20 जनवरी को एक दूरगामी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिना वसीयत किए मर जाने वाले हिंदू पुरुष की बेटियां, पिता की स्व-अर्जित (खुद की कमाई) और बंटवारे में मिली दूसरी संपत्तियों को विरासत में पाने की हक़दार होंगी और उन्हें परिवार के दूसरे सदस्यों पर वरीयता हासिल होगी.
अब ऐसे हिंदू पुरुष की बेटियां, जो बिना वसीयत किए मर जाते हैं, वे अपने पिता की स्व-अर्जित या दूसरी संपत्तियों में अपने हिस्से का दावा कर सकेंगी. उन्हें स्वर्गीय पिता के भाइयों या ऐसे भाइयों के बेटे या बेटियों पर वरीयता दी जाएगी.न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की बेंच ने मुकदमे की सुनवाई की और 51 पन्नों का फैसला सुनाया जिसमें प्राचीन हिंदू उत्तराधिकार कानूनों और तमाम अदालतों के पुराने फैसलों का ज़िक्र किया गया है.
बेंच ने कहा, “हिंदू पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति या परिवार की संपत्ति के बंटवारे में हासिल हिस्सा पाने के एक विधवा या बेटी के अधिकार की न केवल पुराने परंपरागत हिंदू कानून के तहत बल्कि तमाम अदालती फैसलों में भी अच्छी तरह से पुष्टि की गई है.”
इस फैसले में तीन अहम बातें हैं
- बिना वसीयत किए मरे हिंदू पुरुष की बेटियां, पिता द्वारा स्व-अर्जित और बंटवारे में हासिल दूसरी प्रॉपर्टी को विरासत में पाने की हक़दार होंगी और उसे परिवार के दूसरे हिस्सेदार सदस्यों पर वरीयता मिलेगी.
- 1956 से पहले की प्रॉपर्टी की विरासत में बेटी का अधिकार भी शामिल होगा
- अगर एक हिंदू महिला कोई संतान छोड़े बिना मर जाती है, तो उसके पिता या मां से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के वारिसों चली जाएगी जबकि उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पति के वारिसों को चली जाएगी.
हिंदू उत्तराधिकार क़ानून
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के अनुसार, बेटियों को अपने पिता की स्व-अर्जित प्रॉपर्टी पर बेटों के बराबर हक़ है, और अगर पिता बिना वसीयत किए मर जाता है तो बेटी की वैवाहिक स्थिति का उसके प्रॉपर्टी के अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इससे पहले कि हम इन बिंदुओं को और गहराई से देखें, यह याद रखना जरूरी है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में बनाया गया था. यह कानून हिंदुओं की विरासत और प्रॉपर्टी के दावों का निपटारा करता था.
अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया था कि 1956 में हिंदू कोड बनाए जाने के समय से ही बेटियों को पिता, दादा और परदादा की प्रॉपर्टी में बेटों की तरह ही विरासत का हक़ है.
अब यह फैसला महिलाओं को इससे पहले की भी पिता की स्व-अर्जित या दूसरी प्रॉपर्टी को विरासत में पाने का अधिकार देता है. इसका मतलब है कि ऐसी महिलाओं के कानूनी वारिस अब प्रॉपर्टी में अपने अधिकार को फिर से हासिल करने के लिए दीवानी मुकदमा दायर कर सकते हैं.
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