगिका भाषा-भाषी झारखण्ड की सभ्यता और संस्कृति का सम्मान करते हैं-कुशवाहा
सिर्फ भोजपुरी,मगही और अंगिका भाषा-भाषियों को केंद्र बिंदु बनाकर राज्य में बाहरी-भीतरी की राजनीति की जा रही है। शैलेन्द्र महतो कह रहे हैं, कि बिहार की भाषा भोजपुरी, मगही, अंगिका को झारखण्ड में जबरदस्ती थोपा गया है। वे भूल रहे हैं, कि साल 2000 के पहले यह बिहार ही था और झारखण्ड में भोजपुरी, मगही, अंगिका भाषा-भाषियों की संख्या बहुतायत है और ये झारखण्ड की सभ्यता और संस्कृति का सम्मान करते है। भोजपुरी जन जागरण अभियान के झारखण्ड प्रदेश महासचिव अरविन्द कुशवाहा ने आज एक प्रेस बयान जारी करते हुए उक्त बातें कहीं.
इन भाषा-भाषियों ने झारखण्ड को सजाने-संवारने का काम किया है
उन्होंने कहा कि इनको इनका अधिकार हेमंत सोरेन सरकार ने नियोजन नीति में भोजपुरी, मगही और अंगिका भाषा को शामिल कर मिला है। शैलेन्द्र महतो जिनको शोषक, दिकू या प्रवासी कह रहे हैं ये इनकी मानसिकता को दर्शा रहा है। लोग भूले नहीं कि इन्ही भोजपुरी, मगही और अंगिका भाषा-भाषियों ने झारखण्ड को सजाने-संवारने का काम किया है। ये बाहरी या प्रवासी नहीं हैं. राज्य की स्थापना से बहुत पहले से ये राज्य में रह रहे हैं. जब साल 2000 में झारखण्ड राज्य की स्थापना हुई, तो इन भाषा-भाषियों को भी उतना ही अधिकार मिलना चाहिए, जितना कि अन्य सभी को मिल रहा है।
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शैलेन्द्र महतो के बयान का विरोध करते हैं
कुशवाहा ने कहा कि शैलेन्द्र महतो उलगुलान के नाम पर बाहरी-भीतरी की राजनीति न करें। झारखण्ड की अस्मिता इन भाषा-भाषियों के चलते खतरे में नहीं है। सभी भोजपुरी,अंगिका, मगही और मैथिली भाषा-भाषी एकजुट होकर शैलेन्द्र महतो के बयान का विरोध करते हैं. कुशवाहा ने कहा कि पूर्व सांसद अपने उक्त बयान को वापस लें और माफी माँगें, अन्यथा भोजपुरी लोग उनके घर का घेराव करेंगे और पुतला दहन करेंगे. इसे राजनीतिक रंग देने वालों की कमी नहीं है झारखण्ड में. आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि पूर्व सांसद की क्या कोई प्रतिक्रिया आती है ?
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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