लाखों परित्यक्ताओं की अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण और धर्म विरोधी कृत्य
रीवा 24 अप्रैल। नारी चेतना मंच ने देश की लाखों परित्यक्ताओं के नारकीय जीवन के सवाल को उठाते हुए उन्हें सामाजिक रूप से प्रतिष्ठा दिलाने की मांग की है। देखने में आ रहा है कि बड़ी संख्या में परित्यक्ताओं को बेहद अपमानजनक परिस्थितियों में जीवन यापन करना पड़ता है। दर-दर की ठोकरें खाकर किसी तरह जिंदगी गुजारनी होती है। पापी पेट का सवाल उन्हें गलत रास्ते पर भी ले जाने को मजबूर कर देता है। सरकार के पास उनके उत्थान के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। अपवाद में कुछ परित्यक्ताओं को छोड़ दें तो ज्यादातर आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी बुरी हालत में हैं। पति द्वारा छोड़ी गई ऐसी महिलाओं में अधिकांश के बाल बच्चे नहीं हैं। बुढ़ापे में उनकी देख रेख भी गंभीर सामाजिक समस्या है।
राजनीतिक दलों का चरित्र भी पुरुष प्रधान समाज को बढ़ावा दे रहा है
नारी चेतना मंच ने कहा कि राजनीतिक दल भी परित्यक्ताओं के सवाल को नहीं उठाते हैं। चुनावी घोषणा पत्र में भी इनका जिक्र नहीं होता है। वर्तमान दौर में राजनीतिक दलों का चरित्र भी पुरुष प्रधान समाज को बढ़ावा दे रहा है जिसके चलते किसी भी राजनीतिक दल के द्वारा परित्यक्ताओं के सवाल को नहीं उठाया जा रहा है।
परित्यक्ताओं को ससुराल में जगह नहीं मिलती
नारी चेतना मंच ने कहा कि परित्यक्ता मांग में सिंदूर भर सकती है , पांव में माहुर लगा सकती है, बिछिया पायल पहन सकती है, मेंहदी लगा सकती है, मंगलसूत्र पहन सकती है, श्रंगार कर सकती है, पति का नाम जप सकती है , तीजा व्रत रख सकती है, लेकिन अपने पति के साथ नहीं रह सकती और न ही अपने पति पर किसी तरह का अधिकार जता सकती है। देश में लाखों परित्यक्ताएं नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। ऐसी परित्यक्ताओं को ससुराल में जगह नहीं मिलती। उन्हें अपने मायके की शरण में जाना पड़ता है। यदि मायके के लोग सक्षम नहीं है तो उनका जीवन और कठिन हो जाता है। पति के जीवित रहते हुए भी इनका जीवन बहुत कष्टप्रद रहता है।
पहले विवाह के कटु अनुभव के चलते दूसरे विवाह के बारे में परित्यक्ताएं सोच नहीं पातीं। तीन तलाक़ के विरोध में आवाज उठाने वाले परित्यक्ताओं को न्याय दिलाने के बारे में चुप क्यों हैं ? लाखों परित्यक्ताओं की अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण और धर्म विरोधी कृत्य है।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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