
वे दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक तथा शिक्षा आंदोलन में सक्रिय थे
एक शिक्षक, लेखक और मानव अधिकारों के निरंतर संघर्ष करने वाले प्रोफेसर एन. साईबाबा की 12 अक्टूबर, 2024 को हैदराबाद के एक हॉस्पिटल में दुःखद मृत्यु पर समाजवादी शिक्षक मंच ने गहरा शोक और उनकी पत्नी तथा परिवार के प्रति गहरी संवेदना प्रगट किया है । इस संबंध में मंच के शशि शेखंर सिंह ने कहा कि प्रोफेसर साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और अपनी 90% शारीरिक विकलांगता तथा सतत व्हील चेयर पर होने के बावजूद न सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक तथा शिक्षा आंदोलन में सक्रिय थे, बल्कि देश में नागरिक अधिकार आंदोलन तथा आदिवासी व समाज के वंचित समूह के न्याय के संघर्ष में सक्रिय भागीदार थे।
मार्च 2024 में 10 वर्षों की यातना के बाद वे बेगुनाह साबित होकर बरी हो गए थे
महाराष्ट्र सरकार द्वारा माओवादियों से उनके रिश्ते के झूठे केस में फंसाकर उन्हें महाराष्ट्र पुलिस ने यू.ए. पी. ए. में गिरफ्तार कर लिया और अंततः 2017 में सेशन कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी। रामलाल आनंद कॉलेज ने उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया।जेल में तमाम यातनाओं को सहते भी वे सरकार के झूठ के आगे नहीं झुके। 2022 में मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर बेंच के द्वारा वे बरी हो गए, किंतु सरकार फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई और सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय को फिर से फैसले पर विचार करने के लिए नागपुर बेंच को कहा, लेकिन उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने इस झूठे मुकदमे में उन्हें बरी करने के अपने फैसले को बरकरार रखा और मार्च 2024 में 10 वर्षों की यातना के बाद वे बेगुनाह साबित होकर बरी हो गए ।
प्रोफेसर एन. साईबाबा की मृत्यु व्यवस्था के द्वारा की गई हत्या है -मंच
अब लगभग सात महीने के बाद हैदराबाद के अस्पताल में एक शिक्षक और देश में निरंतर आदिवासियों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा की मृत्यु की खबर शिक्षा जगत और मानवाधिकार आंदोलन के लिए एक बड़ी क्षति है और समाजवादी शिक्षक मंच ने उनकी मृत्यु को व्यवस्था के द्वारा की गई हत्या करार देते हुए रामलाल आनंद कॉलेज तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से यह मांग की है कि उनके परिवार को झूठे मुकदमे में गिरफ्तारी के बाद निलंबन और अंततः नौकरी से बर्खास्तगी से लेकर मृत्यु तक के पूरे काल का पूरा वेतन दे और मृत्यु के बाद पारिवारिक पेंशन दे।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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