संघर्ष निगरानी समूह एकलेड (आर्म्ड कंफ्लिक्ट लोकेशन ऐंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट) के आंकड़ों के मुताबिक म्यांमार देश अब पूरी तरह हिंसा की चपेट में है. ज़मीनी हालत के मुताबिक भी हिंसक संघर्ष अब कहीं ज़्यादा संगठित तौर पर देखने को मिल रहा है और अब यह शहरों तक पहुंच चुका है. पहले शहरी हिस्सों में सशस्त्र संघर्ष की स्थिति नहीं थी.इस संघर्ष में अब तक कितने लोगों की मौत हुई है, इसकी पुष्टि करना बेहद मुश्किल है लेकिन एकलेड ने स्थानीय मीडिया सहित दूसरी रिपोर्टों के आधार पर अनुमान लगाया है कि बीते एक साल के सैन्य शासन के दौरान म्यांमार में क़रीब 12 हज़ार लोग मारे गए हैं. म्यांमार में हिंसक संघर्षों में तेज़ी अगस्त, 2021 के बाद देखने को मिली है.
संघर्ष इतना ज़्यादा बढ़ चुका है कि अब स्थिति संघर्ष से कहीं ज़्यादा गंभीर गृह युद्ध तक पहुंच चुकी है.
म्यांमार में हाल के दिनों में सेना और संगठित लोगों के समूह के बीच हिंसक संघर्षों में तेज़ी आई है. सेना के ख़िलाफ़ हिंसक लड़ाई में ढेरों युवा शामिल हैं जो अपनी जान को जोख़िम में डालकर यह संघर्ष कर रहे हैं. एक साल पहले जुंटा के शासन पर काबिज होने के विरोध में यह संघर्ष हो रहा है. यह संघर्ष इतना ज़्यादा बढ़ चुका है कि अब स्थिति संघर्ष से कहीं ज़्यादा गंभीर गृह युद्ध तक पहुंच चुकी है.
सैन्य तख़्तापलट के बाद, सेना ने देश भर में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए जो कार्रवाई की, उसमें काफ़ी लोग मारे गए थे. एकलेड के मुताबिक इसके बाद से आम लोगों के साथ संघर्ष के चलते मरने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की प्रमुख मिचेल बाकेलेट ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा है कि म्यांमार के संघर्ष को अब गृह युद्ध कहा जाना चाहिए और देश में लोकतंत्र की वापसी के लिए अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को कहीं ज़्यादा मज़बूत क़दम उठाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि म्यांमार के ज़मीनी हालात विनाश की तरफ़ बढ़ रहे हैं और यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चुनौती बन चुका है लेकिन अब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय स्थिति को लेकर तात्कालिकता से गंभीर नहीं हुआ है.
एकलेड संस्था दुनिया भर में राजनीतिक हिंसा और विरोध प्रदर्शन संबंधी आंकड़े जमा करती है.
म्यांमार में सरकारी सेना के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले लोगों को सामूहिक तौर पर पीपल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ़) कहा जा रहा है, जो सशस्त्र नागरिक समूह का एक नेटवर्क है. जिसमें मुख्य तौर पर युवा शामिल हैं.18 साल की हीरा (वास्तविक नाम नहीं) ने अभी हाई स्कूल की अपनी पढ़ाई पूरी ही की थी लेकिन वे सैन्य तख़्तापलट के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गईं. उन्होंने अपने आगे की पढ़ाई को टालने का फ़ैसला लिया और मध्य म्यांमार में पीडीएफ़ की एक हाई प्रोफ़ाइल कमांडर बन चुकी हैं.
उन्होंने बताया कि पीडीएफ़ से जुड़ने का फ़ैसला उन्होंने तब लिया था जब विरोध प्रदर्शन करते हुए छात्र मया त्वे त्वेखाइंग की मौत हुई थी, मया को फ़रवरी, 2021 के विरोध प्रदर्शन के दौरान गोली मार दी गई थी. हीरा ने जब पीडीएफ़ सशस्त्र संघर्ष की ट्रेनिंग लेनी शुरू की तो उनके माता-पिता बेहद चिंतित थे लेकिन बेटी को उद्देश्य के प्रति गंभीर देखकर वे भी मान गए. एकलेड संस्था दुनिया भर में राजनीतिक हिंसा और विरोध प्रदर्शन संबंधी आंकड़े जमा करती है. यह संस्था ख़बरों के अलावा नागरिक संगठनों, मानवाधिकार संगठनों एवं स्थानीय और वैश्विक स्तर के संस्थाओं की मदद से सामरिक जानकारी वाली रिपोर्ट प्रकाशित करती है.
पीपल्स डिफ़ेंस फ़ोर्स में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं- किसान, घरेलू महिलाएं, डॉक्टर- इंजीनियर. ये सब लोग सैन्य सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं.
एकलेड के मुताबिक, संस्था की नीति मौतों की संख्या को लेकर न्यूनतम अनुमान देने की है, लेकिन संघर्ष क्षेत्र होने के वजह से जिन रिपोर्टों के आधार पर इसे तैयार किया गया है, हो सकता है वह शत प्रतिशत सही नहीं हो.इसके बावजूद, एकलेड का दावा है कि संस्था ने सटीक आकंड़ों तक पहुंचने की हरसंभव कोशिश की है. लेकिन पूरी तरह से सटीक जानकारी का मिल पाना असंभव है क्योंकि दोनों पक्ष प्रोपगैंडा के तौर पर अपने अलग- अलग दावे करते रहे हैं. इसके अलावा संघर्ष के इलाक़ों में रिपोर्टिंग करने पर पाबंदियां भी लागू हैं.
यह एकलेड के आंकड़ों में भी ज़ाहिर हो रहा है.पीपल्स डिफ़ेंस फ़ोर्स में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हैं- किसान, घरेलू महिलाएं, डॉक्टर- इंजीनियर. ये सब लोग सैन्य सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं.इसमें हर तबके के युवा शामिल हैं लेकिन बामर नस्ल के मैदानी इलाके और शहरों में रहने वाले युवा विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्हें दूसरे समुदाय के युवाओं का बखूबी साथ मिल रहा है. हाल के वर्षों में यह पहला मौका है जब बर्मा की सेना को बामर समुदाय के लोगों के हिंसक विरोध का सामना करना पड़ रहा है.शहरों के आम नागरिक पीपल्स डिफेंस फ़ोर्स में शामिल हो रहे हैं. लोगों का ये भी कहना है की अभी यदि मज़बूती से क़दम नहीं उठाया गया तो म्यांमार की स्थिति सीरिया जैसी हो सकती है.
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