संगठन विरोधी गतिविधियों के कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा से निकाले गए पूर्व कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल के खिलाफ कुछ और विधायक भी अब खुलकर सामने आ सकते हैं. यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ रही है कि हेमंत सरकार को अस्थिर करने के लिए केजरीवाल ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायकों से संपर्क किया था. वे सामने वाले अपने पुराने संपर्कों का फायदा उठाकर विधायकों को लुभाने की कोशिश कर रहे थे।. उन्होंने विधानसभा चुनाव-2019 से पहले भी ऐसा ही प्रयास किया था, जिसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली. उनका इरादा प्रतिद्वंद्वी दलों को लाभ पहुंचाने के लिए संगठन को बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ करना था. वह लगातार एक पार्टी का नाम लेकर विधायकों को रिझा रहे थे. उस वक्त उनकी बातचीत की रिकॉर्डिंग भी कई नेताओं ने की थी. बाद में जब इन शिकायतों की पुष्टि हुई तो उन्हें तुरंत बाहर का रास्ता दिखाया गया. झामुमो के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार रवि केजरीवाल पैसे और पोस्ट का लालच देकर विधायकों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. इसी क्रम में उन्होंने घाटशिला विधायक रामदास सोरेन से संपर्क किया था. रामदास सोरेन ने तुरंत शीर्ष नेताओं को सूचित किया और उनकी चाल का पर्दाफाश हो गया.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के रणनीतिकार अब उसकी संदिग्ध गतिविधियों को लेकर सतर्क हैं. संगठन से निकाले जाने के बाद केजरीवाल ने अपना ठिकाना बदल लिया है. वे रायपुर शिफ्ट हो गए हैं, जहां उनका अपना व्यवसाय है. राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन की महत्वपूर्ण सहयोगी कांग्रेस भी हाल के राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए सतर्क है. पार्टी विधायकों की गतिविधियों पर भी नजर रखी जा रही है. फिलहाल ज्यादातर विधायक अपने-अपने क्षेत्र में हैं. वहीं आलाकमान ने भी प्रदेश नेतृत्व को सतर्क रहने का निर्देश दिया है. तीन महीने पहले बेरमो से पार्टी के विधायक कुमार जयमंगल उर्फ अनूप सिंह ने सरकार को अस्थिर करने की साजिश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
भाजपा को जब भी झामुमो को घेरने की जरूरत होती है, तो वह रवि केजरीवाल एंड एसोसिएट्स का नाम लेने लगती है. दो फरवरी को भी जब झामुमो दुमका में स्थापना समारोह में मशगूल थी, तो समारोह में खलल डालने का काम भी इसी रवि केजरीवाल के नाम को लेकर किया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये रवि केजरीवाल है कौन ? क्या काम करता है ? झामुमो से इसका क्या नाता-रिश्ता रहा है ? कैसे केजरीवाल परिवार कहीं से आकर तत्कालीन हजारीबाग जिला में बसा (उस वक्त बोकारो भी हजारीबाग जिले में आता था). पहले केजरीवाल परिवार का कारोबार क्या था और अब केजरीवाल परिवार क्या करता है ?
रवि के चाचा किराए पर चोंगा लगाते थे, बाद में अपना कोरबार आगे बढ़ाया
जानकार बताते हैं कि 18वीं शताब्दी में ही यह परिवार कहीं से आकर कुर्रा गांव में बसा. यह गांव अभी बोकारो जिला के चास प्रखंड में है. केजरीवाल परिवार काफी लंबा-चौड़ा हुआ करता था. लेकिन धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब होने लगी. भाई-भाई में झगड़ा शुरू होने लगा और परिवार अलग होता गया. रवि केजरीवाल के बड़े चाचा प्रयाग केजरीवाल पर परिवार का बोझ आया. तो उन्होंने किराए पर चोंगा लगाने का काम शुरू किया. चाचा की वजह से ही रवि केजरीवाल के संबंध सोरेन परिवार से बने. प्रयाग केजरीवाल, शिबू सोरेन के काफी करीबी हो गए. जिस तरह के आरोप अभी रवि केजरीवाल पर लग रहे हैं, ठीक वैसे ही फंड रेजिंग का आरोप रवि केजरीवाल के चाचा प्रयाग केजरीवाल पर भी लगते थे. सोरेन परिवार से नजदीकियों की वजह से केजरीवाल परिवार की हालत सुधरी. तब रवि केजरीवाल के पिता शिबू केजरीवाल ने बोकारो के सेक्टर-4 में रेमडंस का शोरूम खोला.
केजरीवाल के करीबी मनोहर बने शिबू सोरेन के आप्त सचिव, बनायी अकूत संपत्ति
आरोप लगते रहे हैं कि जिस वक्त शिबू सोरेन अपने चरम पर थे. केजरीवाल परिवार को परिवार के पास पैसा बनाने से लेकर पैसा खपाने तक का जिम्मा था. केजरीवाल परिवार उस वक्त झारखंड में जमीन का कारोबार में उतरा. जरूरतमंदों को पैसा देकर उसकी जमीन अपने नाम करवाने का काम परिवार ने शुरू किया. इसी क्रम में केजरीवाल परिवार के करीबी मनोहर पाल, शिबू सोरेन के आप्त सचिव बने. इनके आप्त सचिव बनने के बाद कहा जाने लगा कि सोरेन परिवार राजनीति करती थी और बाकी का सारा काम प्रयाग केजरीवाल और मनोहर पाल के जिम्मे था. बाद में मनोहर पाल ने अपना कारोबार शुरू कर लिया. स्मृद्धि स्टील के मालिक बने. हाल ही में करोड़ों की लागत से दिल्ली में एक फ्लाइंग क्लब खोला है.
विरासत के काम को आगे बढ़ाया रवि केजरीवला ने
प्रयाग केजरीवाल और मनोहर पाल का काम रवि केजरीवाल ने संभाला. विरासत को आगे बढ़ाते हुए जब शिबू सोरेन के विकल्प के रुप में हेमंत सोरेन राजनीति में आए, तब रवि केजरीवाल एंड एसोसिएट्स ने हेमंत के काम का जिम्मा संभाला. हेमंत के राजनीति में आने के बाद रवि केजरीवाल पर ही फंड जुगाड़ने की सारी जिम्मेदारी आ गयी. जिसे अंजाम देने में रवि केजरीवाल ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. जमाना बदल चुका था. जमीन के काम से पैसों को खपाने का काम कारगर नहीं रह गया था. कॉरपोरेट कल्चर की शुरुआत हो चुकी थी. तो इन्होंने भी अपने काम का भी कल्चर को बदला और मनी लॉन्ड्रिंग का तरीका शेल कंपनी बना कर करने लगे.
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