साल 2000 में तीन नए राज्यों की स्थापना की गई. बिहार से अलग होकर झारखंड बनाया गया. जंगलों और खनिज संपदा से भरपूर झारखंड का विकास करना विभाजन का मुख्य उद्देशय था. लेकिन बीते 22 साल में महज एक बार ऐसा हुआ की किसी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो. राजनीतिक अस्थिरता की वजह से झारखंड के विकास को कभी गति नहीं मिली तो प्राकृतिक संसाधनों का भंडार माने जाने वाला झारखंड को Resource Curse ने कभी पिछड़ेपन से उबरने नहीं दिया.
22 सालों में झारखंड ने 5 मुख्यमंत्री देखे. लेकिन ऐसा सिर्फ एक बार हुआ की किसी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा किया हो. और अब एक बार फिर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. बिहार से अलग होने के बाद बाबुलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने. महज दो साल तीन महीनों के बाद अर्जुन मुंडा नए सीएम बने. 2005 में पहली बार झारखंड में चुनाव हुए. अगले 4 साल में झारखंड में तीन सीएम और एक बार राष्ट्रपति शासन रहा. बहुमत और आंकड़ों के खेल ने झारखंड के विकास का गणित बिगाड़ कर रख दिया.
क्या ‘Resource Curse’ ने रोकी झारखंड की रफ्तार की गति ?
ज्योग्राफी में एक टर्म होता है Resource Curse. ये टर्म धरती के वैसे हिस्सों के लिए इस्तेमाल होता है जहां प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं हो लेकिन विकास ना के बराबर हुआ है. हिन्दुस्तान में झारखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. झारखंड में भारत के खनिज संसाधन का 40 फीसदी हिस्सा है लेकिन 39 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहती है. 5 साल के नीचे के 20 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
भोगौलिक स्थिति और साक्षरता दर कम होने की वजह से आज भी जागरुकता की घोर कमी है. झारखंड के कई ऐसे जिले हैं जो आज भी नक्सल प्रभावित हैं. नक्सलियों का आतंक इस बात से समझा जा सकता है की राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी के बेटे को 2007 में नक्सलियों ने जान से मार दिया. 2007 में ही नक्सलियों ने लोकसभा के सांसद सुनील महतो की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
सत्ता के इर्द-गिर्द घूमती सियासत
सारी सियासत सत्ता के ईर्द-गिर्द घूमती रही. 3 मुख्यमंत्री के 4 कार्यकाल में किसी भी सीएम ने दो साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं किया. करीब साल भर के राष्ट्रपति शासन के बाद एक बार फिर 2009 में चुनाव हुए. इस बार भी किसी गठबंधन को बहुमत नहीं मिला और राज्य ने तीन मुख्यमंत्रियों का तीन कार्यकाल देखा. दो बार राष्ट्रपति शासन भी लगाना पड़ा. झारखंड बने 14 साल हो चुके थे. लेकिन झारखंड की जनता ने अब तक एक भी सीएम को कार्यकाल पूरा करते नहीं देखा था. 2014 में रघुबर दास सीएम बने और ऐसा पहली बार हुआ की किसी सरकार ने अपने 5 साल का टर्म पूरा किया हो. राजनीतिक अस्थिरता की वजह से झारंखड में नितियों को लागू नहीं किया जा सका. केंद्र की योजनाओं का लाभ भी झारखंड लोग लोगों को लंबे समय तक नहीं पहुंच पाया.
झारखंड के कुछ हिस्से विकास से कोसो दूर
जब झारखंड बिहार से अलग हुआ तो बिहार की ही तरह झारखंड में ही बिजली, पानी और सड़क की समस्या आम थी. घनबाद, बोकारो, रांची और जमशेदपुर जैसे शहरों की वजह से झारखंड का एक हिस्सा तो तेजी से विकास की सीढ़ियां चढ़ रहा था तो वहीं पलामू, चतरा जामताड़ा और गिरिडीह जैसे जिले विकास से कोसो दूर थे. देवघर जैसे पर्यटन स्थल की वजह से झारखंड के सड़कों की हालत सुधरने लगी. लेकिन रख रखाव की कमी ने एक दशक के अंदर झारखंड के विकास का रास्ता रोक दिया.
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