पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता का मामला पूरी तरह से झामुमो का पॉलीटिकल स्टंट है। यह राजनीतिक ज्यादा व्यावहारिक कम है। क्योंकि झारखंड हाई कोर्ट ने 27 नवंबर 2002 को इसे खारिज किया हुआ है तो झामुमो द्वारा केवल घोषित, लागू नहीं, भी खारिज ही होना है। 1932 खतियान आधारित स्थानीयता देने और लेने की बात करने वाले झारखंडी आदिवासी मूलवासी का इमोशनल ब्लैकमेल कर रहे हैं। एक दूसरे को ठगने का काम कर रहे हैं।
इसे खुद लागू करने की बजाय केंद्र को भेजना, नौवीं अनुसूची में शामिल करने आदि की बात करना, केवल लटकाने भटकाने का कुत्सित प्रयास है। इसका वैकल्पिक फार्मूला बताते हुए सालखन कहते हैं कि सभी सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों का 90% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित कर प्रखंडवार कोटा बनाकर केवल प्रखंड के आवेदकों से तुरंत भरना। जिसमें खतियान की जरूरत नहीं पड़ेगी। वहीं कुरमी के मुद्दे पर सालखन ने कहा कि कुरमी समाज या अन्य समाज के एसटी बनने से असली आदिवासी समाज (संताल मुंडा उरांव हो खड़िया भूमिज पहाड़िया गोंड आदि) के अस्तित्व पहचान हिस्सेदारी पर सेंधमारी निश्चित है।
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