बात उस समय की है जब तीर्थयात्री ऊंटों पर काफिलों के रूप में महीनों नहीं तो हफ़्तों की यात्रा कर के मक्का पहुंचते थे.दमिश्क से मदीना पहुंचने में कम से कम 40 दिन लगते थे और सूखे रेगिस्तान और पहाड़ों के कारण कई तीर्थयात्री रास्ते में ही अपनी जान की बाज़ी हार जाते थे.
उस वक़्त उस्मानिया सल्तनत (वर्तमान तुर्की) के सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के आदेश पर हिजाज़ रेलवे का निर्माण साल 1900 में किया गया था, ताकि मक्का की यात्रा को आसान और सुरक्षित बनाया जा सके.
इस रेलवे के निर्माण ने इस यात्रा को 40 दिन से घटाकर केवल पांच दिन कर दिया था.
एक ऐसी संपत्ति जो सभी मुसलमानों की साझी संपत्ति है.
उस समय, इस असाधारण परिवहन परियोजना को पूरा करने के लिए आर्थिक सहायता पूरी तरह से मुसलामानों के दान, उस्मानिया सल्तनत के राजस्व और टेक्स से होती थी, और इसमें कोई विदेशी निवेश शामिल नहीं था.और यही वजह है कि आज भी इस रास्ते को ‘वक्फ़’ माना जाता है: यानी एक ऐसी संपत्ति जो सभी मुसलमानों की साझी संपत्ति है.
इस प्रोजेक्ट के तहत, रेलवे लाइन का दमिश्क-मदीना सेक्शन पूरा होने के बाद, इस रेलवे लाइन को उत्तर में उस्मानिया सल्तनत की राजधानी कुस्तुंतुनिया (आज का स्तांबूल) और दक्षिण में मक्का तक विस्तार करना परियोजना में शामिल था. लेकिन इस्लाम धर्म के लिए इस रेलवे स्टेशन का महत्व यहीं ख़त्म नहीं होता है.
सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के लिए मुस्लिम जगत को एकजुट करना न केवल आध्यात्मिक ज़रुरत थी.
सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के लिए मुस्लिम जगत को एकजुट करना न केवल आध्यात्मिक ज़रुरत थी, बल्कि इसके व्यावहारिक लाभ भी थे. रेलवे के निर्माण से पहले पिछले कुछ दशकों के दौरान, प्रतिद्वंद्वी साम्राज्य उस्मानिया सल्तनत से काफ़ी दूर हो चुके थे. फ़्रांस ने ट्यूनीशिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था, अंग्रेज़ों ने मिस्र, रोमानिया, सर्बिया पर हमला किया और मोंटेनेग्रो ने स्वतंत्रता प्राप्त की.
जॉर्डन में हिजाज़ रेलवे के महानिदेशक जनरल उज़्मा नालशिक कहते हैं, कि ”यह किसी देश की संपत्ति नहीं है, यह किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं है. यह दुनिया के सभी मुसलमानों की संपत्ति है. यह एक मस्जिद की तरह है और इसे बेचा नहीं जा सकता. उज़्मा नालशिक कहते हैं, कि ‘दुनिया का कोई भी मुसलमान, यहां तक कि इंडोनेशिया और मलेशिया का मुसलमान भी आ कर यह दावा कर सकता है कि इसमें मेरा भी हिस्सा है.
उस्मानिया सल्तनत के लोगों को एकजुट करके सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय न केवल मुसलमानों को बल्कि अपनी सल्तनत को भी एकजुट करना चाहते थे.
उस्मानिया सल्तनत के लोगों को एकजुट करके सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय न केवल मुसलमानों को बल्कि अपनी सल्तनत को भी एकजुट करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.साल 1908 में, पहली ट्रेन दमिश्क से मदीना तक चली, और अगले ही साल सुल्तान का तख़्ता पलट कर दिया गया. आज उस्मानिया सल्तनत बीते दिनों की बात हो गई है. इसी तरह, वो सीमाएं जो कभी इस मार्ग का केंद्र थीं, अब पांच देशों (तुर्की, सीरिया, जॉर्डन, इसरायल और सऊदी अरब) में विभाजित हो चुकी हैं.
जब प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की सेना ने इसका इस्तेमाल करना शुरू किया, तो ब्रिटिश अधिकारी टीई लॉरेंस (जिन्हें ‘लॉरेंस ऑफ़ अरबिया’ की उपाधि दी गई थी) और अन्य अरब विद्रोही सैनिकों ने इस पर हमला किया. युद्ध के बाद, जब अंग्रेज़ों और फ़्रांसीसियों ने पूर्वी भूमध्य सागर में लेवेंट के क्षेत्र को बहाल किया, तो मुसलमानों को एकजुट करने वाली इस रेलवे लाइन को बनाए रखना और बहाल करना उनकी पहली प्राथमिकता थी, क्योंकि उस समय तक इस रेलवे लाइन का ज़्यादातर हिस्सा ख़राब हो चुका था. इस तरह दुनिया के मुसलमानों को एकजुट करने का वो ख़्वाब जो पूरा ना हो सका
साल 1914 तक हर साल 3 लाख यात्रियों को यात्रा की सुविधा प्रदान करने के बावजूद, हिजाज़ रेलवे का महत्त्व केवल एक दशक तक ही रहा.
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