सारना उमूल, कालकापुर में हुई संथाली भाषा साहित्य की चर्चा
गम्हरिया कालकापुर दिसोम जाहेर सामुदायिक भवन सारना उमूल में 24 अगस्त, शनिवार को संथाली भाषा साहित्य एवं ओलचिकी लिपि की सामूहिक चर्चा हुई । इसमें संथाली भाषा साहित्य एवं ओलचिकी लिपि की वर्तमान स्थिति चुनौतियां और संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श किया गया।
संथाली भाषा-साहित्य का इतिहास बहुत ही पुराना और समृद्ध -धारमा मुर्मू
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संथाली पाठुआ गांवता के अध्यक्ष धारमा मुर्मू ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘संथाली भाषा-साहित्य का इतिहास बहुत ही पुराना और समृद्ध रहा है। इसको बचाए रखना हमारा कर्तव्य है। महिला समाजसेवी सह संथाली शिक्षिका कुमारी रीना टुडू ने कहा, ‘अपनी मातृभाषा को बचाने और विकसित करने के लिए महिलाओं की अहम भूमिका होगी, क्योंकि बच्चों की पहली शिक्षिका माँ ही होती है।
‘विकासशील देश में मातृभाषा को बचाना सबसे बड़ी चुनौती -सोमाय मार्डी
संथाली लेखक सह कलाकार जागरण मुर्मू ने कहा कि अपनी स्वतंत्र लिपि के बिना किसी भी भाषा की शुद्धता को बचाना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि साहित्यिक विकास के बिना समाज का विकास अधूरा है। थिएटर आर्टिस्ट एवं सामाजिक शुभचिंतक सोमाय मार्डी ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा, ‘विकासशील देश में मातृभाषा को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है. अतः हमें अपने बच्चों के साथ अपनी मातृभाषा में बातें करनी चाहिए।
उपस्थित सुमित्रा मार्डी और सिंगराय मार्डी ने भी अपने अपने विचार रखे। सभा का संचालन अजय बेसरा कर रहे थे तथा धन्यवाद ज्ञापन राकेश सोरेन ने किया।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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