राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने बताया है कि 13 अगस्त को आयोजित की गई तीसरी लोक अदालत में एक करोड़ से भी ज्यादा मामलों का फैसला किया गया. इनमें 25 लाख लंबित मामले थे और 75 लाख मामले प्री-लिटिगेशन यानी मुकदमा शुरू होने से पहले के चरण में थे.
राजस्थान में लोक अदालत का बिजली बिल उपभोक्ताओं में भारी उत्साह: राष्ट्रीय लोक अदालत में जिला चित्तौड़गढ में बिजली बिल के उपभोक्ताओं ने भारी उत्साह प्रदर्शित किया, बिल की आधी राशि में राजीनामा कर उठाया लोक अदालत का फायदा, pic.twitter.com/0dx93d4h7B
— National Legal Services Authority (NALSA) (@NALSALegalAid) August 13, 2022
क्या होती है लोक अदालत ?
लोक अदालतों की शुरुआत एक वैकल्पिक विवाद निवारण प्रक्रिया के तौर पर की गई थी. इनका तालुका, जिला, हाई कोर्ट और राज्य प्राधिकरण स्तर पर आयोजन किया जाता है. 2015 से राष्ट्रीय स्तर पर भी लोक अदालतों का आयोजन किया जा रहा है. इनमें अदालतों में लंबित मामले या ऐसे मामले जिनमें अभी मुकदमा शुरू नहीं हुआ है उठाए जाते हैं और उन पर परस्पर सम्मति से फैसला या समझौता कराया जाता है. इन्हें वैधानिक दर्जा प्राप्त है और इनके फैसलों को एक सिविल कोर्ट का आदेश माना जाता है.
इनके फैसले अंतिम और सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं. इन फैसलों के खिलाफ कहीं अपील नहीं की जा सकती लेकिन अगर किसी को किसी फैसले से असंतुष्टि हो तो वो उपयुक्त अदालत में मुकदमे की शुरुआत कर सकता है. लोक अदालतों में अदालती शुल्क नहीं लगता है. बल्कि किसी अदालत में लंबित मामले पर अगर लोक अदालत में समाधान निकल आता है तो सभी पक्षों का अदालती शुल्क लौटा दिया जाता है.
इन अदालतों में फैसला करने वालों को जज की जगह लोक अदालत का सदस्य कहा जाता है और इस वजह से वो सभी पक्षों को अदालत के बाहर ही मामले पर फैसला या समझौता कर लेने के लिए समझा ही सकते हैं, किसी भी तरह का दबाव नहीं डाल सकते. लोक अदालतों के जरिए हर साल करोड़ों मामलों का समाधान किया जा रहा है. इससे पहले इस साल की दूसरी राष्ट्रीय लोक अदालत में 95 लाख से भी ज्यादा मामलों का समाधान किया गया. इसे मिला कर इस साल अभी तक दो करोड़ से भी ज्यादा मामलों का समाधान किया जा चुका है.
लोक अदालतों में न्याय हो रहा है या नहीं इस पर भी ध्यान देना चाहिए
लेकिन कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि लोक अदालतों में न्याय हो रहा है या नहीं इस पर भी ध्यान देना चाहिए. हैदराबाद स्थित नालसार विधि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति फैजान मुस्तफा ने 2021 में एक लेख में लिखा था कि लोक अदालतों को मामलों का समाधान करने की गति की जगह न्याय की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने लिखा था कि कई बार लोक अदालतों के सामने आने वाले मामलों में एक तरफ गरीब और कम पढ़े लिखे लोग होते हैं और दूसरी तरफ बड़ी बड़ी कंपनियां, बैंक, सरकारी विभाग आदि होते हैं. इन मामलों में कई बार गरीब लोगों को लंबा चलने वाले मुकदमे के डर से ऐसी शर्तों पर समझौता करना पड़ता है जो न्यायसंगत नहीं होती हैं.
Join Mashal News – JSR WhatsApp Group.
Join Mashal News – SRK WhatsApp Group.
सच्चाई और जवाबदेही की लड़ाई में हमारा साथ दें। आज ही स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें! PhonePe नंबर: 8969671997 या आप हमारे A/C No. : 201011457454, IFSC: INDB0001424 और बैंक का नाम Indusind Bank को डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर कर सकते हैं।
धन्यवाद!