सांगठनिक चुनौतियों के लिए प्रेरणा-स्रोत प्रेमचंद-अर्पिता
हमारे पुरखे प्रेमचंद जिनकी जलाई मशाल के आगे हम जीवन और समाज की रौशनी पाते हैं, जब किसी बच्चे या युवा से साहित्य पढ़ने की रूचि टटोलनी होती है तो पहला सवाल आता है कि ’प्रेमचंद को पढ़ा है?’ प्रेमचंद की कौन सी कहानियां याद हैं? इस सवाल के पीछे असल में यह बात टटोली जाती कि आत्म-केंद्रित प्रवृत्ति से निकल आज की पीढ़ी कहाँ खड़ी है. साहित्य के रास्ते हम मनुष्यता की सीढ़ी चढ़ रहे होते हैं और जीवन से जुड़े तमाम सवालों और जिज्ञासा को हासिल कर रहे होते हैं. पाब्लो पिकासो ने कहा था कि ’ कला क्रांति नहीं है वह हमारी आत्मा पर जमती जाती गर्द को लगातार पोंछते जाने, साफ़ करते जाने का काम करती है.
इसका मतलब है कि वह ज़िन्दगी के हर कोने-अंतरे को गौर से देखती रहे और उसकी निगाह पैनी रहे. वह थके भी नहीं. वह किसी कोने को नज़र-अंदाज़ भी न करे’. इसी जज़्बे और विश्वास के साथ 31 जुलाई को जन नाट्य संघ और प्रगतिशील लेखक संघ, जमशेदपुर ने प्रेमचंद को याद किया.
अहमद बद्र ने प्रेमचंद के सज्जाद ज़हीर को लिखे पत्रों का पाठ किया
कार्यक्रम की शुरुआत में आयोजन में शामिल सभी लोगों का इप्टा जमशेदपुर द्वारा स्वागत किया गया. पूरे कार्यक्रम का संचालन अपने सुपरिचित अंदाज़ में कृपाशंकर ने किया. उन्होंने बड़ी सरल और अंकित हो जाने वाली बात कही कि अगर हर घर में प्रेम और प्रेमचंद उपस्थित हैं तो समाज और मनुष्य बनने की प्रक्रिया जारी रहेगी. इस बार अहमद बद्र ने प्रेमचंद के सज्जाद ज़हीर को लिखे पत्रों का पाठ किया और उन पत्रों के जरिए हम उनकी सांगठनिक प्रतिबद्धता के साथ आज के समय में संगठन की कठिनाईयों और समय पर विचार-विमर्श किया. उन पत्रों के माध्यम से प्रगतिशील लेखक संघ बनने के पीछे की तैयारी और गंभीरता का अंदाज़ा होता है. जब प्रेमचंद सज्जाद ज़हीर को लिखते हैं कि सियासी मुदब्बिरों(राजनीतिज्ञों) ने जो काम ख़राब कर दिया है उसे अदीबों को पूरा करना होगा.
इसके लिए दिल्ली में एक हिन्दोस्तानी सभा कायम की है, जिसमें उर्दू और हिन्दी के अहले-अदब पारस्परिक विचार-विनिमय कर सकें. यह विचार किसी भी लेखक के लिए ताबीज़ हो सकता है.
लेखकों को यह समझना होगा कि वे साहित्य को कहाँ ले जाना चाहते हैं
अगर लेखक के लिए लिखना सिर्फ मनोरंजन तक न सीमित हो, शब्दों की ताक़त से इत्तेफ़ाक़ रखता हो. इन पत्रों में देश के कई शहरों के मिज़ाज के बहाने साफ़गोई से अदीबों पर तंज कसा है. यह तंज यथार्थ से आगे जाता है और प्रेमचंद लिखते हैं कि कोशिश करना हमारा काम है. अदीबों यानि हम लेखकों को यह समझना होगा कि हम साहित्य को कहाँ ले जाना चाहते हैं तभी हम दूसरों को रास्ता दिखा सकते हैं. यह चंद बातें ताबीज़ की तरह बांध लेने की ज़रूरत है. इस कोशिश में आज हम कहाँ खड़े हैं यह विचारणीय प्रश्न प्रेमचंद हमसे करते हैं. इन पत्रों को बार-बार पढ़े जाने की आवश्यकता है जिसके सहारे हम अपनी ज़मीन मज़बूत बना पाएं. सिर्फ लेखनी के बूते अपनी ज़िम्मेदारी पूरा मान लेना अधूरा कहलाएगा. बहरहाल इन पत्रों के हवाले सभी ने अपनी राय और अनुभव ज़ाहिर किए.
ज़िन्दगी को, इन्सान को रियायत के साथ देखो, उम्मीद के साथ देखो-कॉमरेड शशि कुमार
कॉमरेड शशि कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि जो अतीत से आगे बढ़कर वर्तमान जीने वाले और भविष्य देख पाने वाले लोग ही संगठन को आगे ले जाते हैं. प्रेमचंद की ईमानदारी उनके जीवन अभ्यास में इस तरह गुंथी रही कि उन्होंने अपने विचारों के प्रति विश्वास को सहजता से स्वीकार किया तभी वे आर्यसमाजी, गांधीवादी, यथार्थवादी और फिर मार्क्स की तरफ़ बढ़े और यह ईमानदारी उनके जीवन और रचनाओं में दिखती है. जीवन क्या है, मनुष्य क्या है, मनुष्य होना क्यों इतना सरल नहीं है यह प्रेमचंद हर रचना में बतलाते मालूम होते हैं. ज़िन्दगी को, इन्सान को रियायत के साथ देखो, उम्मीद के साथ देखो. बिना नाइंसाफ़ी और हिंसा से समझौता किए. इन्सान का मतलब ही है जूझती ज़िन्दगी. इन्सान के बेहतर होते जाने की इच्छा की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए और उसे इसके छोटे अवसर से भी वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
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ऐसा कोई विषय नहीं है जिस पर प्रेमचंद ने रचना नहीं रची-सुधीर सुमन
गौहर अज़ीज़ ने प्रेमचंद की रचनाओं और लिखने के सलीके पर रौशनी डाली. विनय कुमार ने वर्तमान में युवा पीढ़ी का अनगिनत प्लेटफ़ॉर्म की उपस्थिति की वजह से भटकाव पर बात की. सोशल साइट की वजह से वे एकाग्रता से दूर हैं. सुधीर सुमन ने युवाओं को संगठन में ज़िम्मेदारी दिए जाने की ज़रूरत बताई. ज़िम्मेदारी मिलने से संगठन में युवाओं को नई दिशा मिलेगी. प्रेमचंद की निर्वासन और अन्य कहानियों को याद करते उन्होंने कहा कि ऐसा कोई विषय नहीं है जिस पर प्रेमचंद ने रचना नहीं रची, उनकी रचनाएं हमारे लिए मशाल का काम कर रही हैं.
युवाओं की नज़र में प्रेमचंद
युवा साथी संजय सोलोमन ने बदलते समाज का युवाओं पर पड़ते असर को रेखांकित करते आज के समय में संगठनों को युवाओं को जोड़ने के लिए नए उपाय ढूंढने की ज़रूरत बताई. संगठनों में वैचारिकी की कसौटी पर संवाद और स्पेस बनाए जाने की कोशिश की जानी चाहिए. अंकुर ने कहा कि हम प्रेमचंद को पढ़ते हुए ही बड़े हुए हैं और अपनी समझ पक्की बनाए हैं और आज भी यह प्रक्रिया जारी है. रमन ने आज के समय में उन युवाओं की चर्चा की जो रच रहे हैं , लिख रहे हैं. लिटिल इप्टा के साथी सुजल ने प्रेमचंद को याद करते बताया कि उनकी कई कहानियां पढ़ी हैं जिनसे बहुत कुछ जानने-समझने का मौका मिलता है.
’ईदगाह’ कहानी पर चर्चा करते हुए हामिद की समझदारी और संवेदना को याद किया. रौशनी ने ’पूस की रात’ कहानी को याद करते हुए बताया कि किस तरह प्रेमचंद ने हल्कू और जबरा के बहाने दोस्ती दिखाई और कैसे ठंडी रात को खेती छोड़ने की वजह बता मजदूरी करने के लिए तैयार हुआ.
इस आयोजन में कॉमरेड शशि कुमार, अहमद बद्र, रामकविन्दर, ग़ौहर अज़ीज़, विनय कुमार, कृपाशंकर, सुधीर सुमन, संजय सोलोमन, रमन, अंकुर,अंजना, अंजला, मनोरमा, गार्गी, करण, नम्रता, सिमरन, लक्ष्मी, श्रवण, शानू, गणेश,और अर्पिता मौजूद रहे.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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