गुजरते वक्त में चुनाव पर खर्च बढ़ता ही जा रहा है.चुनाव जिस तेजी से हाईटेक हो रहे हैं, ऐसे में चुनाव आयोग के सामने निष्पक्ष और सुचारू तरीके से चुनाव करवाना खर्चीला हो गया है. आजादी के बाद से अब तक राजस्थान में 14 बार विधानसभा चुनाव हो चुके है और इस साल 15वीं बार विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है. इन विधानसभा चुनाव की शुरूआत से अब तक वोटर्स की संख्या 5 गुना तक बढ़ गई है, लेकिन इन वोटर्स से हर बार विधानसभा चुनाव में वोट डलवाने पर होने वाला खर्चा इन 56 सालों में 92 गुना तक बढ़ गया है.
56 सालों में 92 गुना तक बढ़ गया है
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकंतत्र कहा जाता है और यहां चुनाव करवाना अपने आप में ही एक चुनौती है. न केवल व्यवस्था की नजर से बल्कि खर्च की दृष्टि से भी.और खर्च का यह आंकडा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. आजादी के बाद से अब तक राजस्थान में 14 बार विधानसभा चुनाव हो चुके है.इस साल 15वीं बार विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है. इन विधानसभा चुनाव की शुरूआत से अब तक की स्थिति देखे तो वोटर्स की संख्या 5 गुना तक बढ़ गई है.लेकिन इन वोटर्स से हर बार विधानसभा चुनाव में वोट डलवाने पर होने वाला खर्चा इन 56 सालों में 92 गुना तक बढ़ गया है.
वोटर्स की संख्या 5 गुना
विशेषज्ञों का आंकलन है कि इस बार ये विधानसभा के चुनाव खत्म होंगे तो एक वोट डलवाने का खर्चा 51 रुपए तक हो जाएगा. निर्वाचन आयोग की तैयार एक रिपोर्ट पर नजर डाले तो राजस्थान में 1962 में जब विधानसभा के चुनाव करवाए गए थे. तब राज्य में कुल 1 करोड़ 3 लाख से ज्यादा मतदाता थे.176 विधानसभा सीटों के लिए हुए इन चुनाव में निर्वाचन आयोग को कुल 48 लाख रुपए खर्चा आया था.
तब एक वोटर से वोट डलवाने का औसत खर्चा 50 पैसे से कम यानी 0.46 पैसे था. लेकिन 56 साल बाद यानी 2018 में जब विधानसभा चुनाव करवाए गए तो यही खर्चा 92 गुना बढ़कर 42.53 रुपए प्रति वोटर आया.इन 56 साल में वोटर्स की संख्या करीब 3 गुना तक बढ़ गई और विधानसभा की सीटे 176 से बढ़कर 200 हो गई.
निर्वाचन विभाग के आंकडों का आकलन
निर्वाचन विभाग के आंकडों का आकलन करें तो जिस तरह हर पांच साल में विधानसभा चुनावों का खर्चा बढ़ रहा है. उसे देखकर अनुमान है कि इस बार एक वोटर पर खर्चा 51 रुपए तक आ सकता है.2013 से 2018 के तक प्रति वोटर्स पर खर्च करीब 20 फीसदी तक बढ़ा है. इसी तरह 2008 के बाद जब 2013 में वोट करवाए गए.
तो प्रति वोटर खर्च में दोगुना से ज्यादा हो गया था.2008 में प्रति वोटर खर्च औसतन 15.34 रुपए था, जो 2013 में बढ़कर 35.27 रुपए आया था. राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव जब 2018 में हुए थे.तब पूरे चुनाव का खर्चा 203.27 करोड़ रुपए आया था, जबकि साल 2013 के चुनाव में आयोग को 144 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े थे। साल 2008 तक हुए विधानसभा चुनाव में खर्चा 100 करोड़ रुपए से भी कम आता था.
पिछले 56 साल में हुए चुनाव खर्च
साल———–कुल चुनाव खर्च—–प्रति वोटर चुनाव खर्च
1962————-48 लाख————–46 पैसे
1967————-66 लाख————-55 पैसे
1972————-1.17 करोड़————-85 पैसे
1977————-1.25 करोड़————-81 पैसे
1980————-3.12 करोड़————-1.73 रुपए
1985————-5 करोड़————-2.38 रुपए
1990————-6.93 करोड़———-2.63 रुपए
1993————-17.18 करोड़———-6.06 रुपए
1998————19.75 करोड़————-6.55 रुपए
2003————-24.90 करोड़————-7.34 रुपए
2008————-55.66 करोड़————-15.34 रुपए
2013————-144 करोड़————-35.27 रुपए
2018————-203.27 करोड़———–42.53 रुपए
विभिन्न मदों में होता हैं चुनाव में खर्चा
पोलिंग पार्टियों को टीए-डीए का खर्चा (वेतन और यात्रा भत्ता)
-पोलिंग पार्टियो को गाडी का किराया, सेक्टर मजिस्ट्रेट, एफएसटी (फ्लाइंग स्क्वॉड टीम), एसएसटी (स्टेटिक सर्विलांस टीम) और (व्हीएसटी वीडियो सर्विलांस टीम) के लिए अधिग्रहण की हुई गाडियों का किराया खर्चा -वेबकास्टिंग, टेंट लाइट, माइक व्यवस्था, अल्पाहार, भोजन व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरे मय कलर टीवी, पेट्रोल-डीजल, स्टेशनरी, वीडियोग्राफी, ईवीएम एफएलसी, मतदान सामग्री, मेडिकल किट, ओवरटाइम-मानदेय -प्रचार-प्रसार सामग्री (फ्लैग्स, बैनर आदि), जीपीएस ट्रैकिंग, छाया-पानी, मुद्रण कार्य, अस्थाई दूरभाष व्यवस्था, अस्थाई निर्माण कार्य, मतदान केंद्रों पर व्यवस्था, ईवीएम ट्रांसपोर्टेशन, होमगार्ड |
बहरहाल, समय के साथ हर चुनाव हाइटेक होता जा रहा है.साथ में आबादी बढने के साथ मतदाताओं की संख्या के साथ में मतदान के लिए सुविधाओं में इजाफा होता जा रहा हैं…..जिसका असर चुनाव प्रकिया में होने वाले खर्चे पर पडा है….इसी बीच वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर काफी चर्चा हो रही है..कहा जा रहा है कि एक बार में सभी चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर दबाव कम होगा और इकोनॉमी को फायदा होगा.
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