
विश्व रंगमंच दिवस 2025 पर संगीत और नाट्य कला के विश्व संगठन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आईटीआई) का संदेश
संदेश के लेखक : थियोडोरस टेरज़ोपोलोस, ग्रीस
रंगमंच निर्देशक, शिक्षाविद, लेखक, अटिस थिएटर कंपनी के संस्थापक और कलात्मक निदेशक, थिएटर ओलंपिक्स के प्रेरक और अंतर्राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष।
27 मार्च : क्या रंगमंच उस एसओएस (संकटकालीन सहायता संकेत) को सुन सकता है जो हमारा समय एक ऐसी दुनिया में भेज रहा है, जहाँ नागरिक गरीबी में जीवन बिता रहे हैं, वर्चुअल रियलिटी के सेल्स में बंद हैं, और अपनी दमघोंटू निजता में कैद हैं ? एक ऐसी दुनिया में, जहाँ जीवन के हर पहलू में नियंत्रण और दमन की निरंकुश प्रणाली के तहत रोबोटिक अस्तित्व बनाए जा रहे हैं ?
क्या रंगमंच पारिस्थितिकी विनाश, वैश्विक तापमान वृद्धि, जैव विविधता के बड़े पैमाने पर नुकसान, महासागरों का प्रदूषण, पिघलते हुए हिमखंड, बढ़ती जंगल की आग और अत्यधिक मौसम की घटनाओं के प्रति चिंतित है? क्या रंगमंच पारिस्थितिकी तंत्र का सक्रिय हिस्सा बन सकता है? रंगमंच कई वर्षों से मानव प्रभाव को देख रहा है, लेकिन इस समस्या से निपटने में उसे कठिनाई हो रही है।
क्या रंगमंच 21वीं सदी में मानव स्थिति के बारे में चिंतित है, जहाँ नागरिकों को राजनीतिक और आर्थिक हितों, मीडिया नेटवर्क्स और राय बनाने वाली कंपनियों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है? जहाँ सोशल मीडिया, जो इसे सुविधाजनक बनाता है, संवाद का सबसे बड़ा बहाना बन गया है, क्योंकि यह ‘दूसरे’ से आवश्यक सुरक्षित दूरी प्रदान करता है ? ‘दूसरे’, अलग, और अजनबी के प्रति भय की व्यापक भावना हमारे विचारों और कार्यों पर हावी हो रही है।
क्या रंगमंच बिना खून बहाते हुए विभिन्नताओं के सह-अस्तित्व के लिए एक कार्यशाला की तरह काम कर सकता है ?
यह बहता हुआ घाव हमें मिथक को फिर से निर्मित करने के लिए आमंत्रित करता है। और हेनर मुलर के शब्दों में, “मिथक एक समग्र प्रणाली है, एक मशीन जिससे हमेशा नई और भिन्न मशीनें जोड़ी जा सकती हैं। यह ऊर्जा को तब तक स्थानांतरित करता है जब तक कि बढ़ती हुई गति सांस्कृतिक क्षेत्र को विस्फोटित न कर दे।” और मैं जोड़ूंगा, बर्बरता के क्षेत्र को भी।
क्या रंगमंच की रोशनी सामाजिक घावों को उजागर कर सकती है और भ्रामक रूप से केवल खुद को ही उजागर करना बंद कर सकती है ?
ये प्रश्न ऐसे हैं जिनके कोई निश्चित उत्तर नहीं हैं, क्योंकि रंगमंच उन्हीं अनुत्तरित प्रश्नों की वजह से मौजूद है और जीवित है।
ये प्रश्न डायोनिसस द्वारा उत्पन्न हुए हैं, जो अपने जन्मस्थान, प्राचीन रंगमंच की ऑर्केस्ट्रा, से होकर युद्ध के परिदृश्यों से गुजरते हुए अपनी मौन शरणार्थी यात्रा जारी रखे हुए हैं। आज, विश्व रंगमंच दिवस पर।
आइए डायोनिसस की आँखों में देखें, जो थिएटर और मिथक का उन्मत्त देवता है और जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ता है। जो दो जन्मों का संतान है, ज़्यूस और सेमेल का, जो तरल पहचान को अभिव्यक्त करता है – स्त्री और पुरुष, क्रोधित और दयालु, दिव्य और पशुवत, पागलपन और तर्क, व्यवस्था और अराजकता के बीच, जीवन और मृत्यु के बीच के सीमा रेखा पर चलता हुआ एक बाजीगर।डायोनिसस एक मौलिक अस्तित्वगत प्रश्न पूछता है – “यह सब क्या है?” यह प्रश्न रचनाकार को मिथक की जड़ों और मानवीय पहेली के अनेक आयामों की गहरी खोज की ओर ले जाता है।
हमें नई कथात्मक विधाओं की आवश्यकता है, जो स्मृति को संवारने और एक नई नैतिक और राजनीतिक जिम्मेदारी को आकार देने का लक्ष्य रखती हैं, ताकि आज के मध्ययुगीन युग की बहु-रूपी तानाशाही से बाहर निकला जा सके।
लेखक
– थियोडोरस टेरज़ोपोलोस

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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