आतंकी गुटों द्वारा दी गई धमकी के कारण हजारों प्रवासी नागरिक घाटी से भाग निकले हैं. वहीं हजारों को सेना, पुलिस इत्यादि ने सुरक्षित कैंपों में शरण दी है. हालांकि सैकड़ों प्रवासी अपने मकान मालिक से मिले सुरक्षा आश्वासन के बाद कश्मीर में ही रह रहे हैं.
कश्मीर में तकरीबन साढ़े तीन लाख प्रवासी नागरिक हैं. इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जो पिछले 10 से 15 सालों से यहाँ रह रहे हैं. पांच अगस्त 2019 को राज्य के दो टुकड़े करने और उसकी पहचान खत्म किए जाने की धमकी के बाद सभी घरों की ओर पलायन कर गए थे. सरकार को आशंका थी कि धारा 370 हटाए जाने पर कश्मीर में आग भड़क उठेगी और ये प्रवासी नागरिक आतंकी हमलों का निशाना हो सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वक्त के साथ इनका लौटना आरंभ हुआ, पर पिछले दो से तीन महीनों के भीतर उन्हें दोबारा निशाना बनाए जाने लगा है. तीस सालों के आतंकवादी गतिविधियों के दौरान प्रवासी नागरिकों को कश्मीर से कितनी बार भागना पड़ा है. अब यह गिनती भी लोग भूल गए हैं, लेकिन कश्मीर में रहने वाले लोग इसे नहीं भूल पाते है कि उन्हें वापस अपने घरों को लौट जाने के कारण उन्हें परेशानियों और दुश्वारियों के दौर से गुजरना पड़ा है, साथ ही कश्मीर में सभी विकास गतिविधियां उनके पलायन कर जाने से रुक जाती हैं. इस बार भी उनके घरों को लौटने के तेज होते क्रम से आम कश्मीरी परेशान हैं. यही कारण है कि सैकड़ो प्रवासी नागरिकों को अपने स्वार्थ के लिए कश्मीरी व्यापारी, उद्योगपति और मकान मालिक उन्हें सुरक्षा का आश्वासन देते हुए रोक पाने में कामयाब तो हुए हैं पर वे अब अपनी सुरक्षा को लेकर खुद परेशान हैं, क्योंकि आतंकी यह चेतावनी दे रहे हैं कि प्रवासी नागरिकों को शरण देने वालों को भी अंजाम भुगतना होगा.
Sapna Chakraborty
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