8 मार्च वो दिन है जिसने मार्च महीने को दुनिया भर में महिलाओं के लिए बहुत ही खास बना दिया है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अपने महत्व और अधिकारों के लिए महिलाओं के उस निरंतर संघर्ष को याद कर उन्हें सम्मान देने के लिए एक त्योहार है और यह वो दिन है जब पुरुष प्रधान समाज में पहली बार महिलाओं ने अपने लिए कुछ बड़े अधिकार हासिल किए।
अपने महत्व और अधिकारों के लिए महिलाओं के उस निरंतर संघर्ष को याद करने के लिए साल 1911 में, 19 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) के रूप में मनाया गया। हालांकि बाद 1921 में इस दिन को बदलकर 8 मार्च कर दिया गया।
आज महिलाएं घर और बच्चे संभालें के साथ -साथ, सेना में कमांडर बनकर युद्ध भी लड़ती है. मल्टीनेशनल कंपनी की टॉप लीडर बनकर सबसे बड़े फैसले लेती है, नारी हर वो काम कर सकती है, जो पुरुष करते हैं। कई बार महिलाएं पुरुषों से आगे बढ़कर काम करने की अपनी सुपर पॉवर सबको दिखा चुकी हैं। पहले महिलाओं को रोका जाता था, उनके योगदान को नज़रअंदाज किया जाता था लेकिन आज क्या सच में महिलाओं को आज़ादी है? उन्हें लेकर लैंगिक समानता है? संविधान के आर्टिकल -15 में लैंगिक समानता का अधिकार दिया गया है. बड़े -बड़े शहरों में ये थोड़ा मुमकिन भी हो लेकिन कई छोटे शहरों और गाँव में आज भी महिलाओं को लेकर वही रूढ़िवादी सोच है.
वर्कर्स कॉलेज की पूजा प्रमाणिक के गाँव में आज भी होता है बाल विवाह
मिर्जाडीह गाँव की पूजा प्रमाणिक ने मशाल न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि आज भी हमारे गाँव में लड़कियों की शिक्षा से ज्यादा उनकी शादी पर ज़ोर दिया जाता है. उनके गाँव के लोगों का मानना है कि लड़कियों की शादी करने से उनके साथ अपराध कम होते हैं. जबकि बाल विवाह या किसी भी लड़की की मर्जी के बिना उसकी जबरन शादी करना कानून अपराध है. मात्र 19 साल की पूजा के अपने गाँव में 8-10 बाल विवाह को रोकवाया हैं. उन्हें उनके महाविद्यालय वर्कर्स कॉलेज और बोड़ाम प्रखंड की ओर से सम्मानित भी किया गया है.
आज भी हमे अपने पसंद के कपड़े पहनने की आज़ादी नहीं
मशाल न्यूज़ की ओर से अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में कुछ कॉम्पीटिशन आयोजित किये गये. जिनके एक बात-विवाद प्रतियोगिता भी थी. उस कम्पटीशन के दौरान पता चला कि लड़कियों को आज भी उनके पहनावे के लिए रोका जाता है. क्योकि सभी को लगता है कि हमारे पहनावे की वजह से इतने अपराध होते हैं, छोटे कपड़े की वजह से लड़के हम पर कमेंट करते हैं. कुछ लड़कों ने उनका विरोध करते हुए कहा- ऐसा बिलकुल नहीं है, कमेंट छोटे कपड़ों की वजह से लड़के नहीं करते बल्कि ये उनकी सोच है जिसे बदलने की जरूरत है.
आज भी स्त्री के प्रति सोच बदलने की जरूरत
माना बड़े शहरों में लड़कियो को लेकर लोगों की सोच एडवांस हो चुकी है. लेकिन लड़कियों के साथ अपराध वहां भी होते हैं तो फिर आप कैसे कह सकतें हैं कि महिला सुरक्षित है, उन्हें पुरुषों जैसा ही सम्मान दिया जाता है. हमारा देश उस वक्त भी पुरुष प्रधान था, आज भी है, भले ही थोड़ी बहुत लोगों कि सोच बदली हैं लेकिन इस समाज को पुरुष प्रधान नहीं, लिंग समानता प्रधान देश होना चाहिए.
महिलाओं के प्रति अपराध में 7 प्रतिशत की वृद्धि !
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