तेजी से घट रहे जंगलों से दुनिया भर में चिंता ज़ाहिर की जा रही है. इससे पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. धरती गर्म हो रही है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और तटवर्ती इलाके उसमें समा जा रहे हैं. वाकई यह चिंता का विषय है. समय रहते अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे.
एक जानकारी के मुताबिक आग लगने की 67 प्रतिशत घटनाएं उन क्षेत्रों में हुईं, जहां पेड़ों की कटाई की गई थी. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फंड के आकलन के अनुसार हाल ऐसा ही रहा, तो वर्ष 2030 तक अमेज़न के 27 प्रतिशत जंगल ख़त्म हो जाएंगे.
विकास की अंधी दौड़ के कारण भी घट रहे हैं जंगल
अगर भारत की बात की जाय, तो यहां की 7 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि वनक्षेत्र है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का क़रीब 21 प्रतिशत है. यहां विकास योजनाओं, उद्योग, सड़क और सिंचाई परियोजनाओं के अलावा आग, जंगलों के घटने का बड़ा कारण है.
वर्ष 2014 में वैश्विक समुदाय में इस बात पर सहमति बनी थी, कि 2020 तक पेड़ों की कटाई को कम से कम आधा और 2030 तक इसे पूरी तरह ख़त्म किया जाएगा, लेकिन यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका. एक आकलन के अनुसार वर्ष 1990 के बाद से विश्व में 42 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन से जंगल ख़त्म हो गए हैं. इसमें अधिकतर अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया के हिस्से हैं.
जंगलों के ख़त्म होने से केवल जलवायु परिवर्तन का ही ख़तरा है ऐसा नहीं है. ये जंगल सैंकड़ों आदिवासी समुदायों का ठिकाना रहे हैं. जानवरों की हज़ारों प्रजातियां भी इन जंगलों में हैं.
हालाँकि विश्व के कुछ देशों, जैसे अमेरिका, रूस, चीन आदि में वन-क्षेत्र में इज़ाफा हुआ है. पिछले 5 दशकों में यहाँ 7 प्रतिशत जंगल बढ़े हैं. यह अच्छा संकेत है. भारत सहित अन्य देशों को इन देशों से प्रेरणा लेनी चाहिए.
कार्बन उत्सर्जन कम नहीं कर पा रहे हम
जंगल तेजी से घटने की वजह से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, क्योंकि ऑक्सीजन की कमी हो रही है. कार्बन का भारी मात्रा में उत्सर्जन हो रहा है. इस मामले में चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरे स्थान पर है और वह कह चुका है कि वह पेरिस जलवायु समझौते के अपने वादे को पूरा करने की दिशा में अग्रसर है और 2005 के स्तर के अनुसार वह 2030 तक 33-35% कार्बन उत्सर्जन कम करेगा. पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है और उसे 1.5 डिग्री पर ही रोक देना है. मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए क्या यह संभव है ? IPCC (संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की रिपोर्ट संकेत देती है कि उसका पिछला लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि वैश्विक तापमान बढ़ने की दिशा में दुनिया के कई देश तेज़ी से कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं कर पा रहे हैं. दुनिया के कई बड़े कार्बन उत्सर्जक देश घोषणा कर चुके हैं कि वे 2050 तक कार्बन के मामले में न्यूट्रल हो जाएँगे. यहाँ तक कि चीन ने 2060 तक के लिए अंतिम तिथि तय कर दी है. इसके बावजूद IPCC की रिपोर्ट में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत को जलवायु ख़तरे की 2019 की सूची में सातवें पायदान पर रखा गया है, जिसे वह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है. पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में बेमौसम पर्यावरण प्रणाली बदतर होगी और उसका काफी असर दुनिया पर पड़ेगा. इसमें समुद्र और वातावरण ज्यादा ख़राब होगा और सम्पूर्ण जीव-जगत को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!