स्वीडन की लुंड यूनिवर्सिटी की काइसा नाइलिन ने एक थीसीस स्टडी में बेंगलुरु की दस महिलाओं के प्रेम-विवाह के अनुभवों और उनके असर का जिक्र किया है. यह कहानी उसी का एक हिस्सा है. दरअसल, कैटरीना का यह अनुभव सामाजिक बहिष्कार और अलगाव का अनुभव है, जिससे अक्सर अपनी पसंद का पार्टनर चुनने पर लड़कियों को गुजरना पड़ता है. यह खुलेआम भारतीय समाज में दिखता है.
इन मामलों का एक और भयानक उदाहरण
दिल्ली में 27 साल की श्रद्धा वॉकर की बर्बर हत्या का इतने महीनों बाद पर्दाफाश होना इन मामलों का एक और भयानक उदाहरण है. हत्या का मामला करीब 6 महीने बाद खुला. मुंबई की रहने वाली श्रद्धा की हत्या का आरोप उसके लिव-इन पार्टनर 28 साल के आफताब अमीन पूनावाला पर है. अब सामने आई जानकारी के मुताबिक आरोपी ने शव को छिपाने के लिए उसके टुकड़े कर दिये. वे दोनों दिल्ली में रह रहे थे और करीब तीन साल तक लिव-इन पार्टनर रहे. सोशल मीडिया पर लोग इसे प्यार का डरावना रूप बता रहे हैं.
श्रद्धा और उन जैसी लड़कियों को ऐसी कीमत इसलिए भी चुकानी पड़ती है क्योंकि अपनी मर्जी से शादी का फैसला लेने के लिए उन्हें बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है. श्रद्धा की अपने पिता से आखिरी बार साल 2021 में फोन पर बातचीत हुई थी. मां बाप बच्चों के लिए एक सपोर्ट सिस्टम हैं, जो आसानी से उपलब्ध होते हैं. लेकिन श्रद्धा अपने परिवार से कट गई थी, क्योंकि उसके रिश्ते को मां-बाप ने स्वीकार नहीं किया था.
प्रेम विवाह को सफल बनाने का दबाव
अलग धर्म या अलग जाति में या अपनी मर्जी से शादी करने वाली महिलाओं के लिए घरेलू दुर्व्यवहार, हिंसा के खिलाफ मदद लेना मुश्किल होता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में, परिवार उन्हें ‘अस्वीकार’ कर देता है. आगे चलकर अगर पति या पार्टनर अच्छा बर्ताव करने वाला इंसान नहीं निकला तो लड़कियों में अपराधबोध पैदा होता है कि वे एक गलत कदम उठा चुकी हैं.
वे डर और संकोच के मारे अपने साथी के बारे में शिकायत नहीं करतीं क्योंकि ये उनके परिवार की ‘चेतावनी’ और पूर्वाग्रहों की पुष्टि करेगा. लड़कियां इस दबाव से गुजरती हैं कि उन्हें किसी तरह रिश्ते को ठीक बनाए रखना है क्योंकि ”…हमने तो पहले ही कहा था कि ऐसा होगा.” कहने वाले परिवार और रिश्तेदारों को नकार कर उन्होंने अपने दम पर एक मुश्किल फैसला लेने का साहस किया होता है.
पीड़ितों को अलगाव का नुकसान
मीडिया से बात करते हुए श्रद्धा के 59 साल के पिता मदन वॉकर ने कहा है कि आफताब और श्रद्धा का रिश्ता उन्होंने नकार दिया था क्योंकि दोनों का धर्म अलग था. वे कहते हैं, ”मैं उसे कई बार समझा चुका था, लेकिन उसने कभी मेरी बात नहीं मानी. सलिए मैंने उससे बात नहीं की.” उन्होंने कहा है कि श्रद्धा उनकी बात मान लेती तो जिंदा होती.
श्रद्धा ने एक मुश्किल फैसला लिया था क्योंकि उसके पास और कोई विकल्प नहीं था. दूसरी तरफ आफताब ने मां-बाप के इसी रवैये का फायदा उठाया. श्रद्धा की मां की मौत हो चुकी थी. आफताब को पता था कि कोई भी श्रद्धा तक पहुंचने की कोशिश नहीं करेगा- ना तो उसका परिवार और ना ही उसके दोस्त, क्योंकि वह उनसे कटी हुई थी.
प्रेम विवाह यानी जोखिम भरा फैसला?
ऑनलाइन मैचमेकिंग सर्विस ट्रूली मैडली के भारत में 1.1 करोड़ से भी ज्यादा यूजर हैं. इसे भारतीय समाज के ताने-बाने के बीच बड़ा आंकड़ा माना जा सकता है. ऐसे और भी कई ऐप हैं जो खूब चलन में हैं, लेकिन जोड़ों का प्रेम विवाह तक नहीं पहुंच पाता. 2018 में 160,000 से ज्यादा परिवारों के सर्वे में, 93% विवाहित भारतीयों ने कहा कि उनकी शादी अरेंज यानी मां-बाप की मर्जी से हुई थी. सिर्फ 3% ने “लव मैरिज” की थी और अन्य 2% ने “लव-कम-अरेंज्ड मैरिज” की थी. 2021 की पीयू रिसर्च बताती है कि भारत में 80% मुसलमानों की राय है कि उनके समुदाय के लोगों को दूसरे धर्म में शादी करने से रोकना महत्वपूर्ण है. वहीं ऐसी ही राय 65% हिंदू रखते हैं.
हालांकि, कुछ दशक पहले की तुलना में अब लड़कियों को फैसले लेने के मौके मिल रहे हैं. वे अपने शहर-गांवों में या बाहर निकल कर आसानी से मर्जी और पसंद के काम कर र ही हैं. इसका श्रेय शैक्षिक विस्तार, डेटिंग ऐप जैसे तकनीकी परिवर्तन और विदेशी प्रभाव को दिया जाता है. कई लोग इसे सामाजिक-आर्थिक बदलाव की एक बड़ी प्रक्रिया के अनिवार्य हिस्से के तौर पर भी देखते हैं. स्थानीय मान्यताओं और संस्कृतियों की कई परतें हैं जिनसे समाज और परिवार के बुजुर्ग अब तक बाहर नहीं निकल सके हैं. ऐसे में लड़कियों को ये आजादी जोखिमों के साथ मिल रही है.
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