भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के मुताबिक किसी एक खास साल में केंद्र सरकार के वित्तीय ब्योरे को संघीय बजट कहते हैं. संविधान के मुताबिक सरकार को हर वित्त वर्ष की शुरुआत में संसद में बजट पेश करना होता है.वित्त वर्ष की अवधि मौजूदा वर्ष के 1 अप्रैल से अगले साल के 31 मार्च तक होती है. सरकार की ओर पेश वित्तीय ब्योरे में किसी खास वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की अनुमानित प्राप्तियों (राजस्व और अन्य प्राप्तियां) और खर्चे को दिखाया जाता है.सरल शब्दों में कहा जाए तो बजट अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार की वित्तीय योजना है. दरअसल इसके जरिये यह तय करने की कोशिश की जाती है सरकार अपने राजस्व की तुलना में खर्चे को किस हद तक बढ़ा सकती है.
किसी वर्ष के साल भर उत्पादन और सेवा के बाज़ार की कीमत को जीडीपी कहा जाता है.
यह कवायद इसलिए होती है क्योंकि उसे राजकोषीय घाटा का एक लक्ष्य हासिल करना होता है. यह लक्ष्य राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003 ) के तहत तय किया जाता है.देश में किसी साल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा बाजार कीमत को नॉमिनल जीडीपी कहते हैं. इसे बजट की बुनियाद या नींव कहा जा सकता है क्योंकि बगैर नॉमिनल जीडीपी जाने अगले साल का बजट बनाना संभव नहीं होगा.
बगैर राजस्व का अंदाजा लगाए सरकार यह तय नहीं कर पाएगी कि उसे किस योजना में कितना खर्च करना है.
राजकोषीय घाटा नॉमिनल जीडीपी के फीसदी में तय किया जाता है. राजकोषीय घाटा का जो लेवल तय होता है, सरकार उस साल वहीं तक कर्ज लेती है. अगर नॉमिनल जीडीपी ज्यादा होगी तो सरकार अपना खर्च चलाने के लिए बाजार से ज्यादा कर्ज ले पाएगी.नॉमिनल जीडीपी जाने बगैर सरकार यह तय नहीं कर सकती कि उसे राजकोषीय घाटा कितना रखना है और न ही वह यह पता कर सकती है कि आने वाले साल में सरकार के पास कितना राजस्व आएगा.बगैर राजस्व का अंदाजा लगाए सरकार यह तय नहीं कर पाएगी कि उसे किस योजना में कितना खर्च करना है.
बजट से पहले तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को अंतिम रूप दिया जाता है.
बजट बनाने में वित्त मंत्री के अलावा वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव अहम भूमिका निभाते हैं. इस दौरान हर रोज कई बार वित्त मंत्री से उनकी बजट के सिलसिले पर बातचीत होती है. बजट पेश करने से पहले विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों और उद्योग संगठनों के लोगों से भी वित्त मंत्री सलाह-मशविरा करते हैं. इन मुलाकातों में ये संगठन अपने-अपने सेक्टर को सुविधाएं और टैक्स राहत देने की मांग रखते हैं.बजट से पहले तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को अंतिम रूप दिया जाता है.
सरकार का आम बजट मूल रूप से उसके खर्चे और राजस्व (रेवेन्यू) का ब्योरा होता है. सरकार के खर्च में जनकल्याण योजनाओं में दिया जाने वाला फंड, आयात के खर्चे, सेना की फंडिंग, वेतन और कर्ज पर दिया जाने वाला ब्याज वगैरह शामिल होता है.जबकि सरकार टैक्स लगाने के साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र के कारोबारों से कमाई और बॉन्ड जारी कर राजस्व इकट्ठा करती है.इस बजट के दो हिस्से होते हैं- रेवेन्यू बजट और कैपिटल बजट. रेवेन्यू बजट में ही खर्च और राजस्व का ब्योरा होता है. रेवेन्यू प्राप्ति में टैक्स और गैर टैक्स स्रोत से हासिल रकम दिखाई जाती है.
जब सरकार के राजस्व से ज्यादा खर्च हो जाता है तो राजकोषीय घाटे की स्थित पैदा हो जाती है.
रेवेन्यू खर्च सरकार के हर दिन के कामकाज और नागरिकों को दी जाने वाली सेवाओं में लगा खर्च होता है. अगर रेवेन्यू खर्च रेवेन्यू प्राप्ति से ज्यादा होता है तो सरकार को राजस्व का घाटा होता है.कैपिटल बजट या पूंजी बजट सरकार की प्राप्तियों और उसकी ओर से किए गए भुगतान का ब्योरा होता है. इसमें जनता से लिया गया लोन ( बॉन्ड के जरिये), विदेश से और आरबीआई से लिया गया लोन शामिल होता है.वहीं पूंजीगत खर्च में मशीनरी, औजार, बिल्डिंग, हेल्थ सुविधा, शिक्षा पर किया गया खर्च शामिल होता है. जब सरकार के राजस्व से ज्यादा खर्च हो जाता है तो राजकोषीय घाटे की स्थित पैदा हो जाती है.
बजट बनाने मै पूरी गोपनीयता बरती जाती है.
चुनिंदा अधिकारी बजट दस्तावेज तैयार करते हैं. इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले सभी कंप्यूटरों को दूसरे नेटवर्क से डीलिंक कर दिया जाता है ताकि यह लीक न हो. बजट पर काम कर रहा स्टाफ करीब दो से तीन हफ्ते तक नॉर्थ ब्लॉक के दफ्तरों में ही रहता है. उनको बाहर आने की इजाजत नहीं होती.नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में लगे प्रिंटिंग प्रेस में बजट तैयार करने से जुड़े अफसर और कर्मचारी लगभग लॉक कर दिए जाते हैं. बजट बनाने की प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपने परिजनों तक से बातचीत करने या मिलने की इजाजत नहीं होती है.
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी, 2022 को आम बजट पेश करेंगी. आम बजट सुबह 11 बजे पेश होगा. निर्मला सीतारमण चौथी बार बजट पेश करेंगी.
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