रोज अखबार के पन्ने पलट लीजिए. बच्चों की सुसाइड की खबरें मिल जाएंगी. लेकिन क्या कभी हम उनके कारणों को जानने के बाद अपने बच्चों के जीवन को संवारने की कोशिश करते हैं? हम आपको बताते हैं टीनएज बच्चों के जीवन में 5 सबसे बड़ो कारण और उनसे बचने के उपाय. इस उपायों को अपनाकर आप भी अपने बच्चे के जीवन को संवार सकते हैं और बचा सकते हैं उन्हे ऐसा कदम उठाने से भी.
यह मौजूदा दौर में पनप रही नयी संस्कृति का असर है, जिसकी वजह से कम उम्र के बच्चे भी स्वच्छंद रहने की चाह रखने लगे हैं. वे अपने ऊपर किसी तरह का दबाव, तनाव और सख्ती नहीं चाहते. तभी तो छाेटी-छोटी बात पर ये मासूम जान देने को तैयार हो जा रहे हैं, बिना यह सोचे कि उनके जाने के बाद उनके माता-पिता और परिजन पर क्या बीतेगी. झारखंड और पड़ोसी राज्यों से तीन ऐसी ही खबरें आयी हैं, जिसमें मासूम बच्चों ने माता-पिता की डांट-फटकार और सख्ती से नाराज हो कर मौत को गले लगा लिया.
मोबाइल पर गेम खेलने से रोका, तो लगा ली फांसी
कोलकाता. मोबाइल पर गेम खेलने की लत को लेकर मां से फटकार मिलने के बाद गुस्से में बेटे ने घर में फांसी लगा ली. घटना कोलकाता से सटे दक्षिण 24 परगना जिले के देबनगर पूर्वपाड़ा इलाके में शनिवार रात की है. मृत किशोर 14 वर्षीय दुरंत दास सातवीं का छात्र था. दुरंत स्कूल से घर लौटने के बाद मोबाइल पर गेम खेलने में लग जाता था. रोज की तरह शनिवार को भी मां ने उसे फटकार लगायी. गुस्से में दुरंत ने फांसी लगा कर जान दे दी.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
बच्चे का दिमाग उम्र के हिसाब ज्यादा विकसित हो जा रहा है. इससे उन पर तनाव भी बढ़ जाता है. छोटी-छोटी बातें, उनको परेशान कर देती हैं. इसके हिसाब से उनमें तनाव झेलने की क्षमता नहीं रहती है. उनको जब कोई दोस्त या परिवार का सहारा नहीं मिलता, तो वह गलत कदम उठा लेते हैं. डॉ निशांत गोयल, प्रभारी बाल मनोचिकित्सा केंद्र, सीआइपी
सिंगल चाइल्ड के चक्कर में उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करते
सिंगल चाइल्ड के दौर में मां-बाप बच्चे को बचपन से ही लाड़ लड़ाने के चक्कर में उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करते हैं. पेरेंट्स की यही आदत बच्चो को जिद्दी बना देती है. जिसका खामियाजा पेरेंट्स को भुगतना पड़ता हैं. बच्चे की हर छोटी बड़ी इच्छा पूरी होने के बाद जब उन्हें किसी चीज के लिए मना किया जाता है तो ये उन्हें बर्दाश्त नहीं होता और वो इतने सेसेटिव हो जाते हैं कि बिना कुछ सोचे समझे, किसी की परवाह किये बिना सुसाइड कर लेते हैं.
क्या करें- पेरेंट्स को बचपन से ही बच्चे में ना सुनने की आदत डालनी चाहिए. उनकी इच्छा तो पूरी करें लेकिन सिर्फ जरुरी. पेरेंट्स को बच्चें में शुरु से ही चीजों को बर्दाश्त करने की आदत डालनी चाहिए, ताकि बड़े होकर वो जिद्दी ना हो जाएं। बच्चे को समझाये कि क्या उनके लिए जरुरी क्या नहीं.
एक बड़ा कारण मां-बाप का तलाक
बच्चों में आत्महत्या करने का एक बड़ा कारण मां-बाप का तलाक भी सामने आया है. तलाक का बच्चों के दिमाग पर गलत असर पड़ता है. उन्हें मां-बाप दोनो का प्यार नहीं मिल पाता. ऐसे में जब वो दूसरे बच्चों को उनके पेरेंट्स के साथ देखते हैं तो उन्हें अपने जीवन में कमी नजर आने लगती है, इसके कारण वो चिड़चिड़े होने लगते है. कई केसों में सामने आया है कि ऐसे हालातों में बच्चें सुसाइड तक कर लेते हैं.
क्या करें- जितना हो सके पेरेंट्स इस बात का खास ख्याल रखें कि वो अपने रिश्ते का असर बच्चों पर ना पड़ने दें. पेरेंट्स के रिश्ते में आई दरार का असर बच्चे के प्यार पर ना पड़ने दें, अपने बच्चे को भरपूर प्यार करें.
ड्रग्स और शराब की लत
ड्रग्स और शराब की लत के कारण बच्चों को कब उनके जीवन खत्म करने पर मजबूर कर देती है, ये पता भी नही चलता। गलत दोस्त इसका बड़ा कारण हैं। दोस्ती की वजह से बच्चे एक बार एक्सपेरिमेंट करते है और धीरे-धीरे इस जानलेवा आदत का शिकार हो जाते हैं।
क्या करें- अपने बच्चों के दोस्तो पर खास नजर रखें वो किस तरह के दोस्त बनाते हैं इसमें उनकी मदद करें और उन्हें सिखायें कि सही दोस्तों का चुनाव कैसे करना है।
सेक्सुअल ओरिएंटेशन स्टेज
सेक्सुअल ओरिएंटेशन स्टेज से बच्चे अपनी टीनएज के दौरान गुजरते है। ये जीवन का वो समय होता है जब हम अपने सेक्सुअल अटरेक्शन को समझतें हैं। इस स्टेज में जब बच्चों को पता चलता है कि वो गे, लेसबियन या बाइसेक्सुअल हैं तो घर और समाज में मिलने वाली नफरत उन्हें आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती है।
क्या करें- अगर आप अपने बच्चे को इससे बचाना चाहते है तो इस बात को समझे कि उन्हें भगवान ने ऐसा बनाया है इसमें उनका कोई दोष नहीं हैं, उन्हें अपनी सेक्सुअल आईडेन्टिटी के साथ जीने का पूरा हक है।
एक्जाम का स्ट्रेस
परीक्षा का दबाव नए जमाने के बच्चों पर इस कदर हावी हुआ है कि कई बचपन इसकी भेंट चढ़ गए हैं। एक्जाम का ये स्ट्रेस उन पर इस कदर हावी होता है कि बोर्ड एक्जाम आने से पहले कई मौतों की खबर आती है और कई बच्चे परीक्षा में फेल होने बाद मौत का रास्ता चुन लेते हैं।
दरअसल बचपन से ही बच्चों पर अच्छे नंबर लाने के लिए पेरेंट्स और टीचर्स जो प्रेशर बनाते हैं, यही प्रेशर उनके तनाव का कारण बनता है। वहीं परीक्षाओं में पेरेंट्स और टीचर्स की उम्मीदों पर खरा ना उतरने पर उनका तनाव और बढ़ जाता है। इस तनाव के खत्म करने के लिए छात्रों को सिर्फ एक ही रास्ता नजर आता है, आत्महत्या।
क्या करें- पेरेंट्स और टीचर्स को बच्चें पर दवाब बनाने से अच्छा ये समझना चाहिए कि हर बच्चे की पसंद और टेलेंट एक जैसा नहीं होता। अपने बच्चे के हुनर को समझे और उसे आगे बढने के लिए प्रेरित करें।
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