उत्तराखंड के हरिद्वार में इस महीने की 17 तारीख़ से लेकर 19 तारीख़ तक एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था. जिसमे वहाँ मौजूद लोगों के ‘विवादित भाषणों’ के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. ऐसा ही एक कार्यक्रम 19 दिसंबर को देश की राजधानी दिल्ली में ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ नामक संगठन ने आयोजित किया था, जिसमें वहां मौजूद लोगों को एक विशेष समुदाय के ख़िलाफ़ हथियार उठाने की शपथ दिलाई गई थी.
इस घटना पर पुलिस की कार्रवाई और उस पर भारत के सत्ताधारी दल की चुप्पी से जुड़ी ख़बरें अमेरिका से लेकर पाकिस्तान तक के अख़बारों ने अपने पन्नों पर छापी हैं.विदेश के अख़बारों में इस घटना को लेकर काफी चर्चा हो रही है. जिसका शीर्षक है ‘हिंदू अतिवादियों ने मुसलमानों की हत्या का आह्वान किया, भारत के नेता चुप.’ इस से भारत की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की छवि को काफी धक्का लग रहा है.
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हिंदू राष्ट्र में बदलेंगे चाहे इसके लिए मरने और मारने की ज़रूरत पड़े.
ख़बर में लिखा है कि ‘इस सप्ताह सैकड़ों दक्षिणपंथी हिंदू कार्यकर्ताओं और संतों ने एक सम्मेलन में एक सुर में शपथ ली. वे संवैधानिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को एक हिंदू राष्ट्र में बदलेंगे चाहे इसके लिए मरने और मारने की ज़रूरत पड़े.” “खचाखच भरे ऑडिटोरियम में दक्षिणपंथी हिंदू संतों ने बाक़ी हिंदुओं से हथियार उठाने और मुसलमानों की हत्या करने की अपील की. इनमें प्रभावशाली धार्मिक नेता भी थे, जिनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी पार्टी के साथ क़रीबी संबंध हैं और इनमें से कुछ लोग पार्टी के सदस्य भी थे.”
“इस सप्ताह सोशल मीडिया पर इस कार्यक्रम के वीडियो तेज़ी से फैलने लगे. फ़िलहाल सरकार इस मामले को लेकर एक ख़ास चुप्पी बना रखी है जिस पर विश्लेषक कहते हैं कि यह उनके सबसे बड़े समर्थकों के लिए सुरक्षा के एक मौन संकेत की तरह है.” न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार लिखता है कि भारत की वो पुलिस जो सबूतों की कमी के आधार पर भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और हास्य कलाकारों को जेल भेजने के लिए तैयार रहती है, इस मामले में कार्रवाई करने में सुस्त है.
अख़बार ने पुलिस के बाद विपक्षी राजनेताओं की चुप्पी पर भी लिखते हुए कहा है कि ‘इस मामले में विपक्षी राजनीतिक समूहों ने भी चुप्पी बरक़रार रखी है जो दिखाता है कि श्रीमान मोदी के 2014 में दफ़्तर संभालने के बाद देश को दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादियों ने कितना अपनी पकड़ में ले लिया है.’ न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार लिखता है, “भड़काऊ टिप्पणियां तब आ रही हैं, जब कुछ राज्य सरकारों में श्रीमान मोदी की बीजेपी सत्ता में है और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव होने जा रहे हैं.
मुस्लिम कार्यकर्ताओं को आंतकवाद विरोधी क़ानून के ज़रिए मिली धमकियां
श्रीमान मोदी इस सप्ताह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के लिए प्रचार करने में व्यस्त हैं जो कि राज्य के मुख्यमंत्री हैं और कई बार मुस्लिम विरोधी नफ़रत को हवा दे चुके हैं.” “चुनावी मौसम के दौरान मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा के कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें मुसलमानों के व्यवसाय को निशाना बनाने की कोशिशें भी शामिल हैं.” न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि ‘दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी सालों से ऑनलाइन हिंसा को बढ़ावा देते रहे हैं लेकिन हाल ही में सड़कों तक हिंसा पहुंची है.
हिंदू महिलाओं को फंसाकर धर्म परिवर्तन करने के आरोपों के बाद सड़कों पर मुस्लिम फल विक्रेताओं को पीटा गया है और उनसे उनकी कमाई छीनी गई है. मुस्लिम कार्यकर्ताओं को आंतकवाद विरोधी क़ानून के ज़रिए धमकियां दी गई हैं.’ एक ओर जहां विदेशी मीडिया ने इस ख़बर को जगह दी वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई लोगों ने इस घटना की निंदा की है.
मानवाधिकार संगठन ह्युमन राइट्स वॉच के कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ ने न्यूयॉर्क टाइम्स की ख़बर को ट्वीट करते हुए लिखा है, “हिंदू अतिवादी मुसलमानों की हत्या का आह्वान कर रहे हैं. पूरे भारत में बढ़ती मुस्लिम विरोधी भावना का जीता जागता उदाहरण. भारत के नेता चुप हैं.”
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शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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