पुतिन ने एक विनाशकारी युद्ध का रास्ता अख़्तियार किया है. हज़ारों रूसी सैनिक मर सकते हैं. आर्थिक प्रतिबंध की मार झेलनी पड़ेगी . पुतिन के समर्थकों की संख्या में बेतरतीब गिरावट आ सकती है . संभव है कि विद्रोह का ख़तरा भी हो. वे विरोध को दबाने के लिए रूस की आंतरिक सुरक्षा का इस्तेमाल भी कर सकते है . लेकिन इससे चीज़ें ठीक होने की जगह और बिगड़ जाएं और पर्याप्त संख्या में रूसी सेना, राजनीति और आर्थिक जगत के शीर्ष लोग उनके ख़िलाफ़ हो जाएं.
हज़ारों लोग मारे जा सकते हैं.ऐसी सूरत में पूरी बहादुरी दिखाने के बावजूद कुछ ही दिनों में कीएव रूस के नियंत्रण में आ सकता है.
युद्ध जल्द ही खत्म हो इसके लिए रूस अपने हमले तेज़ कर सकता है जिसके विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं. कीएव के चारों ओर बमबारी, मिसाइल हमले और साइबर हमले बढ़ सकते हैं. ऊर्जा, आपूर्ति और संचार के माध्यमों को काटा जा सकता है. हज़ारों लोग मारे जा सकते हैं.ऐसी सूरत में पूरी बहादुरी दिखाने के बावजूद कुछ ही दिनों में कीएव रूस के नियंत्रण में आ सकता है. वहां रूस के नियंत्रण वाली एक कठपुतली सरकार का गठन कर दिया जाता है. यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की या तो हत्या कर दी जाती है या वो देश के पश्चिमी हिस्से में चले जाते हैं या निष्कासित सरकार बनाने के लिए देश छोड़कर भाग जाते हैं.
ऐसे में राष्ट्रपति पुतिन जीत की घोषणा करके अपनी कुछ सेना वापस बुला सकते हैं. लेकिन, यूक्रेन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए कुछ सेना वहां छोड़ी जा सकती है. यूक्रेन से हज़ारों लोगों का पलायन जारी रहेगा. और यूक्रेन, बेलारूस की तरह रूस का एक सहयोगी राष्ट्र बन जाता है.हालांकि, ऐसा होना असंभव भी नहीं है लेकिन यह कई अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. और कठपुतली सरकार न केवल अस्थिर होगी बल्कि बग़ावत की आशंका भी बनी रहेगी.
रूस को कीएव जैसे शहरों पर कब्ज़ा करने में लंबा समय लग सकता है.
इसकी संभावना अधिक है कि ये लड़ाई लंबी खिंच जाए. रूस की सेना यूक्रेन में फंस सकती है, सैनिकों का हौसला पस्त हो सकता है और आपूर्ति की समस्या आ सकती है.रूस को कीएव जैसे शहरों पर कब्ज़ा करने में लंबा समय लग सकता है क्योंकि वहां रक्षक गलियों के स्तर तक संघर्ष करते हैं. ये लड़ाई 1990 में चेचन्या की राजधानी ग्रोज़्नी पर क़ब्ज़ा करने में रूस को लगे समय और क्रूर संघर्ष की याद दिलाती है.
पुतिन पश्चिमी देशों के यूक्रेन को हथियार देने को उकसावे की कार्रवाई भी मान सकते हैं. वो नेटो के सदस्य बाल्टिक देशों में सेना भेजने की धमकी दे सकते हैं ताकि कैलिनिनग्राद के रूसी तटीय क्षेत्र के साथ एक ज़मीनी कॉरिडोर बना सकें.ये बहुत भयानक हो सकता है और इसमें नेटो के साथ युद्ध का ख़तरा है क्योंकि नेटो के अनुच्छेद 5 के अनुसार एक नेटो सदस्य पर हमला सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है.
बातचीत के लिए तैयार होकर पुतिन ने कम-से-कम युद्ध-विराम की संभावनाओं को स्वीकार किया है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि, “लड़ाई चल रही है, लेकिन बातचीत का रास्ता हमेशा खुला होता है.”
फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने पुतिन से फ़ोन पर बात की है. राजनयिकों का कहना है कि बातें रूस तक पहुंचाई जा रही हैं. और आश्चर्यजनक रूप से, बेलारूस की सीमा पर रूस और यूक्रेन के अधिकारियों की मुलाक़ात हुई है. शायद आगे कुछ और न हुआ हो. लेकिन लगता है कि, बातचीत के लिए तैयार होकर पुतिन ने कम-से-कम युद्ध-विराम की संभावनाओं को स्वीकार किया है.
पश्चिम ने पहले ही यह साफ़ कर दिया है कि पुतिन की जगह अगर कोई उदारवादी नेता सत्ता में आते हैं तो वो रूस पर से प्रतिबंधों को हटाएगा और सामान्य राजनयिक संबंधों को बहाल करेगा. तो तख़्तापलट भी हो सकता है. हालांकि अभी ये संभव नहीं है. लेकिन अगर उनके साथ के लोगों को ये लगने लगेगा कि पुतिन अब उनके हितों की रक्षा करने में सक्षम नहीं हैं तो ऐसी संभावना अकल्पनीय भी नहीं है.
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