सबने एक स्वर में बोला कि झारखंडी समाज भाजपा के विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति के विरुद्ध है
झारखंड के कई नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मिलकर रविवार को रांची में शांतपूर्ण प्रदर्शन कर भाजपा के हाल के सांप्रदायिक व विभाजनकारी राजनीति के विरुद्ध विरोध जताया. लोग डंगराटोली से अल्बर्ट एक्का तक पैदल चले और इस दौरान डंगराटोली चौक, मिशन चौक और अल्बर्ट एक्का चौक पर शांतिपूर्ण प्रदार्शन किये. सबने एक स्वर में बोला कि झारखंडी समाज भाजपा के विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति के विरुद्ध है.
बांग्लादेशी घुसपैठियों (मुसलमानों) की आबादी बढ़ी है. यह तथ्य से परे है !
प्रदर्शन के दौरान प्रतिभागियों ने कहा कि हाल में भाजपा व उसके प्रमुख नेता लगातार बयान दे रहे हैं कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठी आ रहे हैं, आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है, आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, ज़मीन हथिया रहे हैं, लव जिहाद, लैंड जिहाद कर रहे हैं आदि. ऐसे भाषण देकर वे लगातार आदिवासियों व अन्य समुदायों में मुसलमानों के विरुद्ध नफ़रत फ़ैलाने और विधान सभा चुनाव से पहले धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा नेताओं द्वारा गलत आंकड़ों व झूठ के आधार पर सांप्रदायिक राजनीति की जा रही है. उनके द्वारा कहा जा रहा है कि 2000 के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसँख्या 10-16% कम हुई है, क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठियों (मुसलमानों) की आबादी बढ़ी है. यह तथ्य से परे है.
विस्थापन व रोज़गार के अभाव में लाखों की संख्या में पलायन
1951 की जनगणना के अनुसार झारखंड क्षेत्र में 36% आदिवासी थे. वहीं 1991 में राज्य में 27.67% आदिवासी थे और 12.18% मुसलमान. आखरी जनगणना (2011) के अनुसार राज्य में 26.21% आदिवासी थे और 14.53% मुसलमान. वहीं संथाल परगना में आदिवासियों का अनुपात 2001 में 29.91% से 2011 में 28.11% हुआ. आदिवासियों के अनुपात में व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई जिसके तीन प्रमुख कारण हैं – 1) आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासियों को झारखंड में आकर बसना, 2) दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अन्य गैर-आदिवासी समूहों से कमहोना एवं 3) दशकों से विस्थापन व रोज़गार के अभाव में लाखों की संख्या में पलायन करना.
सरकार कम अनुसार बांग्लादेशी घुसपैठिये की संख्या सम्बंधित कोई आंकड़े नहीं हैं
एक तरफ़ भाजपा के नेता बांग्लादेशी घुसपैठियों का राग जाप रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार लगातार संसद में बयान देते आ रही है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठिये की संख्या सम्बंधित कोई आंकड़े नहीं हैं. साथ ही, मोदी व रघुवर दास सरकार ने अडानी पावरप्लांट परियोजना के लिए आदिवासियों की ज़मीन का जबरन अधिग्रहण किया था . झारखंड को घाटे में रखकर अडानी को फाएदा पहुँचाने के लिए राज्य की ऊर्जा नीति को बदला और संथाल परगना को अँधेरे में रखकर बांग्लादेश को बिजली भेजी.
CNT-SPT कानूनों का खुला उल्लंघन कर आदिवासियों के ज़मीन को लूटा गया है
भाजपा के नेता द्वारा यह भी दावा किया जा रहा है कि बंगलादेशी घुसपैठी (मुसलमान) आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं. तथ्य यह है कि कई दशकों से आसपास के राज्यों के विभिन्न धर्मों के गैर-आदिवासी झारखंड के आदिवासी ज़मीन पर, खास करके शहरों में, बसे हैं. CNT-SPT कानूनों का खुला उल्लंघन कर आदिवासियों के ज़मीन को लूटा गया है.
उनको हर बांग्लाभाषी और हर मुसलमान बांग्लादेशी दिखता है
भाजपा की नफ़रत की राजनीति इस हद तक पहुंच गयी है कि उनको हर बांग्लाभाषी और हर मुसलमान बांग्लादेशी दिखता है. वे विधान सभा चुनाव में जीतने के लिए झारखंडी समाज को तोड़ने के लिए भी तैयार हैं. अब तो भाजपा सांसद ने झारखंड को तोड़ के केंद्र शासित राज्य बनाने की भी बात बोल दिया है.
भाजपा नेताओं के नफरती व सांप्रदायिक भाषणों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करें
प्रदर्शन में आये सभी लोगों ने राज्य सरकार से मांग की, कि तुरंत भाजपा नेताओं के नफरती व सांप्रदायिक भाषणों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करें। प्रदर्शन के माध्यम से लोगों राज्य की जनता से भी अपील किया है कि भाजपा के इन झूठे नफरती झांसे में न पड़ें और आदिवासियत व झारखंडी समाज के सामूहिक सोच को आगे बढ़ाएं.
प्रदर्शन में लोकतंत्र बचाओ अभियान, भारत जोड़ो अभिया-राजमहल, साझा कदम, यूनाइटेड मिली फोरम समेत कई संगठन भाग लिए. प्रदर्शन में अफ़ज़ल एनीस, अंकिता अग्रवाल, एलिना होरो, ज़ाहिद, मंथन, मोहम्मद तलहा नदवी, नंदिता, प्रियशीला, पंकज पुष्कर झा, प्रवीर पीटर, रोज़ कच्छप, स्मृति नाग, शाहिद कमल, सिराज दत्ता, तनवीर, टॉम कावला, विश्वनाथ आज़ाद समेत अनेक सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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