जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने वर्ष 2020 से 2022 तक राज्य में 103 तरह की दवाओं की खरीद में घोटाले का आरोप लगाया है। विधायक का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग में 3 वर्षों में ऊंची दर पर दवा की खरीद कर घोटाला किया गया है। इससे राज्य सरकार के 150 करोड़ से अधिक की चपत लगी है।
विभिन्न प्रकार की दवाओं की खरीद के लिए निविदा निकाली गई थी
उन्होंने बताया कि 22.04.2020 को विभिन्न प्रकार की दवाओं की खरीद के लिए निविदा निकाली गई थी। न्यूनतम दर वाले निविदादाताओं का चयन हो गया था और 15.06.2020 को उन्हें स्वीकृति पत्र भेजा गया था कि 19.06.2020 तक वे एकरारनामा जमा कर दें, ताकि उन्हें संबंधित दवाओं का क्रय आदेश दिया जा सके। लेकिन यह दवा खरीद नहीं हुई। इसकी जगह स्वास्थ्य विभाग ने संचिका तैयार कर जिन 103 दवाओं की राज्य के अस्पताल में मांग थी, उन दवाओं के भारत के औषधि निर्माता लोक उपक्रम से मनोनयन के आधार पर खरीदा गया। संकल्प के रूप में यह प्रस्ताव 28.12.2020 को मंत्रिपरिषद की स्वीकृति के लिए भेजा गया था। 03.02.2021 को मंत्रिपरिषद को स्वीकृति प्राप्त हो गई।
पूर्व दवाओं की खरीद के लिए निविदा प्राप्त संकल्प में कहीं भी अंकित नहीं
विभागीय संकल्प में उल्लेख किया गया है कि वित्तीय नियमावली 235 को शिथिल कर नियम 245 के तहत मनोनयन के आधार पर दवा क्रय कर राज्य के विभिन्न अस्पतालों को आपूर्ति की जाए। आश्चर्य है कि इस संकल्प में कहीं भी अंकित नहीं किया गया कि इसके पूर्व दवाओं की खरीद के लिए निविदा प्राप्त की गई थी। न्यूनतम दर वाले निविदादाताओं का चयन भी कर लिया गया था और उसके साथ एकरारनामा करने के लिए स्वीकृति पत्र भेज दिया गया था। निविदा में किसी भी दवा की खरीद के लिए जो न्यूनतम दर आई थी, उसी दवा को केंद्र की 5 कंपनियों से काफी अधिक दर पर खरीद की गई।
इसके कारण राज्य सरकार के खजाने को 150 करोड़ से अधिक की चपत लगी है। इसी तरह की खरीद वर्ष 2017-18 में तत्कालीन झारखंड सरकार से मनोनयन से हुई, लेकिन संकल्प में वित्त विभाग ने यह शर्त लगा दी थी कि इन जेनरिक दवाओं का क्रय वर्ष 2017-18 के लिए किया जाए। यह संकल्प 13.09.2017 को पारित हुआ था। इसके बाद कोविड काल में मनमानी दर पर दवाओं की खरीद में अनियमितता हुई।
निविदा के आधार पर न्यूनतम दर वाले निविदादाताओं का चयन होने के बाद ऊंची दर पर दवाओं की खरीद कर भारी घोटाला हुआ है। मुख्यमंत्री इसकी जांच कराएं और विभागीय मंत्री से स्पष्टीकरण पूछें। अगर इस मामले की जांच में विभागीय मंत्री दोषी पाए जाते हैं तो बर्खास्त किया जाना चाहिए। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
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