
दो दिवसीय महिला कार्यशाला सह महिला दिवस का आयोजन पड़ियारपी, चाईबासा में संयुक्त महिला महिला समिति फोरम के तत्वावधान में आयोजित किया गया, इस दौरान स्वागत भाषण एवं विषय प्रवेश कराते हुए ज्योत्सना तिर्की ने कहा, “महिलाएं जननी हैं, सशक्त हैं और यह सब महिलाओं को हर हाल में हर परिस्थिति में हमें संघर्षशील रहने और नव निर्माण करना हमें प्रकृति सिखाती है, जो हजारों वर्षों से पोषण करती आई है। यहां की समृद्ध परम्पराएं जो सहजीवन, दोहन-शोषण रहित जीवन के मूल्यों पर आधारित रही हैं । इसी राह पर हमारे पूर्वजों (महिला-पुरुषों) ने चल कर हमें सुदृढ़ थाती सौंपी है, अब हमें इस मूल परंपरा को अपने आने वाली पीढ़ी को सौंपना है। हमें इन दो दिनों में इन बिंदुओं पर अपने ध्यान को केंद्रित करना है, ताकि हम अपने अपने जगहों पर वापस लौट कर संकल्पों को क्रियान्वित करें-
1. सामूहिक प्रयास : सभी हितधारकों को मिलकर काम करने की आवश्यकता।
2. कानूनी सुधार : कानूनों को और प्रभावी ढंग से लागू करना।
3. जागरूकता : समुदायों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना।
4. सतत विकास : पर्यावरण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना।
कार्यक्रम में आदिवासी स्वशासन और पेसा कानून में महिलाओं की भूमिका, पर्यावरण और जंगल से महिलाओं का जुड़ाव, वन और कृषि उत्पादों का महिलाओं द्वारा व्यवसाय,महिला मजदूर और कानूनी व्यवस्था एंव सरकारी योजनाएं विषय पर वक्ताओं ने अपने अनुभव और जानकारी साझा की जिनमें मुख्य रुप से शांति सवैंया, बहन रिंजी लेपचा, शीतल बागे, सरस्वती सिंकू, शिवानी मार्डी, सरस्वती कुददा, सीता सुंडी, लक्ष्मी सिरका, जयंती जोंकों, सुनील पूर्ति, मईया सोरेन, अनमोल पिंगुआ थे। हर सत्र के चर्चा किये गये मुख्य बिंदु ये हैं-
आदिवासियों की परंपरागत मजबूत स्वशासन व्यवस्था
मुंडा-मानकी व्यवस्था, मंझी-परगना, डोकलो-सोहोर, पड़हा-पंचैत आदिवासियों की परंपरागत मजबूत स्वशासन व्यवस्था रही है। नीतिगत फैसलों के बाद सरकार ने पेशा कानून बनाया जिससे समुदायों को स्वशासन का अधिकार देना, न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है,यह उनकी संस्कृति, परंपराओं और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। लेकिन आज भी आदिवासी समुदायों को इन अधिकारों को जमीन पर उतारना बाकी है। महिलाओं को परंपरागत पद्धति और पेशा कानून में महिलाओं भागीदार बनना है। हमारी चुनौतियां अनेक हैं जिसका सामना हमें करना है।
वन अधिकार और पर्यावरण
वन अधिकार और पर्यावरण,वन अधिकार के तहत वन अधिकार अधिनियम, 2006 आदिवासियों और मूल-निवासियों को उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। वन हमारे पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनका संरक्षण न केवल जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद करता है, बल्कि जैव विविधता को भी बनाए रखता है।
कृषि और वन उत्पाद में कृषि का बहुत महत्व है यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है आदिवासी और ग्रामीण समुदायों के लिए यह आजीविका का मुख्य स्रोत है।
वन उत्पादों की भूमिका में वन उत्पाद जैसे शहद,पत्ते,जड़ी-बूटियां और लकड़ीयां आदिवासी समुदायों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इनका सतत उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है। वनों के क्षरण को रोका जाना चाहिए । महिला मजदूर अधिकार विषय में मजदूरों की स्थिति विशेषकर आदिवासी महिला मजदूर और ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूरों, को अक्सर उचित मजदूरी और कामकाजी अनुकूल परिस्थितियों की कमी का सामना करना पड़ता है। कानूनी सुरक्षा के प्रावधानों से मजदूर अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचे को ज्यादा मजबूत करना और उन्हें लागू करना आवश्यक है।
अंत में खेल-कूद का आयोजन
कार्यकम के अंत में खेल-कूद का आयोजन हुआ, जिसमें उपस्थित सभी महिलाओं ने उत्साह से भाग लिया, जिसका संचालन बहन रिंजी और लक्ष्मी सिरका ने किया । पश्चिमी सिंहभूम,पूर्वी सिंहभूम और सराईकेला-खरसंवा की 70 महिलाओं ने इस कार्यक्रम में शिरकत की अंत में धन्यवाद ज्ञापन सुशीला बोदरा ने किया उसने कहा कि महिलाओं की भूमिका और अधिकार कृषि, वन उत्पादन और घरेलू अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाती हैं। वे माता,बेटी,बहू और मजदूर के रूप में उन्हें समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए। हमारा सशक्तिकरण महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनैतिक भागीदारी और आर्थिक संसाधनों तक पहुंच प्रदान करके हम समाज को और मजबूत बना सकते हैं।

शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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