13 मार्च, 2022 को इंदौर शहर से निकली एक संविधान सम्मान यात्रा आरएसएस के ही सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद ने स्वराज के 75वें अमृत महोत्सव को मनाते हुए इंदौर से महू (बाबा साहब की जन्मस्थली) तक 30 किलोमीटर मोटर साइकिल से निकाली थी.इसमें एक खुली जीप पर संविधान की दो मूल प्रतियाँ अंग्रेज़ी और हिंदी में रखी हुई थीं. जीप को चारों तरफ़ से भगवा झंडों से सजाया गया था.ऐसे में ये पहली बार है, जब भाजपा से जुड़े किसी भी संगठन ने बाबा साहब और उनकी विधारधारा पर अपना रंग चढ़ाने की कोशिश की है.
संविधान के सम्मान में निकाली गई इस पूरी यात्रा के दौरान बीच में कहीं केवल एक जगह तिरंगा दिखाई दे रहा था.
सम्मान यात्रा मे कुछ लोग बैठे हुए थे, जो संविधान की प्रति पर फूल माला चढ़ा रहे थे. जीप के पीछे क़रीब 4,000 लोग मोटर साइकिल से भगवा झंडा लिए ‘जय संविधान, जय श्रीराम’ का नारा लगा रहे थे.संविधान के सम्मान में निकाली गई इस पूरी यात्रा के दौरान बीच में कहीं केवल एक जगह तिरंगा दिखाई दे रहा था. जबकि इसके उलट ‘एंग्री हनुमान’ और भगवान राम की फोटो छपे भगवा झंडों की पूरी यात्रा में भरमार थी.अगर संविधान की रखी प्रति वाली खुली जीप हटा दी जाए तो ये पूरी यात्रा आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद की दूसरी रैलियों जैसी ही थी.
स्थानीय लोगों के अनुसार, बाबा साहब की जन्मस्थली में स्मारक निर्माण के लिए आंदोलन 1970 से चल रहा है. इसे हर दल और हर वर्ग के लोगों का समर्थन मिला, लेकिन कभी किसी ने इसमें अपना झंडा लगाने की कोशिश नहीं की.ख़ुद भाजपा ने भी ऐसा नहीं किया जबकि स्मारक के निर्माण के शिलान्यास का पहला पत्थर मध्य प्रदेश में पहली भाजपा सरकार के मुखिया सुंदरलाल पटवा के नाम का लगा हुआ है.
बीते दो सालों में हुई कुछ घटनाएं इस बात की सुबूत हैं कि डॉ आंबेडकर साहब के विचारधारा को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है.
डॉ भीमराव आंबेडकर जन्मभूमि स्मारक समिति के पूर्व कार्यालय सचिव मोहन राव वाकोड़े इस यात्रा को लेकर कहते हैं, “मैं बहुत दु:खी हूँ और निराश भी. अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब इस तरह की कोई यात्रा आंबेडकर स्मारक स्थली के सामने निकाली गयी हो. बीते दो सालों में हुई कुछ घटनाएं इस बात की सुबूत हैं कि डॉ आंबेडकर साहब के विचारधारा को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है.”
डॉ बाबा साहेब जन्मभूमि स्मारक समिति के उपाध्यक्ष राजेंद्र बाघमारे ने विश्व हिन्दू परिषद द्वारा दी गयी संविधान की मूल प्रतियों को आंबेडकर प्रतिमा के सामने ग्रहण किया था.राजेंद्र बाघमारे कहते हैं, “ये जगह सबके लिए है, इसलिए हम यहाँ आने के लिए किसी को मना नहीं कर सकते, लेकिन परिसर के अंदर हम किसी भी तरह के कोई भी धार्मिक नारे या झंडे नहीं लगाते. कोई राजनैतिक कार्यक्रम अंदर नहीं होने देते. परिसर के अंदर केवल मेमोरियल सोसायटी के ही कार्यक्रम होते हैं.
केवल इसी रैली से ये न समझा जाए कि आंबेडकर जन्मस्थली का भगवाकरण किया जा रहा है, बल्कि स्मारक स्थल की जो प्रबंध कार्यकारिणी समिति है, उसमें भी एक साल में काफ़ी फेरबदल हुए हैं.समिति से जुड़े शुरुआती दौर के सदस्य और कार्यालय सचिव रह चुके मोहन राव वाकोड़े को एक साल पहले इस समिति से हटा दिया गया. दो और सदस्यों उत्तम प्रधान और शांताराम वाघ को निकाल दिया गया.
आंबेडकर ने कभी भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा का समर्थन नहीं किया. वे हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को भी देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए एक बड़ा ख़तरा मानते थे. ऐसे में आंबेडकर के नाम के साथ इन हिंदूवादी संगठनों का यह मिलन सिर्फ उनके नाम का राजनैतिक करना है और पिछड़े समुदाय के साथ एक छलावा है.
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