केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में विपक्ष द्वारा पेश अविश्वास प्रस्ताव का जवाब दिया। संसद के निचले सदन में बोलते हुए, केंद्रीय मंत्री ने एक बार फिर “नेहरू की गलती” का जिक्र किया और मणिपुर मुद्दे को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव केवल भ्रम पैदा करने के लिए लाया गया है और कहा विपक्ष को पीएम मोदी पर भरोसा नहीं हो सकता है लेकिन भारत के लोगों को है।
अपने भाषण के दौरान शाह ने कश्मीर में आतंकवाद, नक्सल प्रभावित राज्यों में उग्रवाद और मणिपुर में जातीय हिंसा के बारे में बात की। अमित शाह ने कहा कि सबसे ज्यादा धार्मिक और नस्लीय हमले अगर किसी के शासनकाल में हुए हैं तो वो जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के शासनकाल में हुए हैं। अमित शाह ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू ने आकाशवाणी पर बाय बाय असम तक कह दिया था। हमारे जवानों ने देश को बचाया।
तेजपुर के डेकारगांव के निवासी अतुल सैकिया ने कहा कि असम को लगभग चीन को सौंप दिया गया था जब जवाहरलाल नेहरू ने बोमडिला पर कब्जे के बाद अपने भाषण में घोषणा की थी कि मेरा दिल असम के लोगों के साथ है। 20 नवंबर, 1962 को आकाशवाणी पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में नेहरू ने कहा, “विशाल चीनी सेनाएँ नेफ़ा के उत्तरी भाग में मार्च कर रही हैं। इस भाषण ने नई दिल्ली के बारे में सैकिया की धारणा बदल दी।
सैकिया ने कहा कि मुझे दृढ़ता से लगता है कि अगर भारत-चीन युद्ध नहीं हुआ होता तो असम को केंद्र से इतना महत्व नहीं मिलता। बरुआ ने कहा कि वयोवृद्ध कांग्रेस नेता बेदब्रत बरुआ ने कहा कि जब नेहरू बोमडिला पर कब्जे के बाद बोल रहे थे तो लगभग रो रहे थे। मुझे याद है कि नेहरू ने लगभग रुंधे स्वर में कहा था, मेरा दिल असम के लोगों के लिए दुखता है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास था कि चीनी असम में प्रवेश नहीं करेंगे। यदि उन्होंने असम पर आक्रमण किया होता तो युद्ध का रुख दूसरा मोड़ ले लेता। संभवतः, अन्य देश लुटेरे चीनी सैनिकों को रोकने के लिए भारत की सहायता के लिए आए होंगे।
भारत चीन सीमा के काफी करीब बसा तेजपुर शहर 62 के युद्द के वक्त डर के साए में जी रहा था। सैकिया का डेकारगांव घर अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती शहर भालुकपुंग और तवांग में मैकमोहन रेखा की ओर जाने वाली सड़क से लगभग 43 किमी दूर है। वह बरुआ जैसे कांग्रेसियों की व्याख्या से अब भी आश्वस्त नहीं हैं।
स्थानीय पंचायत सदस्य सैकिया ने कहा कि पांच दशकों के बाद भी, मुझे अभी भी याद है कि कैसे लोगों को नई दिल्ली द्वारा अपमानित महसूस होना पड़ा था। तेजपुर में एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक नलिनी डेका ने कहा कि मैं तब बहुत छोटी थी। किसी ने मुझे नेहरू का भाषण समझाया। मुझे एहसास हुआ कि अगर देश का प्रधानमंत्री इतना असहाय था, तो आम लोग चीनियों के हमले का सामना कैसे कर सकते थे?
असम खतरे में हैं… हम उन्हें तकलीफ से नहीं बचा सकेंगे। इस वक्त कुछ असम के ऊपर, असम के दरवाजे पर दुश्मन है और असम खतरे में हैं। इसलिए खास तौर से हमारा दिल जाता है हमारे भाइयों, बहनों पर जो असम में रहते हैं। हमें उनसे हमदर्दी है, क्योंकि उन्हें तकलीफ उठानी पड़ रही है और शायद और भी तकलीफ उठानी पड़े। हम उनकी पूरी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं और करेंगे लेकिन, कितनी ही मदद करें हम उन्हें तकलीफ से नहीं बचा सकेंगे। देश के प्रधानमंत्री के भाषण में जब इस तरह के वाक्य हों तो वहां की जनता का हाल क्या होगा?
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