शपथ लेते ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वयं को संथाल और वनवासी बताते हुए जो बात कही, उसकी ओर दुनिया का ध्यान जाना बहुत जरूरी है। राष्ट्रपति ने कहा, ‘मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है।
मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं।’ प्रकृति की पूजा और उससे सामंजस्य भारतीय संस्कृति का आधार रहा है। भारतीय ग्रंथों में प्रकृति का जिस तरह चित्रण हुआ है, उससे स्पष्ट है कि भारतीयता की धारा प्रकृति से जुड़ाव के साथ ही पुष्पित-पल्लवित हुई है।
उदारीकरण के तमाम झंझावातों के बावजूद भारतीय आदिवासी समाज अब भी प्रकृति-प्रेम के अपने पारंपरिक पाठ को भूल नहीं पाया है। वनवासी समुदाय के स्वभाव में ही है कि प्रकृति से उतना ही लो, जितना जरूरी है। बदले में उसकी सेवा भी करो और जरूरत पड़े, तो उसके लिए मर-मिटो।
यह भी पढ़े :- Jharkhand : 300 साल पुरानी परंपरा आज भी है कायम, होली के दिन रंग-गुलाल से दूर एक गांव
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!