अमेरिका यूक्रेन को आश्वस्त करना चाहते हैं कि रूसी सैन्य ख़तरों के ख़िलाफ अमेरिका उसका समर्थन करेगा, अगर ज़रूरत पड़ती है तो सहयोगियों के बीच एकजुट और आक्रामक प्रतिक्रिया के लिए अमेरिका सहयोग हासिल करेगा और कुटनीतिक हल के लिए अपने रूसी समकक्ष के साथ बैठेगा या कम से कम ऐसा दिखाएगा जिससे ये न लगे कि अमेरिका डिप्लोमेसी छोड़ रहा है.
रूसी लावरोव का कहना था कि उन्हें “ठोस प्रस्तावों के ठोस जवाब” की उम्मीद है- जिसमें ये मांग भी शामिल है कि नाटो कभी भी यूक्रेन जैसे पूर्व सोवियत देशों में विस्तार नहीं करेगा. वहीं ब्लिंकन ने अपनी ओर से दोहराया कि रूसी आक्रमण का अमेरिका और उसके सहयोगी “एकजुट, तेज और गंभीर प्रतिक्रिया” देंगे.बैठक के बाद, दोनों पक्षों ने कहा कि ”बहुत कम प्रगति हुई है – लेकिन बहुत कम उम्मीद की गई थी.”
पूरी प्रक्रिया के दौरान मिस्टर ब्लिंकन ने एक ही संदेश दिया- अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा है.
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मिस्टर ब्लिंकन ने एक ही संदेश दिया- अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा है. उन्होंने कहा कि रूस के पास एक तरफ़ “कूटनीति और बातचीत” और दूसरी तरफ़ “संघर्ष और परिणाम” विकल्प के तौर पर था. पहले दिन के बाद ऐसा लग रहा था कि अमेरिका प्रगति कर रहा है.अमेरिका निश्चित तौर पर अपने सहयोगियों के साथ बातचीत करेगा कि रूस द्वारा यूक्रेन में ”मामूली घुसपैठ” का जवाब कैसे दिया जाए. उन्होंने कहा कि ऐसा संभव है कि रूस यूक्रेन के ‘अंदर’ घुसेगा.
यूक्रेन की सीमाओं पर 100,000 से अधिक रूसी सैनिक तैनात हैं लेकिन लावरोव ने कहा कि रूस की यूक्रेन पर हमला करने की कोई योजना नहीं है.ब्लिंकन का कहना है कि अमेरिका, यूरोपीय देशों के लिए नेटो की ‘ओपन डोर’ विस्तार नीति के साथ खड़ा है. साथ ही ये ब्लिंकन ने ये वादा भी किया कि वो अगले हफ़्ते रूस की ‘चिंताओं’ पर लिखित जवाब देंगे.ये पूछे जाने पर कि क्या अमेरिका यूक्रेन की रक्षा के लिए अपनी सेना के इस्तेमाल करने पर विचार करेगा, ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका अपने नाटो सहयोगियों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.लेकिन यूकेन के अधिकारी इस बात से वाकिफ़ हैं कि यूक्रेन, नेटो का सदस्य देश नहीं है.
अगले सप्ताह अमेरिका की तरफ़ से मिलने वाली लिखित प्रतिक्रिया का इस्तेमाल रूस आगे बढ़ने के बहाने के तौर पर कर सकता है
अगले सप्ताह अमेरिका की तरफ़ से मिलने वाली लिखित प्रतिक्रिया का इस्तेमाल रूस आगे बढ़ने के बहाने के तौर पर कर सकता है. यूक्रेन में, अमेरिकी राजनयिकों को नहीं पता कि आख़िर आगे क्या उम्मीद की जाए-ज़्यादा साइबर युद्ध की आशंका, एक “मामूली घुसपैठ” या दसियों हज़ार रूसी सैनिकों का देश में तीन तरफ से घुसपैठ और कीव में उतरने वाले पैराट्रूपर्स की आशंका.अमेरिका तब तक रूस से बात करने की कोशिश करने के लिए दृढ़ दिख रहा हैजब तक जब तक कि मौसम की बारिश टैंक आक्रमण को अव्यावहारिक न बना दे. जहां तक रूस की बात है तो, ब्लिंकन और बाइडन दोनों अपने निष्कर्ष को लेकर साफ हैं कि ये आख़िरकार इस बात पर निर्भर करेगा कि पुतिन के दिमाग में चल क्या रहा है?
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव को समझने के लिए हमें इतिहास को देखना होगा.
यूक्रेन कभी रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था और 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिली और तभी से यूक्रेन रूस की छत्रछाया से निकलने की कोशिशें करने लगा.इसके लिए यूक्रेन ने पश्चिमी देशों से नज़दीकियां बढ़ाईं. उसने ऐसा फ़ैसला तब लिया, जब उसके उत्तर और पूर्वी हिस्से की एक लंबी सीमा रूस से लगती है.साल 2010 में विक्टर यानूकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने और उन्होंने रूस से बेहद क़रीबी संबंध बनाए. इन संबंधों की बुनियाद पर उन्होंने यूरोपीय संघ में शामिल होने के समझौते को ख़ारिज कर दिया. इसकी प्रतिक्रिया ये हुई कि भारी विरोध प्रदर्शन के कारण साल 2014 में उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.
ताज़ा तनाव की मुख्य कारण क्या है.
रूस का आरोप है कि यूक्रेन ने 2015 के शांति सौदे का सम्मान नहीं किया है और पश्चिमी देश यूक्रेन को इसका पालन कराने में नाकाम रहे हैं.इस सौदे के तहत रूस को एक कूटनीतिक जीत मिली थी और उसने यूक्रेन को विद्रोहियों के गढ़ों को स्वायत्तता देने और उन्हें आम माफ़ी देने के लिए बाध्य किया था. हालांकि, इस सौदे पर अमल नहीं हो पाया.इस पर अमल न होने के लिए यूक्रेन रूस को ज़िम्मेदार ठहराता है. उसका कहना है कि रूसी समर्थित अलगाववादियों ने संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और पूर्व में विद्रोहियों के गढ़ में रूसी सैनिकों की मौजूदगी है. हालांकि, रूस इन दावों को ख़ारिज करता रहा है.इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच रूस ने यूक्रेन, फ्रांस और जर्मनी के साथ बैठक करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि 2015 के शांति समझौते को यूक्रेन द्वारा न मानना व्यर्थ है.
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