कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है. इसलिए देश की प्रगति कृषि की उन्नति पर आधारित है. आज राष्ट्रीय किसान दिवस है और देश के 5वें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्म दिन, चौधरी चरण सिंह 1979-1980 के बीच भारत के प्रधानमंत्री रहे और उन्हें देश में कई भूमि सुधार नीतियों के प्रतिपादन के लिए श्रेय जाता है. वे भले ही बहुत कम समय के लिए प्रधानमंत्री थे, लेकिन उन्होंने भारतीय किसानों के कल्याण के लिए कड़ी मेहनत की है. उनका मानना था कि देश के अन्नदाता किसानों से कृतज्ञता से पेश आना चाहिए और उन्हें उनके श्रम का प्रतिफल अवश्य मिलना चाहिए. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी किसानों को देश का सरताज मानते थे. उनके निधन के काफी दिनों बाद 2001 में सरकार ने इस पवित्र दिन को किसान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया.
निर्यात क्षेत्र में कृषि का योगदान कैसे बढ़े ?
ज्ञातव्य है कि कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14 % योगदान है। 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 53 प्रतिशत होता था, जो वर्तमान में करीब 14 % रह गया है। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि का 10 % हिस्सा है। देश की 1.26 अरब आबादी की खाद्य सुरक्षा कृषि पर निर्भर है. ऐसे में यह गंभीर चिंतन का विषय है कि इन बातों के मद्देनज़र निर्यात क्षेत्र में कृषि का योगदान कैसे बढ़े ?
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हमारी कृषि मानसून पर निर्भर
भारत में कृषि भूमि का वितरण असमान है. खेतों के छोटे आकार व विक्रय होने के कारण आधुनिक विधि से कृषि करना एक बड़ी समस्या है। स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार तथा चकबंदी कार्यक्रम चलाने जाने के बाद भी 1% धनी किसानों- जमीदारों के पास कुल भूमि का 20% है. भारतीय कृषि विशेषकर खरीफ फसलें मानसूनी वर्षा पर निर्भर है.
तीन कृषि कानूनों की बात
पिछले साल केन्द्र सरकार किसानों के लिए 3 कृषि क़ानून लेकर आई, जिसके विरोध में देश के किसानों ने एक साल से ज्यादा समय तक दिल्ली के अलग-अलग सीमाओं पर आन्दोलन किया. अंततः सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा और किसान आन्दोलन समाप्त कर घर वापस चले गए, लेकिन MSP को कानूनी जामा पहनाने और कई मांगों पर किसान अभी भी कायम हैं और आने वाले समय में सरकार द्वारा नकारात्मक रवैया अपनाने की हालत में आन्दोलन संभव है.
किसानों को मिले सिंचाई जैसी बुनियादी सुविधाएं
खैर किसानों के लिए नीतियां बने ज़रूर, लेकिन वे सच्चे अर्थों में किसानों के लिए हितकारी हों, न कि विनाशकारी. किसानों को सिंचाई जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जायं, तो आने वाले समय में किसान न केवल आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने में मददगार साबित होंगे.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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