केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति ने मांग की है कि शेष 28 गाँवों के नाम भी सार्वजनिक करे विभाग
महुआडाँड़ – 24 सितंबर
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा 19 जून 2024 को पत्रांक 15 – 3/2024 एन.टी.सी.ए. चीफ वाइल्डलाइफ वॉर्डन, कर्नाटक सरकार को भेजे गए पत्र में स्पष्ट बताया गया है कि 19 राज्यों में 53 बाघ रिजर्व क्षेत्र हैं। इन 53 बाघ सुरक्षित क्षेत्र के कोर एरिया में 591 गाँव में 64801 परिवार रहते हैं। इसी पत्र में जारी सूची के अनुसार झारखंड का एकमात्र ‘पलामू बाघ रिजर्व क्षेत्र है, जिसके कोर एरिया में 35 गाँव के 5070 परिवारों का विस्थापन एवं उनका पुनर्वास किया जाना है, परन्तु अभी तक वन विभाग ‘पलामू बाघ रिजर्व एरिया में सिर्फ 8 गाँव के कोर एरिया में होने का दावा कर रहा है, लेकिन 8 गाँव के अतिरिक्त और 27 गाँव कौन-कौन हैं इसका उल्लेख नहीं करता।
केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार गुमला ने विभाग से मांग की है कि इन गाँवों के नाम भी सार्वजनिक करे। समिति को शक है कि कर्नाटक सरकार की तरह झारखंड के चीफ वाइल्डलाइफ वॉर्डन को भी पत्र प्रेषित किया गया होगा।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक गाँव विस्थापन और पुनर्वास की प्रक्रिया बहुत धीमी
पत्र में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण उल्लेखित करता है कि गाँव विस्थापन और पुनर्वास की प्रक्रिया बहुत धीमी है और बाघ संरक्षण के मद्देनजर यह एक गंभीर चिंता का विषय है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण पत्र में राज्य के चीफ र्वाइल्डलाइफ र्वार्डेन से गांर्वों के विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर लेने और बाघ रिजर्व के कोर क्षेत्रों से सुचारु विस्थापन और पुनर्वास के लिए एक समय सीमा तय करने के निर्देश दिए गए हैं। पत्र में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने राज्य सरकार को गांवों के विस्थापन और पुनर्वास की योजनाओं के बारे में सूचित करने और नियमित रूप से विस्थापन और पुनर्वास की प्रक्रिया की समीक्षा के आदेश भी दिए हैं।
‘स्वैच्छिक गाँव पुनर्वास’
केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने इस मामले पर कहा,”ध्यान देने की बात यह है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने पत्र में बाघ रिजर्व के कोर एरिया की व्याख्या करते हुए वनजीव संरक्षण अधिनियम 1972(2006 में संशोधित) की धारा 38(v) (4) (i) का उल्लेख करते हुए कहता है कि ‘नेशनल पार्क और अभ्यारण’ के कोर क्षेत्र या मुख्य बाघ आवास खतरे में हैं, जहाँ वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ मापदंडों के आधार पर स्थापित किया गया हो कि ऐसे क्षेत्रों को बाघ संरक्षण के उद्देश्य से सुरक्षित रखा जाना चाहिए। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि 2006 में वन्यजीवों संरक्षण कानून 1972 में किए संशोधनों ने बाघ संरक्षण के लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाने के उद्देश्य से पारस्परिक रूप से सहमत नियमों और शर्तों पर ‘स्वैच्छिक गाँव पुनर्वास’ की आवश्यकताएं निर्धारित की थी।
साथ ही पत्र द्वारा 2010 में ‘स्वैक्षिक ग्राम विस्थापन और पुनर्वास’ को लेकर जारी किए गए दिशानिर्देशों और 8 अप्रैल 2021 को पुनर्वास पैकेज को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये करने करने वाले निर्देश को भी उल्लेखित किया है।”
..अनदेखी करते हुए इस तरह से विस्थापन का आदेश
उन्होंने आगे कहा कि यह बहुत ही चौंकाने वाला और चिंताजनक विषय है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने मौजूदा कानूनों और संरक्षण ढांचे का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए और वन पर निर्भर समुदायों के अधिकारों और देश की जैव-विविधता और वन्य जीवन के संरक्षण में उनकी भूमिका की अनदेखी करते हुए इस तरह के विस्थापन का आदेश जारी किया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण न केवल वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 ( संशोधित 2006) की अनुसूचित और गलत व्याख्या प्रदान करता है। बल्कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 का जान बूझकर की गई उपेक्षा भी दिखाता है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के आदेश के परिणाम स्वरूप आने वाले भविष्य में बड़े पैमाने पर बेदखली, विस्थापन और जमीन से समुदाय के अलगाव की स्थिति पैदा होगी। साथ ही वनों पर निर्भर समुदायों और लोग खुद को आर्थिक और सामाजिक असुरक्षाओं के जकड़ में पाएंगे.
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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