आज प्रेस क्लब, रांची में प्रेस वार्ता में साझा की गई तथ्यान्वेषण रिपोर्ट
हाल के दिनों में भाजपा लगातार प्रचार कर रही है कि संथाल परगना में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए आ रहे हैं जो आदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे है, आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं और आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है. क्षेत्र में हाल की कई हिंसा की घटनाओं को जोड़ते हुए इन दावों पर सामाजिक व राजनैतिक माहौल बनाया जा रहा है. ज़मीनी सच्चाई समझने के लिए झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान के एक प्रतिनिधिमंडल ने संथाल परगना जाकर हर सम्बंधित मामले का तथ्यान्वेषण किया. पाए गए तथ्यों को आज प्रेस क्लब, रांची में प्रेस वार्ता में साझा किया गया.
ज़मीनी हक़ीकत भाजपा के संप्रदायिक दावों से कोसों दूर है
तथ्यान्वेषण दल ने पाकुड़ व साहिबगंज के हाल के प्रमुख मामलों जैसे गायबथान, गोपीनाथपुर, तारानगर-इलामी, केकेएम कॉलेज आदि के छात्रों, पीड़ितों, आरोपियों, दोनों पक्षों के ग्रामीणों, ग्राम प्रधानों व स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं से विस्तृत बात की. मामलों में दर्ज प्राथमिकियों व संबंधित दस्तावेजों का अध्ययन किया. 1901 से अब तक की जनगणना के आंकड़ों, संबंधित सेन्सस रिपोर्ट, गज़ेटियर व क्षेत्र के डेमोग्राफी से जुड़े शोध पत्रों का भी आंकलन किया गया. दल ने पाया कि ज़मीनी हक़ीकत भाजपा के संप्रदायीक दावों से कोसो दूर है.
मामले
गायबथान गाँव में एक आदिवासी परिवार और मुसलमान परिवार में लगभग 30 सालों से एक ज़मीन पर विवाद चल रहा था. इसी विवाद में मुसलमान परिवार ने आदिवासी की ज़मीन को जबरन कब्ज़ा करने की कोशिश की, जिसके बाद 18 जुलाई को दोनों पक्षों के बीच मारपीट हुई. इसके विरुद्ध केकेएम कॉलेज के आदिवासी छात्र संघ के छात्र 27 जुलाई को विरोध प्रदर्शन किया. इसके एक रात पहले पुलिस ने कॉलेज की हॉस्टल में छात्रों की व्यापक पिटाई की. तारानगर-इलामी में सोशल मीडिया पर एक हिंदू लड़की की फ़ोटो तथाकथित शेयर करने के लिए हिंदू परिवारों ने एक मुसलमान युवा और उसकी मां को पीटा. इसके बाद मुसलमान महिला के मृत्यु की अफ़वाह फैलने के बाद मुसलमानों ने बड़ी संख्या में हिंदू टोले में तोड़-फोड़ मारपीट की. गोपीनाथपुर में बकरीद में क़ुरबानी के विवाद में सटे मुर्शिदाबाद के गाँव के मुसलमानों और गोपीनाथपुर के हिन्दुओं व पुलिस के बीच हिंसा हुई. विस्तृत जानकारी के लिए रिपोर्ट में दी गई है.
घटनाएं हुई है, वहीं के रहने वाले समुदायों व स्थानीय लोगों के बीच हुई हैं
भाजपा के राज्य व राष्ट्रीय-स्तरीय नेता लगातार यह बोल रहे हैं कि बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठिये इन घटनाओं के लिए जिम्मेवार हैं, लेकिन तथ्यान्वेंशन के दौरान दल ने यह पाया कि जो भी घटना हुई है, वहीं के रहने वाले समुदायों व स्थानीय लोगों के बीच हुई है. इन सभी गावों के किसी भी ग्रामीण – आदिवासी, हिंदू या मुसलमान – ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने की बात नहीं की. यहां तक कि तारानगर-इलामी में रहने वाले भाजपा के मंडल अध्यक्ष भी बोले कि उनके क्षेत्र में सभी मुसलमान वहीं के निवासी है.
इसी गाँव के मामले को निशिकांत दुबे ने बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा हिंसा का मामला बनाकर उछाला था
इसी गाँव के मामले को निशिकांत दुबे ने बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा हिंसा का मामला बनाकर उछाला था. दल ने कई गावों का दौरा किया एवं सभी गावों में ग्रामीणों, शहर के लोगों, छात्रों, जन प्रतिनिधियों आदि से पूछा कि किसी को आजतक एक भी बांग्लादेशी घुसपैठी की जानकारी है या नहीं. सबने बोला कि नहीं है. जब पूछा गया कि घुसपैठी की बात कहां सुने हैं, सबने कहा कि सोशल मीडिया पर सुने हैं लेकिन आजतक देखे नहीं हैं. चाहे ज़मीन लेकर बसने की बात हो, आदिवासी महिलाओं से शादी की बात हो या हाल के हिंसा की बात हो, इनमें बांग्लादेशी घुसपैठी का कोई सवाल ही नहीं है.
जितने भी जगह के मामलों को भाजपा ने उठाया है, अधिकांश गावों में सांप्रदायिक हिंसा का कोई इतिहास नहीं है
वर्तमान में पाकुड़ व साहेबगंज में रहने वाले मुसलमान समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शेर्षाबादिया है, जो अनेक दशकों से वहां बसे हैं. इसके अलावा झारखंड में बसे व पड़ोसी राज्यों से आये पसमांदा व अन्य समुदाय हैं. इनमें से अनेक जमाबंदी रैयत हैं और अनेक पिछले कुछ दशक में आसपास के ज़िला/राज्य से आकर बसे हैं. ऐतिहासिक रूप से शेर्षाबादिया मुसलमान समुदाय मुग़ल काल से गंगा के किनारे (राजमहल से वर्तमान बांग्लादेश के राजशाही ज़िला तक) बसे रहे हैं. यह भी महत्त्वपूर्ण है कि जितने भी जगह के मामलों को भाजपा ने उठाया है, अधिकांश गावों में सांप्रदायिक हिंसा का कोई इतिहास नहीं है.
बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने का ही कोई प्रमाण नहीं है
भाजपा लगातार बोल रही है कि बांग्लादेशी घुसपैठिये के कारण पिछले 24 सालों में आदिवासियों की जनसँख्या 10-16% कम हुई है. पहली बात तो बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने का ही कोई प्रमाण नहीं है. दूसरी बात, जनगणना के आंकड़ों के अनुसार संथाल परगना क्षेत्र में 1951 में 46.8% आदिवासी, 9.44% मुसलमान और 43.5% हिंदू थे. वही 1991 में 31.89% आदिवासी थे और 18.25% मुसलमान. आखिरी जनगणना (2011) के अनुसार क्षेत्र में 28.11% आदिवासी थे, 22.73%% मुसलमान और 49% हिंदू थे. 1951 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी 24 लाख बढ़ी है, मुसलमानों की 13.6 लाख और आदिवासियों की 8.7 लाख.
भाजपा द्वारा संसद और मीडिया में पेश किये जा रहे आंकड़े झूठे हैं
यह तो स्पष्ट है कि भाजपा द्वारा संसद और मीडिया में पेश किये जा रहे आंकड़े झूठे हैं . लेकिन कुल जनसँख्या में आदिवासियों का घटता अनुपात गंभीर विषय है और इसके मूल कारणों को समझने की ज़रूरत है. आदिवासियों के अनुपात में व्यापक गिरावट 1951 से 1991 के बीच हुई और अभी भी जारी है. इसके तीन प्रमुख कारण हैं: 1) दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण गैर-आदिवासी समूहों से कम है, 2) संथाल परगना क्षेत्र में झारखंड, बंगाल व बिहार से मुसलमान और हिंदू आकर बसते गए और आदिवासियों से ज़मीन खरीदते गए, 3) संथाल परगना समेत पूरे राज्य के आदिवासी दशकों से लाखों की संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं जिसका सीधा असर उनकी जनसँख्या वृद्धि दर पर पड़ता है.
मुद्दा आदिवासियों की ज़मीन का
इस परिस्थिति से जुड़ा एक प्रमुख मुद्दा है आदिवासियों की ज़मीन का, जो भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति में छुप जा रही है. तथ्यान्वेषण दल ने यह भी पाया कि संथाल परगना टेनेंसी एक्ट का व्यापक उल्लंघन हो रहा है और बड़े पैमाने पर आदिवासी अपनी ज़मीन दान-पत्र व आपसी लेन-देन (जो अनौपचारिक और गैर-क़ानूनी व्यवस्था है) करके गैर-आदिवासियों – मुसलमान व हिंदू – को बेच रहे हैं. संथाल परगना और पास के जिलों/राज्यों के गैर-आदिवासी ज़मीन खरीद रहे हैं. संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में आदिवासी ज़मीन पूर्ण रूप से non-transferable है, जिसे आदिवासी भी नहीं खरीद सकते हैं. लेकिन आर्थिक तंगी में आदिवासी ज़मीन आपसी लेन-देन कर गैर-आदिवासियों को बेच रहे हैं.
ज़मीन का मूल्य
गौर करने की बात है कि संथाल परगना से संटे बंगाल और बिहार में ज़मीन का मूल्य संथाल परगना के non-transferable ज़मीन के अनौपचारिक दाम से कहीं ज्यादा है. क्षेत्र के transferable ज़मीन का मूल्य भी non-transferable ज़मीन के अनौपचारिक मूल्य से कहीं ज़्यादा है. यह भी देखा गया है कि गैर-आदिवासियों की प्रशासन में पहुंच ज्यादा मज़बूत है, जिसके कारण विवाद की स्थिति में अक्सर उनके पक्ष में ही निर्णय होता है.
ऐसा एक भी मामला नहीं मिला, जिसमें बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठिये से शादी हुई हो
भाजपा यह भी फैला रही है कि बांग्लादेशी मुसलमान ज़मीन लूटने के लिए आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं. इस सम्बन्ध में अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य व भाजपा नेता आशा लकड़ा ने 28 जुलाई को प्रेस वार्ता कर एक सूची जारी की, जिसमें संथाल परगना क्षेत्र की 10 आदिवासी महिला जन प्रतिनिधियों और उनके मुसलमान पति के नाम थे. उन्होंने कहा कि रोहिंग्या मुसलमान व बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं को फंसा रहे हैं. तथ्यान्वेषण दल ऐसी कई महिलाओं से मिला. ऐसा एक भी मामला नहीं मिला, जिसमें बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठिये से शादी हुई हो. स्थानीय ग्रामीणों को भी ऐसे किसी मामले की जानकारी नही है. इन 10 में 6 महिलाओं ने स्थानीय मुसलमानों से शादी की है और तीन के पति तो आदिवासी ही हैं.
महिलाओं ने अपनी सहमति और आपसी पसंद से शादी की है
क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं द्वारा हिंदू व मुसलमान गैर-आदिवासियों से शादी करने के कई उदहारण है, पर इन महिलाओं ने अपनी सहमति और आपसी पसंद से शादी की है. यह भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि राजनैतिक दलों और लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर महिलाओं की सूची और उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बातों को प्रसारित करना उनकी निजता के अधिकार का व्यापक उल्लंघन है.
भाजपा के मंसूबे
यह साफ़ है कि भाजपा राज्य के मुसलमानों को बांग्लादेशी घुसपैठी घोषित कर आदिवासियों, हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच सामाजिक व राजनैतिक दरार पैदा करना चाहती है. उसका उद्देश्य है झारखंड के विधान सभा चुनाव के पहले धर्मिक व सामाजिक ध्रुवीकरण पैदा करना.
पूर्व व वर्तमान राज्य सरकार की विफ़लताएं
संथाल परगना में आदिवासियों की सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पूर्व व वर्तमान राज्य सरकार की विफ़लता को भी दर्शाती है. संथाल परगना समेत राज्य के अन्य क्षेत्रों के मूल मुद्दे जैसे – आदिवासियों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति, गैर-आदिवासियों का SPTA का उल्लंघन कर ज़मीन खरीदना, सरकारी नौकरियों पर गैर-आदिवासियों और अन्य राज्यों के लोगों का कब्ज़ा, अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों का अधिक मृत्यु दर दर आदि – पर सरकार की कार्यवाई निराशाजनक है.
झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान की राज्य सरकार से मांगें
- भाजपा व अन्य किसी भी नेता या सामाजिक संगठन द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठिये, लैंड जिहाद, लव जिहाद जैसे शब्दों का प्रयोग, जो विभिन्न घटनाओं को इनके साथ जोड़ने व साम्प्रदायिकता फ़ैलाने के लिए करती है, उनके विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई हो. किसी भी परिस्थिति में समाज के तानेबाने को तोड़ने न दिया जाए.
- गायबथान, तारानगर-इलामी, गोपीनाथपुर, कुलापहाड़ी व केकेएम कॉलेज घटना में पुलिस दोषियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई करें. केकेएम कॉलेज के छात्रावास में छात्रों पर हुई हिंसा के लिए दोषी पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्यवाई हो.
- संथाल परगना टेनेंसी एक्ट का कड़ाई से पालन हो. किसी भी परिस्थिति में आदिवासी ज़मीन गैर-आदिवासी को बेचा न जाए. जल्द से जल्द revisional survey को पूरा कर सर्वे रिपोर्ट जारी हो. पांचवी अनुसूची और पेसा प्रावधानों का कड़ाई से पालन हो.
- साहिबगंज व पाकुड़ समेत संथाल परगना के अन्य ज़िला प्रशासन द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठी की जनता द्वारा जानकारी देने के लिए स्थापित फ़ोन व्यवस्था को तुरंत रद्द किया जाए.
- संथाल परगना समेत राज्य के सभी पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आदिवासियों की आर्थिक स्थिति, कम जनसँख्या वृद्धि दर के कारण, गैर-आदिवासियों का बसना, गैर आदिवासियों का नौकरियों पर कब्ज़ा, आदिवासियों का पलायन आदि पर अध्ययन के लिए राज्य सरकार एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करे. रिपोर्ट में जिन मूल मुद्दों पर चर्चा की गई है, उन पर राज्य सरकार त्वरित कार्रवाई करे.
झारखंड में डेमोग्राफिक बदलाव – भाजपा की राजनीति बनाम आंकड़े व सच्चाई
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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