गणतन्त्र दिवस (गणतंत्र दिवस) भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। … एक स्वतन्त्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतान्त्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। इसी संविधान के अनुसार महिला और पुरुष दोनों को बराबर के अधिकार दिए गए है।
महिलाओ की सुरक्षा के लिए कानून कई बने है पर आपको लगता है कि उस कानून का सही उपयोग होता है। क्यों महिलाओ को हर बार अपने हक अधिकार के लिए समाज की कुरीतियों का सामना करना पड़ता है उससे लड़ना पड़ता है। आज इस आलेख में बात करेंगे उनकी जिन्होंने ने समाज की सोच की चिंता ना करते हुए बाकी महिलाओं के लिए मिसाल बनी साथ ही हमारे खोखले समाज के दिखावे की जिन्होंने अपनी रूढ़िवादी सोच की वजह से आज भी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ोओ को एक नारे तक ही समित रखा है –
इंदिरा गाँधी
मात्र 11 साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए बच्चों की वानर सेना बनाई। 1938 में वह औपचारिक तौर पर इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुईं और 1947 से 1964 तक अपने प्रधानमंत्री पिता नेहरू के साथ उन्होंने काम करना शुरू कर दिया।
ऐसा भी कहा जाता था कि वह उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू की निजी सचिव की तरह काम करती थीं, हालांकि इसका कोई आधिकारिक ब्यौरा नहीं मिलता। वह सबसे पहले लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। शास्त्री जी के निधन के बाद 1966 में वह देश के सबसे शक्तिशाली पद ‘प्रधानमंत्री’ पर आसीन हुईं।
कल्पना चावला
कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला थीं. 1 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष में 16 दिन बिताने के बाद सब कल्पना चावला 6 अन्य साथियों के साथ धरती पर लौट रही थीं तो उनका यान क्षतिग्रस्त हो गया था।
मैरी कॉम
Mary Kom ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला मुक्केबाजी के लिए पदक जीतने वाले पहली महिला बॉक्सर है। उन्होने 2001 में पहली बार राष्ट्रीय महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। मैरी कॉम छ्ह बार वर्ल्ड एमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियन रही।2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। 2016 में मैरी कॉम राज्यसभा की सदस्य बनी।
उन्हे अबतक पद्म विभूषण, अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से नवाजा गया। 2014 में उनके जीवन पर आधरित फिल्म बनी और किताब भी लिखी गई। सन 2000 में जब मैरी कॉम ने ‘वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप, मणिपुर’ में जीत हासिल की, और इन्हें बॉक्सिंग में पुरस्कार मिला, तो वहां के हर एक समाचार पत्र में उनकी जीत की बात छपी, तब उनके परिवार को भी उनके बॉक्सर होने का पता चला।
IAS ऑफिसर सृष्टि जयंत देशमुख और टीना डाबी
- सृष्टि जयंत देशमुख ने अपने पहले ही प्रयास से सिविल सेवा की परीक्षा में पांचवी रैंक के साथ टॉप किया और साल 2018 में इंजीनियरिंग और यूपीएससी परीक्षा एक साथ पास की।
- टीना डाबी ने 2016 में 22 साल की उम्र में ही अपने पहले प्रयास में आईएएस की परीक्षा (यूपीएससी 2015) को पास किया और देश की टॉपर रहीं। आईएएस (IAS) परीक्षा में प्रथम रैंक लाने वाली वह अनुसूचित जाति (एसटी) की पहली महिला थी।
ममता बनर्जी और जयललिता
हमारे समाज में ये माना जाता है कि अगर आपकी लड़की की शादी नहीं हुई तो उसकी जिंदगी नर्क है लेकिन ये दो ऐसे नाम है जिन्हें देखकर शायद समाज की सोच बदल जाए-
- 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक बेहद सामान्य परिवार में जन्मीं ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की सीएम हैं। इससे पहले वह देश की संसद में बंगाल की सबसे युवा सांसद और भारत सरकार की केंद्रीय मंत्री भी रही हैं। ये वही राजीव गांधी के पीछे खड़े रहने वाली लड़की है, जिसने 13 साल में अपनी पार्टी को ‘सुपर पावर’ बनाया।
- मात्र 15 साल उम्र में जयललिता ने अपने अभिनय के करियर की शुरुवात की, उस समय वे स्कूल में भी पढ़ा करती थी। वो दक्षिण भारतीय राजनैतिक दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की महासचिव थीं। … फिल्मी करियर के बाद उन्होने एम॰जी॰ रामचंद्रन के साथ 1982 में राजनीतिक करियर की शुरुआत की।
मीरा बाई चानू
अक्सर आप से कहा जाता होगा थोड़ा ठीक रहो, ये तुमसे नहीं उठेगा। लेकिन जब मीरा बाई चानू के बारे में पूरे देश ने जाना तब मालूम हुआ हम कमजोर नहीं जापान के टोक्यो ओलंपिक के दूसरे दिन ही भारत की मीरा बाई चानू ने देश के लिए पहला मेडल जीत लिया है.
26 साल की मीरा बाई ने 49 किलोग्राम की कैटिगरी में सिल्वर मेडल हासिल किया है. वह भारोत्तोलन में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं.जंगल से लकड़ियां उठाने वाली लड़की जिसने ओलंपिक में रच दिया इतिहास।
अब ज़रा एक नजर इधर भी डालते है कि इतने विकाशशील भारत में भी महिलाओं के लिए इतना खतरा क्यों? उनके साथ इतना भेदभाव क्यों?
बाल विवाह
भारत में केंद्र सरकार ने भले ही लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाकर 21 साल करने का फैसला किया हो, लेकिन इससे बाल विवाह पर अंकुश लगाना आसान नहीं होगा. समस्या की जड़ें सामाजिक और आर्थिक हैं. वर्ष 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि युवतियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है.
राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था.इन आंकड़ों में भले मामूली हेरफेर हुआ हो, कुल मिला कर हालात जस के तस हैं।मोटे अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है. 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं।
घरेलु हिंसा
देश में 2020 में हुईं कुल 153,052 आत्महत्याओं में से गृहिणियों की संख्या 14.6 प्रतिशत है और आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से ज़्यादा है.ये स्थिति केवल साल 2020 की नहीं है. 1997 में जब से एनसीआरबी ने पेशे के आधार पर आत्महत्या के आंकड़े एकत्रित करने शुरू किए हैं तब से हर साल 20 हज़ार से ज़्यादा गृहणियों की आत्महत्या का आंकड़ा सामने आ रहा है. साल 2009 में ये आंकड़ा 25,092 तक पहुंच गया था.
रिपोर्ट में इन आत्महत्याओं के लिए “पारिवारिक समस्याओं” या “शादी से जुड़े मसलों” को ज़िम्मेदार बताया गया है.मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इसका एक प्रमुख कारण बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा है. हाल ही में हुए एक सरकारी सर्वे में 30 प्रतिशत महिलाओं ने बताया था कि उनके साथ पतियों ने घरेलू हिंसा की है. रोज़ की ये तकलीफ़ें शादियों को दमनकारी बनाती हैं और घरों में महिलाओं का दम घुटता है.
दहेज प्रथा
देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से साल 2014 में दहेज हत्या के 8,455 मामले सामने आए. केंद्र सरकार की ओर से जुलाई 2015 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते तीन सालों में देश में दहेज संबंधी कारणों से मौत का आंकड़ा 24,771 था. जिनमें से 7,048 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश से थे. इसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश में क्रमश: 3,830 और 2,252 मौतों का आंकड़ा सामने आया.
भ्रूण हत्या
भारत में आधुनिकता पर रूढ़िवादी मानसिकता भारी पड़ रही है। रिपोर्ट के आंकड़े बताते है कि साल 2013-2017 के बीच विश्व में लिंग चयन के कारण 142 मिलियन लड़कियां गायब हुई जिनमें से लगभग 46 मिलियन (4.6 करोड़) लड़कियां भारत में लापता हैं। भारत में पांच साल से कम उम्र की हर नौ में से एक लड़की की मृत्यु होती है जो कि सबसे ज्यादा है।
इस रिपोर्ट में एक अध्ययन को आधार बनाते हुए भारत के संदर्भ में यह जानकारी दी गई कि प्रति 1000 लड़कियों पर 13.5 प्रति लड़कियों की मौत प्रसव से पहले ही हो गई।भारत में 4.6 करोड़ लड़कियों का जन्म से पहले लापता होना कन्या भ्रूण हत्या का साफ संकेत
बलात्कार
पूरे देश में 2020 में बलात्कार के प्रतिदिन औसतन करीब 77 मामले दर्ज किए गए. साल 2019 में दुष्कर्म के कुल 28,046 मामले दर्ज किए गए. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 2018 में देश में हर चौथी दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग थीं, जबकि 50 फीसद से ज्यादा पीड़िताओं की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी. आंकड़ों के मुताबिक लगभग 94 प्रतिशत मामलों में आरोपी पीड़ितों के परिचित- परिवार के सदस्य, दोस्त, सह जीवन साथी, कर्मचारी या अन्य थे।
देश को विनाश की ओर ले जा रहे है ये आकड़े
भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. एक ओर सरकार महिला सशक्तिकरण के कदम उठा रही है तो दूसरी ओर घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम है. सोच और हकीकत में इतना अंतर क्यों? 2018 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें भारत को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क बताया गया था. 193 देशों में हुए इस सर्वे में महिलाओं का स्वास्थ्य, शिक्षा, उनके साथ होने वाली यौन हिंसा, हत्या और भेदभाव जैसे कुछ पैमाने थे, जिन पर दुनिया के 193 देशों का आकलन किया गया था.
भारत हर पैमाने में पीछे था. वहां औरतों के स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति सबसे खराब थी। औरतों के साथ सेक्शुअल और नॉन सेक्शुअल वॉयलेंस में हम अव्वल थे और भेदभाव करने में तो हमारा कोई सानी ही नहीं था. आज भारतीय जीवन विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरूतियों से संकटग्रस्त हो चुका है। आज भारतीय जीवन मे अनेक प्रकार की सामाजिक अव्यवस्था – वर्णव्यवस्था , अंधविश्वास, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, प्रांतवाद, भाषा-बोली वाद, दहेज-प्रथा, बाल-विवाह प्रथा, सती -प्रथा, आदि रूढिया ओर कुरीतिया फैल चुकी है।
अभी हाल ही के दैनिक भास्कर के एक ख़बर के अनुसार प्राइवेट स्कूल में माता-पिता बेटियों से ज़्यादा अपने बेटों का एडमिशन करवाते हैं। आख़िर कौन- सी किताब में लिखा है कि लड़के ही देश परिवार, खानदान का नाम रोशन कर सकते हैं और लड़की सिर्फ अत्याचार सहने के लिए बनी है। शुरू में जितने भी नाम मैंने बताए हैं उन्हें देखकर, उनसे सीखकर भी अगर आप ने अपनी सोच नहीं बदली तो इस देश का विनाश होने से कोई नहीं रोक सकता।
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