आदिवासी दिवस पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का संकल्प लेंगे-जगरनाथ उरांव
रांची 8 अगस्त। देश भर में आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार, गरीबी और हाशिए में धकेले जाने के खिलाफ 9 अगस्त 2023 को आदिवासी संघर्ष मोर्चा अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस पर अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करने के लिए शपथ लेगा। मध्य प्रदेश के सीधी जिले के सोनभद्र में पेशाब करने की घिनौनी घटना। फिर उत्तर प्रदेश! और, मणिपुर का सबसे दुखद वीडियो, जिसमें दो कुकी-ज़ो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया। उनके साथ छेड़छाड़ की गई। उन पर हमला किया गया और उन्हें बलात्कार के लिए खेत में ले जाया गया। यह सब इस बात की पुष्टि करते हैं कि वर्तमान सत्तारूढ़ व्यवस्था को आदिवासियों, उनकी मर्यादा और उनकी हितों की कोई परवाह नहीं है।
मनुस्मृति को संघ ब्रिगेड अपना वास्तविक संविधान मानता आया है
झारखंड आदिवासी संघर्ष मोर्चा के राज्य संयोजक जगरनाथ उरांव ने इस सम्बन्ध में कहा कि मनुस्मृति को संघ ब्रिगेड अपना वास्तविक संविधान मानता आया है. वास्तव में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा के चरम रूपों को यह मनुस्मृति सामाजिक स्वीकृति प्रदान करती है। देश भर में आदिवासियों पर साल-दर-साल अत्याचार बढ़ता जा रहा है। 2020 में 8,272 अत्याचार के मामले थे जो 2021 में बढ़कर 8802 मामले हो गए। इसमें मणिपुर की तरह आदिवासी महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और अत्याचार के बढ़ते मामले शामिल हैं। भाजपा के उदय और उसकी हिंदुत्व की आक्रामक राजनीति ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को तेजी से अप्रभावी बना दिया है. अब इसे कमजोर करने और यहां तक कि रद्द करने की मांग भी संघ ब्रिगेड की ओर से बढ़ रही है।
आदिवासी अपनी संस्कृति और पहचान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं
श्री उरांव ने कहा कि इस बर्बर हिंसा के साथ-साथ आदिवासी भाजपा सरकार द्वारा वन अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन की वजह से वन क्षेत्रों से विस्थापन के नए खतरनाक दौर का सामना कर रहे हैं। मोदी द्वारा घोषित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) भी आदिवासियों को दिए गए संवैधानिक विशेषाधिकारों और सुरक्षा को खत्म करने की वास्तविक आशंका पैदा कर रही है। यूसीसी आदिवासियों के विशिष्ट रीति-रिवाज, चलन और प्रथाओं को भी प्रतिबंधित कर सकती है। दूसरी ओर नवउदारवादी नीतियों के तहत प्राकृतिक संसाधनों की राज्य-स्वीकृत कॉर्पोरेट लूट और जंगल एवं जमीन से बेदखली ने आदिवासियों की आजीविका और जीवन की सुरक्षा छीन ली है. इस हालत में आदिवासी अपनी संस्कृति और पहचान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को छीनने की साजिश
भूमि, शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, पेयजल और स्वच्छता जैसी सबसे बुनियादी जरूरतों के लिए आज आदिवासी संघर्ष अनवरत संघर्ष कर रहे हैं। जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच राष्ट्रीय स्वंयसेवक (आरएसएस) संघ का एक संगठन है. इस संगठन के माध्यम से आदिवासियों के हिंदूकरण की कोशिश कर रहा है. यह संगठन आदिवासियों के अपने धर्म को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है और इस अधिकार के प्रयोग में अड़ंगे डाल रहा है. वास्तव में यूसीसी भी इन समुदायों को जबरन हिंदू धर्म में लाने का एक और हथकंडा है। स्पष्ट है कि आरएसएस आदिवासियों के बीच धर्म के आधार पर विभाजन पैदा कर रहा है और संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों को छीनने की साजिश कर रहा है।
मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प
उन्होंने कहा कि आदिवासी भारत की जनसंख्या का दसवां हिस्सा हैं। भारत के वे मूल निवासी हैं। आदिवासी पुरखों ने भारतीय उपमहाद्वीप में पहली मानव बस्तियाँ स्थापित की थीं. आदिवासी सामूहिकता, सामाजिकता, सह-अस्तित्व, सहयोग और बंधुत्व में विश्वास करते हैं और इस भूमि के प्रथम नागरिक हैं। लेकिन मोदी सरकार ने मानो, आदिवासी संस्कृति, पहचान, आजीविका और अस्तित्व को नष्ट करने की कसम खाई है! इस अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का संकल्प लेंगे और मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे।
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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