हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख अनस हक्कानी ने एक इंटरव्यू में बीबीसी से कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष की बड़ी वजह अमेरिका है. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को इस बात का दु:ख है कि इस संघर्ष में बहुत लोगों की जान गई है.
1979 में जब सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था, तब हक्क़ानी एक ऐसे मुजाहिदीन के तौर पर उभरे जिन्होंने सोवियत सेना की नाक में दम कर दिया था. अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए उस समय बड़ी खुशी से पाकिस्तानी सेना के जरिए जलालुद्दीन हक्कानी और उनके जैसे मुजाहिदीनों को आर्थिक और सामरिक मदद दे रही थी.
11 सितंबर” 2001 को ट्विन टावर पर हुए हमले के लिए अमरीका ने अल कायदा को ज़िम्मेदार बताते हुए अफ़ग़ानिस्तान में अभियान चलाने का एलान किया. इसी दौरान जलालुद्दीन हक्कानी तालिबान के शीर्ष नेता के तौर पर आख़िरी बार पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर आए, मगर इस्लामाबाद से वह लापता हो गए.
उन्होंने कहा, “हमने कभी ‘हक्कानी नेटवर्क’ नाम का इस्तेमाल नहीं किया है. ये अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात को बांटने की अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए की योजना का हिस्सा था.”
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सीआईए ने मुजाहिदीनों को आर्थिक और सामरिक मदद मदद दी, परिणाम क्या निकला ?
उन्होंने कहा, ” यह बात सच है कि विदेशियों से लड़ाई करने में हम शामिल रहे हैं और हम इस बात को मानते हैं. हर अफ़ग़ान नागरिक को इस पर गर्व होना चाहिए. इसी लड़ाई के कारण हम यहां से विदेशियों को निकालने में सक्षम हो पाए हैं. यह भी स्वाभाविक है कि युद्ध में जान-माल का नुक़सान होता है. दोनों ही पक्षों के साथ ऐसा हुआ है और सभी इसके लिए दु:खी हैं .” अनस हक्कानी इस नेटवर्क के जाने-माने नेता जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे हैं. जदरान क़बीले से संबंध रखने वाले जलालुद्दीन हक्कानी दुनिया के मोस्ट वॉन्टेड चरमपंथियों में शुमार रहे हैं.
कुछ महीनों बाद वह वज़ीरिस्तान में सामने आए. यहीं से अब उन्होंने कुछ समय पहले तक अपने सहयोगी रहे अमरीका के खिलाफ अभियान का एलान किया था. फलस्वरुप अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी अभियान ने अल कायदा, तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को एक-दूसरे के क़रीब लाकर रख दिया. इसी के साथ हक्कानी मोस्ट वॉन्टेड चरमपंथी बन बन गए.
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