डायन-प्रथा और जादू टोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली छुटनी महतो को आगामी 9 नवंबर को पद्मश्री से नवाज़ा जाएगा। राष्ट्रपति भवन से छुटनी महतो को निमंत्रण मिला है। ज्ञात हो कि इस वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर छुटनी महतो को पद्म श्री पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी, लेकिन कोरोना के प्रकोप के कारण उन्हें यह पुरस्कार अब तक नहीं मिल सका। छूटनी महतो का जीवन संघर्षों से भरा है। उन्होंने स्वयं समाज का लांछन झेला है। इस वर्ष केंद्र सरकार ने जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे और दिवंगत गायक एसपी बालासुब्रमण्यम को पद्म पुरस्कार देने की घोषणा की है। पद्म भूषण प्राप्तकर्ताओं की सूची में शिंजो आबे, मौलाना वहीदुद्दीन खान, बीबी लाल, सुदर्शन पटनायक शामिल हैं। असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार मरणोपरांत दिया जा रहा है। देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में शामिल पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं की सूची जारी कर दी गई है। यह पुरस्कार आमतौर पर हर साल मार्च या अप्रैल में दिया जाता है। कुल 141 नामों की घोषणा की गई है, जिनमें से 7 नाम पद्म विभूषण के लिए, 10 पद्म भूषण के लिए और 118 पद्म श्री पुरस्कार के लिए हैं। इसमें 33 महिलाएं और 18 विदेशी शामिल हैं।
इधर कोल्हान क्षेत्र में डायन-प्रथा और जादू टोना के खिलाफ लगातार काम करने वाली महिला छुटनी महतो को पद्मश्री देने की घोषणा की गई है। सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया के पास बीरबंस गांव में रह रही छुटनी महतो पूरे इलाके में जादू टोना के खिलाफ आंदोलन चलाती रही हैं। लोग उन्हें डायन ही कहते थे, लेकिन डायन प्रथा के खिलाफ अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रेमचंद ने छुटनी महतो का पुनर्वास कराया और फ्री लीगल एड कमेटी (एफएलएसी) के बैनर तले काम करना शुरू किया और अब भारत सरकार उन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित करने जा रही है। छुटनी महतो अब 62 साल की हो गई है।
छुटनी महतो झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया के बीरबंस, जहां उनका मायका भी है, उसी गांव में रहती हैं। जब वे 12 साल की थीं, उनकी शादी गम्हरिया थाने के माह्तानडीह गांव में धनंजय महतो से हुई थी। इसके बाद उनके तीन बच्चे हुए। 2 सितंबर 1995 को उनके पड़ोसी भोजहरि की बेटी बीमार पड़ गई थी। लोगों को संदेह था कि यह छुटनी ही थी, जिसने कोई टोना-टोटका किया था। इसके बाद गांव में पंचायत हुई, तो उनपर डायन का आरोप लगाकर बहुत ज़ुल्म किए गए। घर में घुसकर दुष्कर्म का प्रयास किया गया। छुटनी महतो सुंदर थी, जो उनके लिए एक अभिशाप बन गई थी। अगले दिन फिर पंचायत हुई। 5 सितंबर तक गांव में कुछ न कुछ होता ही रहता था। पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगाया। उस समय उन्होंने किसी तरह 500 रुपये का जुर्माना भरा, लेकिन फिर भी कुछ भी ठीक नहीं हुआ। इसके बाद ग्रामीणों ने ओझा-गुनी से संपर्क किया। ओझा ने चटनी महतो को शौच पिलाने की कोशिश की। ऐसा कहकर मानव मल पीने को कहा जाता था, कि डायन का प्रकोप दूर हो जाएगा। मना करने पर पकड़ा गया और गंदा पानी पिलाने की कोशिश की गई और नहीं पीने पर उस पर गंदगी फेंक दी गई।
उसके बाद से उन्हें डायन कहा जाने लगा। उसे चार बच्चों के साथ गांव से निकाल दिया गया। उन्होंने अपनी कई रातें पेड़ के नीचे बिताई। वे स्थानीय विधायक चंपाई सोरेन के पास गईं। वहां भी कोई मदद नहीं मिली, जिसके बाद उन्होंने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया और फिर रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उनका जीवन और अधिक नारकीय हो गया। फिर वे ससुराल छोड़कर मायके आ गई। मायके में भी लोग उन्हें डायन कहकर संबोधित करने लगे और घर का दरवाजा बंद करने लगे। भाई ने उनको सहारा दिया। पति भी आया। कुछ पैसे की मदद की। भाइयों ने जमीन दी, पैसे दिए और वे बच्चों के साथ मायके में रहने लगी।
पांच साल तक ऐसे ही रही और ठान लिया कि अब वे डायन-प्रथा के खिलाफ लड़ेगी, अभियान चलाएंगी। उनका यह प्रयास रंग लाया। सैकड़ों ऐसी महिलाओं को उन्होंने न्याय दिलाया, जिन्हें डा यन के नाम पर प्रताड़ित किया जाता था। इसी तरह वे पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गईं। अब समाज के लिए दृष्टांत बन गईं। पद्मश्री उनकी लम्बी तपस्या का ही फल है। वे कहती हैं, “किसी औरत के जीवन में ऐसा दौर कभी न आए, जैसा मेरे जीवन में आया। मैं इसीलिए मज़लूम औरत के लिए लडती हूँ और उसे इन्साफ दिलाने का प्रयास करती हूँ। मैं पद्मश्री या इस तरह के सम्मान पाने के लिए यह अभियान नहीं चला रही हूं। मेरा उद्देश्य है समाज से इस कुप्रथा को समाप्त करना।”
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