सीतारामडेरा न्यू ले आउट की रहनेवाली 9वीं कक्षा की छात्रा कृतिका ने टिफीन और चिप्स खाने के बाद तो दम तोड़ दिया था लेकिन अब भी कई सवाल उठ रहे हैं. कुछ सवाल जिला प्रशासन पर है तो कुछ शिक्षा विभाग के लिये. इन प्रश्नों का जवाब अब कौन देगा. कृतिका रही नहीं. पिता किसी तरह से मजदूरी कर परिवार का पेट पालते हैं. कृतिका घर पर बराबर यह कहती थी कि उसे आइपीएस बनना है. मुझे अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ना है. पहले तो वह डीएवी स्कूल में पढ़ती थी, लेकिन कोरोनाकाल में फीस जमा नहीं कर पाने के कारण स्कूल प्रबंधन की ओर से उसका नाम काट दिया गया था.
स्कूल से नाम काटे जाने के सिलसिले में डीसी से भी गुहार लगाई गई थी
कृतिका का डीएवी स्कूल से नाम काट दिये जाने के बाद परिवार के लोगों ने जिले के डीसी से भी गुहार लगायी थी, लेकिन कहीं से भी उसे मदद नहीं मिली. अंत में बेटी का नामांकन साकची के गुजराती हिन्दी स्कूल में करवाना पड़ा था. अभी एक माह पहले ही आदिवासी प्लस टू हाई स्कूल (सरकारी स्कूल) में नामांकन कराया गया था.आखिर कृतिका को डीसी और शिक्षा विभाग की ओर से मदद क्यों नहीं की गयी. अगर तब मदद मिल गयी होती तब शायद कृतिका इस तरह कुंधती नहीं रहती है. मां से बार-बार यह नहीं कहती कि मम्मी मुझे अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़कर आइपीएस बनना है. कृतिका तो अब नहीं रही, लेकिन कई सवालों को छोड़कर वह चली गयी है.
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