राधाकृष्ण शतवार्षिकी समारोह का प्रारंभ
“न्याय के दीप जलाएं- 100 दिनी सत्याग्रह” 32 वें दिन में प्रवेश कर गया। आज सत्याग्रह में मजदूर किसान परिषद के चौधरी राजेंद्र तथा वाराणसी के मशहूर एवं समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता फादर आनंद उपवास पर बैठे हैं। मुखर और बेबाक चौधरी राजेंद्र अपने छात्र जीवन में समाजवादी और साम्यवादी छात्र संगठनों के संसर्ग में आए। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सांध्यकालीन सत्र के काउंसलर के रूप में उन्होंने छात्र राजनीति में व्यवस्थित रूप कदम रखा। वैचारिक गोष्ठियों चर्चाओं में शामिल होते रहे और पता ही नहीं चला कि कब इस प्रवाह के अंग बन गए।
प्रवाह की गति ऐसी थी कि खुद भी गतिमान हुए और औरों को भी गतिशील करते हुए साढ़े चार दशक बीत गए। डॉ स्वाति की प्रेरणा से 1995 में समाजवादी जन परिषद से जुड़ाव बन गया और किसानों के मोर्चे पर लग गए। मजदूर किसान परिषद और संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसानो की समस्याओं और मुद्दों को उठते रहे हैं। दिल्ली के बॉर्डर पर 13 महीने तक चले किसान आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करते हुए पूर्वांचल के किसानों को भी संगठित किया।
ईसा और गांधी के विचार एक जैसा -फादर आनंद
फादर आनंद विगत 3 दशकों से वाराणसी में सामाजिक परिवर्तन के कामों को सहयोग देने में सक्रिय रहे हैं। आज से लगभग 50 वर्ष पहले 25 जून 1975 को जब गए बनारस आए, तो उनकी भूमिका एक पुरोहित की थी। उन्हें समाज में व्याप्त भेदभाव और विषमताएं व्यथित करती थी। अन्याय, अत्याचार, शोषण सहन नहीं कर पाते थे। धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि समाज से आरती के आर्थिक जाति और धर्म के आधार पर होने वाले अन्याय दूर किए जाने चाहिए। इस तरह ईसा मसीह और महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित आनंद समाज सुधारक में बदलते चले गए। उनकी सोच है कि ईसा और गांधी का विचार एक जैसा है।
अदृश्य बंधन दिखने वाले बंधनों से कहीं ज्यादा खतरनाक
ईसा कहते हैं कि दरिद्र को सुसमाचार, अंधों को दृष्टि और बंदियों को मुक्ति चाहिए और गांधी कहते हैं जो कुछ भी करो अंतिम जन का ध्यान रख कर करो। बरसों तक वे प्रेरणा कला मंच के माध्यम से दिमागी गुलामी के अदृश्य बंधनों को गीतों और नाटकों के सहारे खोलने में लगे रहे। ये अदृश्य बंधन दिखने वाले बंधनों से कहीं ज्यादा खतरनाक और मजबूत होते हैं।
आज समाजवादी आंदोलन के तेजस्वी नेता और विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया का निर्वाण दिवस तथा सर्व सेवा संघ के पूर्व मंत्री राधाकृष्ण की जयंती है। आज से राधाकृष्ण शतवार्षिकी समारोह का प्रारंभ हो रहा है। सत्याग्रह स्थल पर दोनों विभूतियों को याद किया गया और उन्हें हार्दिकता के साथ श्रद्धांजलि दी गई। सर्व सेवा संघ के पूर्व मंत्री राधाकृष्ण एक मेधावी छात्र थे, जिन्हें सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पहचाना और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए प्रेरित किया। इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री में उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद वे नौकरी करने की बजाय सेवाग्राम चले गए। नई तालीम के प्राचार्य बने फिर बाद में विनोबा जी के कहने पर सर्व सेवा संघ के मंत्री बने और सपरिवार राजघाट, वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में रहने लगे।
गांधियन इंस्टिट्यूट को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने हड़प लिया है
इस परिसर को व्यवस्थित करने में उनकी यादगार भूमिका रही है। जयप्रकाश नारायण ने राधाकृष्ण के एकेडमिक सामर्थ्य को देखते हुए गांधियन इंस्टीट्यूट के संचालन समिति में रखा था। आज इसी गांधियन इंस्टिट्यूट को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने हड़प लिया है। राधाकृष्ण एवं नारायण देसाई ने नगा और कश्मीर के मसले पर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहे प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जयप्रकाश नारायण ने उन दोनों को कोडईकनाल में नजर बंद कर रखे गए शेख अब्दुल्ला से बातचीत के लिए भेजा। इस बातचीत की रिपोर्ट के आधार पर शेख अब्दुल्ला को रिहा किया गया।
1962 से 1969 तक सर्व सेवा संघ परिसर में रहने के बाद उन्हें गांधी शांति प्रतिष्ठान का सचिव नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने 21 वर्षों तक सेवा दी। राधा कृष्ण अपने जीवन के अंतिम कालखंड में गांधी पीस सेंटर की स्थापना की और आजीवन युवाओं को सामाजिक कार्य की ओर उन्मुख और सहयोग करने में लगे रहे।
डॉ. लोहिया ने राजनीति की सामाजिक संरचना को बदलने का खाका तैयार किया था – महेश विक्रम
इस अवसर पर समाजवादी चिंतक महेश विक्रम ने कहा कि डॉ. लोहिया ने राजनीति की सामाजिक संरचना को बदलने का खाका तैयार किया था, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय के रास्ते सामाजिक समता के लक्ष्य तक पहुंचना था। राजनीति का सामाजिक ताना-बाना तो बदल गया, सामाजिक न्याय भी एक हद तक हासिल हुआ, लेकिन सामाजिक समता का लक्ष्य अभी अधूरा है । डॉक्टर लोहिया को याद करने का अर्थ है समता की चाह को जीवित रखना। जागृति राही ने लोहिया जी के बारे में अपना मंतव्य रखा कि उस जमाने में नर- नारी समता की बात करने वाले अप्रतिम राजनेता थे। उन्होंने मिथकों को सकारात्मक अर्थ देने का प्रयास किया है।
राम धीरज ने राधा कृष्ण को याद करते हुए कहा कि उन्होंने गांधी विचार को संस्थागत रूप देने का अद्वितीय उद्यम किया है। युवाओं को जोड़ना और सामाजिक जीवन में उनकी निरंतरता बनाए रखने की व्यवस्था करना उनका एक यादगार योगदान है।
सत्याग्रह में चौधरी राजेंद्र और फादर आनंद के अलावा जागृति राही,प्रो महेश विक्रम, सिस्टर फ्लोरिन, राम दयाल, ईश्वरचंद्र, महेन्द्र ,अभिनव त्रिपाठी,जितेन्द्र राजभर, मीनू, संध्या, पुष्कर, कैलाश विनोद, जोखन यादव,राम पाल तारकेश्वर सिंह,अनूप आचार्य, आर्यन, सुरेंद्र ना सिंह,अर्थ सिंह आदि सहभागी रहे।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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