झारखंड के जमशेदपुर शहर के लिए गर्व की बात है कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग मैनेजमेंट सिस्टम की टीम में जमशेदपुर के डीएवी बिष्टुपुर से 12वीं की पढ़ाई करने वाला पूर्व छात्र आयुष झा का भी नाम है।
इस छात्र का पूरा परिवार पश्चिम सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर में भी रह चुका है। इसरो अहमदाबाद में रहने वाले आयुष चंद्रयान-3 की लैंडिंग ऑपरेशन के लिए पिछले महीने से बेंगलुरू में हैं। वे और उनकी पूरी टीम बेंगलुरु में चंद्रायन के लैंडिंग के काम में दिन-रात लगे हुए हैं।
लैंडर का काम शुरू होने वाला है, वे लैंडर से ही जुड़े हैं, इसलिए पूरी टीम सारे सिस्टम पर निगरानी रखे हुए है। अगले 24 घंटे इस टीम के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जिस पर पुरी दुनिया की नजर है।
सब सही से सही समय पर हो, इसके लिए महीने भर से यह टीम अपनी पूरी तैयारी कर चुकी है। चंद्रयान प्रक्षेपण के बाद सारा काम बेंगलुरू स्थित इसरो टेलेमेट्री, ट्रेकिंग एंड कमांड नेटवर्क में होता है।
यहां जितने भी सेटेलाइट या चंद्रयान-मंगलयान आदि लांच होते हैं, उसकी ट्रैकिंग व लैंडिंग की मॉनिटरिंग की जाती है। इसका सारा कमांड यहीं से दिया जाती है।
लैंडर को उतरते समय हाइट की सूचना चाहिए होती है, यह सूचना जो मैनेजमेंट सिस्टम डेवलप किए हैं, उसके द्वारा दिया जा रहा है।
उसमें ऐसे सेंसर लगे हैं, जिससे एक-एक पल की जानकारी रडार अल्टीमीटर से ले रहे हैं, जिसकी डिजाइन आयुष व उनके टीम मेंबर्स ने की है।
चंद्रयान-2 से भी जुड़ा था आयुष
चंद्रयान-3 में एक बार फिर से आयुष का नाम आया है। वह चंद्रयान-2 में भी जुड़ा था। उसने इस दौरान रडार के विकास पर काम किया।
इस बार वह रडार विकास के साथ उसकी लैंडिंग और रियूजेबल लांच व्हीकल मिशन पर काम कर रहे हैं। उसने दसवीं की परीक्षा पश्चिम सिंहभूम के नवोदय विद्यालय से दी है।
बड़े भाई का मिला मार्गदर्शन
आयुष के पिता ललन झा कहते हैं कि घर के शुरू से माहौल पढ़ाई-लिखाई का रहा। आयुष के पिता चक्रधपुर के प्राइमरी विद्यालय के शिक्षक थे।
मां विनीता झा गृहणी हैं। वहीं पिता ललल झा का कहना है कि छोटे कस्बे में स्पेस साइंस को जानने-समझने का कोई माहौल नहीं था।
उनके बड़े बेटे अभिषेक झा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उसने ही आयुष को अंतरिक्षा विज्ञान की तकनीकों से जोड़ा तथा उस क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित किया।
जेईई में सफल होने के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलाजी तिरुवनंतपुरम से ग्रेजुएशन किया। फिर 2016 में इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में वैज्ञानिक के रूप में योगदान दिया।
स्कूल के लिए गर्व का क्षण
डीएवी बिष्टुपुर की प्रिंसिपल प्रज्ञा सिंह ने कहा कि स्कूल के लिए यह काफी गर्व का क्षण है और खुशी का दिन है। स्कूल में पढ़ाई के दौरान आयुष काफी अनुशासित रहता था, सिर्फ वह अपनी पढ़ाई से मतलब रखता था।
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