मध्य प्रदेश के शहरी क्षेत्र में 3 मिनट और ग्रामीणों में अधिकतम 30 मिनट में पुलिस सहायता मुहैया कराने के दावे के साथ 2015 वर्ष में शुरू की गई डायल 100 उद्देश्य में सफल नहीं हो सकी. हाल यह है कि 4 साल में 2.50 लाख मामलों में डायल 100 मौके पर देर से पहुंची. इसका खुलासा शुक्रवार को विधानसभा के पटल पर रखी गई भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक 2020 की रिपोर्ट मैं हुआ है.
रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2019 तक कॉल रिसीव होने के 3 मिनट में मदद मुहैया कराने के मामले 22 फ़ीसदी ही है. 75 प्रतिशत मामलों में 4 से 60 मिनट का तो कुछ मामलों में 12 घंटे तक लगे हैं.
समय पर एक्शन न लेने के कारण हुए गंभीर अपराध
डायल हंड्रेड पर आने वाले 1 करोड़ से अधिक कॉल में से महज 20 लाख की कार्रवाई के योग्य पाए गए. अनुपयोगी कॉल्स की संख्या 80 लाख है, जो 80 फ़ीसदी से अधिक है. विभाग ने मिस्ड कॉल डेस्क नहीं बनाई. रिपोर्ट में कहा गया है कि समय पर मदद नहीं मिलने का दुष्परिणाम गंभीर अपराध जैसे बलात्कार, बलात्कार का प्रयास अपहरण आदि के रूप में सामने आए. अधिकारियों ने रिस्पॉन्स टाइम को लेकर प्रभावी कार्रवाई नहीं की.
बता दें कि रिपोर्ट में डायल हंड्रेड योजना में तय मापदंडों की समीक्षा और दूसरे चरण में सेवा देने वाले निजी कंपनी के प्रदर्शन को बेहतर करने की अनुशंसा की है. गौरतलब है कि 1 नवंबर 2015 को 632.29 करोड़ की लागत से हंड्रेड डायल परियोजना शुरू की गई थी. कैग ने डायल हंड्रेड आपातकालीन प्रणाली की भोपाल, इंदौर, जबलपुर, मुरैना, नरसिंहपुर धार और विदिशा जिले की रिपोर्ट तैयार की.
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