हमास द्वारा इजरायल पर किये गए हमले की कीमत पूरी गाजा पट्टी को चुकानी पड़ी है. चाहे वो स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी हों या फिर मुख्य बजार और अस्पताल. हर जगह लाशों के अंबार लगे हैं. क्योंकि हर मिनट पर बम और मिसाइलें गिर रही हैं, इसलिए जो भी लोग इस हमले में जिन्दा बच गए हैं, वो बस इसी जुगत में हैं कि कैसे भी करके जान बचा ली जाए. सवाल ये है कि, आखिर कैसे खुद को इजरायल के हमलों से बचा रहे हैं गाजा पट्टी पर रहने वाले लोग? जवाब स्काई न्यूज़ की रिपोर्ट से मिला है. जिसमें बताया गया है कि, गाजा पट्टी पर रहने वाले लोग और हमास के आतंकी दोनों ही अपनी – अपनी जान बचाने के लिए सुरंगों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इन सुरंगों के विषय में दिलचस्प बात ये भी है कि इनका निर्माण आतंकियों को मदद मुहैया कराने और उनके द्वारा अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया गया था. लेकिन क्योंकि अब गाजा पर इजरायल की तरफ से चौतरफा हमला किया जा रहा है. और लोगों की जान पर संकट बना हुआ है. इसलिए ये सुरंगें हमास के आतंकियों और नागरिकों दोनों के लिए ‘लाइफ लाइन बनती नजर आ रही हैं.
ध्यान रहे पिछले कुछ वर्षों में, गाजा ने दो प्रकार के सुरंग नेटवर्क विकसित किए हैं. दिलचस्प ये कि हमास और इस्लामिक जिहाद जैसे आतंकी समूहों ने हथियारों और अपने लड़ाकों को स्थानांतरित करने और इज़राइल के खिलाफ संभावित हमले करने के लिए सुरंगों की एक भूलभुलैया बनाई है.
हो सकता है ये बातें आपको हैरान कर दें. लेकिन गाजा पट्टी का मौजूदा सच यही है कि गाजा के नीचे एक और गाजा है. जिसका निर्माण सुरंगों के जरिये किया गया है. इन सुरंगों का मकसद आतंकियों को सुरक्षा देना और आम लोगों को रसद के अलावा मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराना है.
बताया ये भी जा रहा है कि एक दूसरा सुरंगों का नेटवर्क मिस्र की सीमा के नीचे मौजूद है. गाजा पर इजरायल की निरंतर घेराबंदी के सबसे कठिन वर्षों के दौरान, क्षेत्र में भोजन, कपड़े, खिलौने और यहां तक कि कारों को लाने के लिए कॉमर्शियल सुरंगें खोदी गईं. हालांकि इन सुरंगों का उपयोग वर्षों से नहीं किया गया है – लेकिन यदि इज़राइल गाजा सीमाओं पर पूर्ण नाकाबंदी लगाता है, तो इन्हें वापस इस्तेमाल में लाया जाएगा.
गरीबी के आगमन से हुई गाजा में सुरंग व्यापार की शुरुआत!
गाजा पर हमास के कब्जे से पहले के वर्षों में फिलिस्तीनियों के लिए गाजा छोड़ने और अन्य फिलिस्तीनी क्षेत्र, वेस्ट बैंक का दौरा करने के लिए इजरायली परमिट प्राप्त करना लगभग असंभव हो गया था. 2007 में हमास द्वारा गाजा पर कब्ज़ा करने के बाद, पट्टी पर इज़राइल की नाकाबंदी पूरी हो गई. मामले में रोचक ये भी था कि गाजा पर रहने वाले भूखे न मरें इसलिए इजरायल ने आपूर्ति उतनी ही रखी जिससे वो जीवित रहें.
वहां सभी व्यावसायिक गतिविधियां बंद कर दी गईं और इज़राइल और वेस्ट बैंक के साथ गाजा का निर्यात व्यापार अवरुद्ध हो गया. जिससे लोग कंगाली की कगार पर आ गए और अर्थशास्त्रियों तक ने जिसे डी-डेवलपमेंट माना. इसी के बाद गाजा के लोगों ने मिस्र के साथ सुरंग व्यापार और तस्करी का कारोबार शुरू किया.
गौरतलब है कि इसी के फ़ौरन बाद मिस्र की सीमा के नीचे सैकड़ों सुरंगें खोदी गईं, जिनसे तमाम चीजों के अलावा लोगों तक की तस्करी की गयी. बहरहाल बात यदि वर्तमान की हो. तो अब जबकि हमास के चलते पूरे गाजा और वहां के लोगों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ये सुरंगे ही वो जरिया हैं जो उन्हें जिंदा रहने की उम्मीदें दे रही हैं.
गाजा का भविष्य क्या होगा? इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है. लेकिन जो वर्तमान है उसने इस बात की पुष्टि स्वतः ही कर दी है कि जैसे जैसे वक़्त बीतेगा दुनिया ऐसा बहुत कुछ देखेगी जो न केवल रौंगटे खड़े करने वाला है. बल्कि जो ये भी बताएगा कि यदि कोई मुल्क आतंकवाद की भेंट चढ़ जाता है तो उसका अंजाम क्या होता है.
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