टाटा स्टील ने अपनी स्थापना से ही अपने संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सिद्धांत का पालन किया है कि कर्मचारियों सहित सभी हितधारकों को विकसित करने में व्यवसाय को योगदान देना चाहिए। टाटा स्टील ने अपने कर्मचारियों के कल्याण और भलाई के लिए कई सर्वप्रथम कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिन्हें बाद में भारत सरकार द्वारा अपनाया गया था।
कंपनी द्वारा शुरू की गई कुछ शुरुआती कर्मचारी कल्याण योजनाओं में 1912 में आठ घंटे का कार्य दिवस, 1915 में निः शुल्क चिकित्सा सहायता, 1920 में वेतन सहित अवकाश, 1920 में श्रमिक भविष्य निधि योजना, 1920 में श्रमिक दुर्घटना मुआवजा योजना, 1928 में मातृत्व लाभ , 1934 में प्रॉफिट शेयरिंग बोनस, 1937 में ग्रेच्युटी स्कीम और 1945 में स्टडी लीव योजना शामिल हैं।
1956 में, टाटा स्टील और टाटा वर्कर्स यूनियन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के इतिहास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर, श्रमिक वर्ग का ‘मैग्ना कार्टा’ बन गया। बाद में, कंपनी ने 1989 में पेंशन योजना, 1990 में मेडिकल सेपरेशन स्कीम, 1995 में कर्मचारी परिवार लाभ योजना, 2012 में सुरक्षा योजना (अनुबंध कर्मचारियों के लिए), 2014 में परिवार सहायता योजना और 2019 में पितृत्व लाभ योजना जैसी अन्य योजनाओं की शुरुआत की।
टाटा स्टील ने अपनी महिला कर्मचारियों की सहायता के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए हैं। तेजस्विनी, पेलोडर्स चालकों के रूप में महिलाओं को काम पर रखने की एक पहल 2003 में शुरू की गई थी। 2020 में, तेजस्विनी 2.0 को सभी खानों में भारी मशीन ऑपरेटरों के रूप में महिलाओं को तैनात करने के लिए लॉन्च किया गया था।
2017 में ‘वूमेन ऑफ मेटल’ कार्यक्रम शुरू किया गया था। यह युवा और जोशीली महिलाओं के लिए एक छात्रवृत्ति कार्यक्रम है। 2018 में, मासिक धर्म अवकाश की शुरुआत की गई, जिससे टाटा स्टील इस लार्ज स्केल सेगमेंट में ऐसा करने वाली पहली कंपनी बन गई। 2018 में महिला कर्मचारियों को दूसरा करियर विकल्प प्रदान करने के लिए ‘टेक टू’ पालिसी शुरू की गई थी।
सितंबर 2019 में, वूमेन@माइंस पहल के तहत ओएमक्यू डिवीजन, माइंस में सभी शिफ्टों में महिलाओं को तैनात करने वाला देश का पहला माइनिंग डिवीजन बन गया। लचीली कार्य व्यवस्थाओं के लिए, कंपनी ने 2020 में एजाईल वर्किंग मॉडल (वर्क फ्रॉम होम और लोकेशन एग्नॉस्टिक रोल्स) पेश किए। टाटा स्टील एक विविध, समावेशी, सुरक्षित और निष्पक्ष कार्यस्थल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। 2020 में, इसने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए एक अभियान शुरू किया। उन्हें माइनिंग ऑपरेशन्स में भी तैनात किया गया है।
2020-21 में, टाटा स्टील ने 22 महिलाओं के बैच को शामिल किया, जिन्हें नोआमुंडी आयरन माइंस में एचईएमएम (हैवी अर्थ मूविंग मशीनरी) ऑपरेटरों के रूप में तैनात किया गया है। वेस्ट बोकारो डिवीजन में भी इसी तरह की पहल की गई थी। 2021 में, कर्मचारियों को अवसरों की विज़िबिलिटी प्रदान करने और उन्हें एआई प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक साथ लाने के लिए स्टेपअप (एक आंतरिक प्रतिभा बाज़ार) की शुरुआत की गई थी।
न केवल कर्मचारियों और उनके आश्रितों के कल्याण के लिए, बल्कि टाटा स्टील अपने संचालन क्षेत्र के मानव संसाधनों के विकास के लिए भी प्रतिबद्ध है। टाटा स्टील और टाटा वर्कर्स यूनियन (टीडबल्यूयू) के बीच संबंध हमेशा सौहार्दपूर्ण रहे हैं क्योंकि टीडब्ल्यूयू ने 2019 में अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे किए। दोनों ने मानव संसाधन के मोर्चे पर कई पहलों पर एक साथ काम किया है।
जे एन टाटा वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (जेएनटीवीटीआई) की स्थापना 2015 में झारखंड और ओडिशा में टाटा स्टील के परिचालन स्थानों के आसपास रहने वाले युवाओं को विश्व स्तरीय प्रशिक्षण और नियुक्ति सहायता प्रदान करने के लिए एक स्वतंत्र संस्थान के रूप में की गई थी।
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