कहा, “ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों को ताक पर रखकर हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को स्वीकृति देना दुर्भाग्यपूर्ण”
छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के समृद्ध वन क्षेत्र में पर्यावरण की चिंताओं और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार कर दी गई खनन की अनुमति को निरस्त करने की मांग पर झारखंड के जन संगठनों (नेतरहाट केन्द्रीय जन संघर्ष समिति, विस्थापित मुक्ति वाहिनी, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, झारखंड नव निर्माण अभियान, जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी, आदिवासी हो महासभा, आदि संस्कृति विज्ञान संस्थान कोल्हान, झारखंड लोकतान्त्रिक महासभा, झारखंडी आदिवासी वुमेन एसोशिएशन, एकल नारी सशक्तिकरण संगठन झारखंड, सर्वोदय मंडल, झारखण्ड जनाधिकार महासभा ) ने एक जुट होकर आज 4 मई 2022 के देशव्यापी प्रदर्शन का समर्थन किया है.
170,000 हेक्टेयर घने समृद्ध जंगल का विनाश निश्चित है
इस सम्बन्ध में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा गया है कि द्वाराभारी जन-विरोध को नज़रअंदाज़ कर हसदेव की ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों को ताक पर रखकर, केंद्र व राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दी है. अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि छत्तीसगढ़ शासन ने परसा खदान को एक फ़र्जी ग्राम सभा के आधार पर ही अंतिम मंजूरी दे दी है. साथ ही परसा ईस्ट केते बासेन खदान के द्वितीय चरण विस्तार को भी शुरू करने की हरी झंडी दे दी है. इन दोनों परियोजनाओं से सैंकड़ों आदिवासी विस्थापित तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे तथा 170,000 हेक्टेयर घने समृद्ध जंगल का विनाश निश्चित है.
फर्जी ग्राम सभा की जांच अभी तक लंबित
हसदेव अरण्य क्षेत्र के प्रभावित ग्रामीणों के अनुसार परसा कोल ब्लॉक के लिए फर्जी ग्राम सभा के आधार पर ही वन-भूमि व्यपवर्तन की स्वीकृति दी गयी है, जिसकी जांच एवं निरस्तीकरण के लिए पिछले 3 वर्षों से आदिवासी समुदाय हरसंभव प्रयास कर चुके हैं. पिछले अक्टूबर में ही लोगों ने हसदेव से 300 की॰मी॰ पदयात्रा की और राजधानी रायपुर पहुँच कर राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री से मिलकर इस पूरे मामले पर विस्तृत ज्ञापन भी सौंपा.
राज्यपाल के निर्देश की अवहेलना
राज्यपाल ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर इसकी निष्पक्ष जांच और उसके निराकरण से पहले किसी भी अन्य कार्यवाही पर रोक लगाने के निर्देश भी दिये थे, परंतु यह जांच अब तक लंबित है और इस बीच ही यह स्वीकृति प्रदान करना कानूनी प्रक्रियाओं एवं संवैधानिक मर्यादाओं की अवमानना है. ऐसी स्थिति में आदिवासी समुदाय के लिए बने जन पक्षीय कानूनों–पेसा एक्ट 1996, वनाधिकार मान्यता कानून 2006 तथा संविधान की पाँचवी अनुसूची के अधिकारों का पूर्णतया उल्लंघन कर खनन के पक्ष में स्वीकृति जारी करना गैरकानूनी है.
एक दशक से भी लंबे जन-संघर्ष को दरकिनार किया गया
पिछले एक दशक से लगातार हसदेव अरण्य को बचाने के लिए यहाँ पर निवासरत गोंड, उरांव, पंडो एवं कंवर आदिवासी समुदाय संघर्षरत हैं. कोयला खनन परियोजनाओं का हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने पाँचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996 तथा वनाधिकार मान्यता कानून 2006 से प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर लगातार विरोध किया. इस संबंध में खनन परियोजनाओं के आवंटन एवं स्वीकृति प्रक्रियाओं में गड़बड़ियों को उजागर करते हुए हजारों पत्र लिखे. प्रत्येक स्तर पर तहसील, ज़िला, राज्य तथा राष्ट्रीय संवाद एवं अनुरोध के कई प्रयास भी किए.
स्थानीय शासन-प्रशासन की भूमिका अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण
लोकतान्त्रिक माध्यम से विरोध कर अनेक रैलियां, धरने, सम्मेलन, 75 दिवसीय प्रदर्शन, 300 की॰मी॰ रायपुर पदयात्रा इत्यादि भी किए. संविधान तथा कानूनों के तहत मिले सभी अधिकारों का उपयोग कर उन्होंने अपने जल-जंगल-ज़मीन तथा उसपर निर्भर जीवन-यापन, आजीविका और संस्कृति को बचाने के हर संभव प्रयास भी किए हैं. ऐसे में स्थानीय शासन-प्रशासन की भूमिका अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है, जो जबरन सारे विरोध को कुचल कर गैरकानूनी रूप से खनन परियोजनाओं को शुरू करने पर उतारू है.
सभी पर्यावरणीय चिंताओं को नज़र-अंदाज़ किया गया
छत्तीसगढ़ में सरगुजा एवं कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध, जैव विविधता से परिपूर्ण वन-क्षेत्रों में गिना जाता है, जिसको अकसर “छत्तीसगढ़ के फेफड़ों” की संज्ञा भी दी जाती है. वैसे तो इस क्षेत्र को 2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित किया गया था, परंतु यहां बड़े-पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन किया गया है, जिससे इस सम्पूर्ण क्षेत्र के विनाश के बादल लगातार मंडरा रहे हैं. यह क्षेत्र हसदेव नदी एवं बांगों बांध का कैचमेंट भी है, जिससे जांजगीर-चांपा ज़िले की लगभग 3 लाख हेक्टेयर द्वि-फ़सलीय भूमि सिंचित होती है.
हसदेव अरण्य समृद्ध जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है
कुछ समय पहले प्रस्तुत WII (भारतीय वन्य जीव संस्थान) की रिपोर्ट में लिखा था, कि हसदेव अरण्य समृद्ध जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है. इसमें कई विलुप्त प्राय वन्यप्राणी आज भी मौजूद हैं.
संघर्षरत संगठनों द्वारा यह चेतवानी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई तो मानव-हाथी संघर्ष की स्थिति को संभालना लगभग नामुमकिन होगा.
ऐसी स्थिति में जब एक दशक से आंदोलनरत आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों और ग्राम सभा के सम्मान का हनन कर केवल कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए रास्ता खोला जा रहा है, हसदेव के ऐतिहासिक जन-संघर्ष के साथ खड़े हैं और उसके लिए हर-संभव प्रयास के लिए संकल्पित हैं. जन संगठनों ने इस पर सरकार के हस्तक्षेप के साथ कुछ मांगें रखी हैं, जो इस प्रकार हैं-
सरकार के समक्ष मांगें
1) तुरंत दोनों खदानों की अंतिम मंजूरी वापिस ली जाय.
2) फर्जी ग्राम सभा की जांच कर संबन्धित अधिकारियों पर कार्यवाही की जाय.
3) लोकतान्त्रिक जन-संघर्ष और ग्राम सभा के अधिकारों का सम्मान किया जाय
4) दबावपूर्वक खनन शुरू करने की कंपनी की कोशिशों पर अति-शीघ्र संज्ञान लेकर रोक लगाई जाय.
5 ) सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित किया जाय.
6) हसदेव में आंदोलन को कुचलने के लिए 10 आदिवासियों पर दिनांक 15-04-2022 को किए गए एफ.आई.आर को वापस लिया जाय.
7) परसा कोयला खदान हेतु शुरू की गई पेड़ो की कटाई पर तत्काल रोक लगाई जाए.
8) प्राकृतिक परिवेश को नष्ट करने वाली योजनाओं को बंद किया जाय.
9) विध्वंस और विलासिता के लिए खनिज को उपयोग रोका जाय.
10) खनिज पर वर्तमान पीढ़ी ही नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों का भी हक निश्चित किया जाय.
सरायकेला खरसावां : डोबो पारंपरिक ग्राम सभा की बैठक में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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