कलकत्ता उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीश शम्पा सरकार की अदालत में हुई सुनवाई
जब सरकार से न्याय नहीं मिला तो हाई कोर्ट की शरण में गए
आदिवासी नेगाचारी कुड़ुमि समाज की तरफ से आज 10 जुलाई 2024 को इसके अध्यक्ष अनुप महाता द्वारा दायर रिट पिटीशन संख्या WPC 17924/2023 की सुनवाई कलकत्ता उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीश शम्पा सरकार की अदालत में हुई। अधिवक्ताओं के सुनने के पश्चात न्यायाधीश ने उक्त रिट पिटीशन को स्वीकार कर लिया। सुनवाई में उपस्थित सभी पक्षों के अधिवक्ताओं ने सरकार और अन्य पक्षों की तरफ से नोटिस स्वीकार कर लिया अतः न्यायाधीश ने सभी पक्षों को 6 सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने और पिटीशनर को 2 सप्ताह में अपना रिज्वांईडर दायर करने का आदेश दिया।
पिटीशनर के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने कई साक्ष्य किये प्रस्तुत
इससे पहले पिटीशनर के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने अदालत को बताया कि जब अंग्रेजों ने 1865 का भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम लागू किया तब छोटानागपुर के सारे आदिवासियों ने उसका विरोध किया, जिसके बाद अंग्रेजों ने 3.5.1913 के नोटिफिकेशन नबर 550 द्वारा आदिवासियों को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम से बाहर कर दिया. उन्होंने आगे बताया कि जब अंग्रेजों ने जब भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू किया, तब भी आदिवासियों को 16.12.1931 के नोटिफिकेशन 3563 जे के द्वारा उस कानून के घेरे से बाहर रखा.
हम 70 वर्षो से सरकार के साथ पत्र व्यवहार कर रहे हैं पर सरकार बता नहीं रही है -अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव
उन्होंने आगे बताया कि अनुच्छेद 342 के अनुसार राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल से मशवरा कर किसी कम्युनिटी को नोटिफिकेशन द्वारा आदिवासी घोषित कर कते हैं या संसद कानून बनाकर किसी कम्युनिटी को आदिवासी की लिस्ट से हटा सकती है या जोड़ सकती है। पर 10 अगस्त 1950 को जब नोटिफिकेशन द्वारा आदिवासियों की लिस्ट जारी की गयी, तब राष्ट्रपति और राज्यपाल के बीच क्या विमर्श हुआ इसका कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है। हम 70 वर्षो से सरकार के साथ पत्र व्यवहार कर रहे हैं पर सरकार बता नहीं रही है।
झारखंड सरकार पिटीशन का विरोध कर रही है और पश्चिम बंगाल सरकार समर्थन !
उन्होंने आगे कहा, ‘झारखण्ड उच्च न्यायालय ने ऐसे ही पिटीशन को स्वीकार कर लिया है, पर इस पिटीशन और झारखण्ड के पिटीशन में पहला फर्क है कि झारखंड सरकार हमारे पिटीशन का विरोध कर रही है और पश्चिम बंगाल सरकार हमारा समर्थन कर रही है. दूसरा राष्ट्रपति और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के बीच ही कोई विमर्श हुआ होगा हमारा नाम एसटी लिस्ट से हटाना के लिए।
राष्ट्रपति और राज्यपाल का विमर्श बतायें या गलती सुधारे
उन्होंने आगे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2022 में सिविल रिट पिटीशन नंबर 7117 of 2019; प्रिया प्रमोद गजबे बनाम महाराष्ट्र सरकार में दिये गये आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उक्त आदेश में कहा गया है कि अगर संविधान बनने के पहले कोई जाति प्रमाणपत्र है तो उसकी प्रोवेटिव महत्व है पर हमारे पास तो अंग्रेज सरकार का दो नोटिफिकेशन है। अतः सरकार को आदेश दिया जाय कि या तो राष्ट्रपति और राज्यपाल का विमर्श बतायें या गलती सुधारे और हमारा नाम एसटी लिस्ट मे शामिल करे।
अपने दावों की सत्यता को प्रमाणित करने की कोशिश की गई है
ज्ञातव्य है कि पिटीशनर ने रिट पिटीशन में डाल्टन, रिजले और गिअरसन जैसे ख्यातिलब्ध विद्वानों की पुस्तकों यथा Tribes & Caste of Bengal, Ethnographic Grossary, Census of India, Vol. VII Bihr & Orissa Part I, Report 1, माननीय पटना उच्च न्यायालय का कृतीबास महतो बनाम बुधन महतानी का आदेश और के एस सिंह की पुस्तक People of India – Bihar including Jharkhand में दिये गये archeological और anthropological तथ्यों को उद्धृत करते हुए अपने दावों की सत्यता को प्रमाणित करने की कोशिश की है!
कुड़मियों के आदिवासी होने के जेनेटिक प्रमाण भी हैं
पिटीशनर ने कहा कि अब तो कुड़ुमियों के आदिवासी होने के जेनेटिक प्रमाण भी हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त जेनेटिसिस्ट श्री ज्ञानेश्वर चौबे ने कुड़ुमियों के 180 Blood samples की जांच कर कहा है कि कुड़ुमियों के mitochondrial DNA में M31 म्यूटेशन मिला जो अंदमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले सबसे पुराने आदिवासी समूह मिला था जिससे यह प्रमाणित होता है कि कुड़ुमी भी इस देश के सबसे पुराने आदिवासी हैं और छोटानागपुर के पठार पर 65000 साल से रह रहे हैं! उन्होंने कहा कि जब सरकार से न्याय नहीं मिला तो माननीय हाई कोर्ट की शरण में गए। उन्होंने कहा कि 1950 की अधिसूचना में भूल हुई है हमने माननीय उच्च न्यायालय से इंतजा की है कि वे भारत सरकार को उस भूल को सुधार कर कुड़ुमियों को फिर से ST List में शामिल करने का निर्देश देने की कृपा करें।
अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और आकाश शर्मा ने इस मामले की पैरवी की।
#kudmi सबसे पुराने आदिवासी है कैसे ? | Kudmi St inclusion |
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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