119वीं जयंती पर विशेष
राजधानी रांची समेत राज्य में कई कार्यक्रम
इसी कड़ी में रांची के एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित की गई.
उपलब्धियां
जयपाल मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को खूंटी जिले के टकराहातू गांव में हुआ था. उनकी मृत्यु 20 मार्च 1970 को हुई थी. मरंग गोमके ने अपने जीवनकाल में 1939 से लेकर 1970 तक 19 उच्चतम पदों पर अपनी सेवाएं दीं. वो अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष रहे.
कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे
जयपाल सिंह मुंडा झारखंड पार्टी के अध्यक्ष, अबुआ सकम के संपादक, सिविलयन एडवाइजर इस्टर्न कमांड सर्विस सेलेक्शन बोर्ड, मेंबर बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन, चीफ बारडेन रांची एआरपी, ओनररी एसिस्टेंट टेबिनक्ल रिक्रूटिंग ऑफिसर, प्रेसिडेंट दिल्ली फ्तक्वईग क्लब, कॉमेंटेटर आनवर्ल्ड एंड पॉर्लियामेंटी अफेयर्स इन द एआईआर सर्विस, मेंबर इकॉनमी कमेटी जैसे विभागों और पदों पर रहकर उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. इसके अलावा जयपाल सिंह ध्यानचंद हॉकी टूर्नामेंट के चेयरमैन रहे. साथ ही दिल्ली रोटरी क्लब, रेलवे बोर्ड, शिडयूल कास्टस, प्रेस कमिशन, एस्टिमेट कमेटी और संविधान सभा के सदस्य रहे. इसके अलावे स्नेडयूत्त ट्राइब्स एंड अदर्स बैकवर्ड क्लाससेज स्कॉलरशिप कमेटी में रहे पार्लियामेंट स्पोर्ट्स क्लब के जेनरल सेक्रेटरी के अलावा और 1952 से 1970 तक सांसद रहे.
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झारखण्ड अलग राज्य के लिए पहले पहल फूंकी बिगुल
जयपाल सिंह मुंडा की सोच और संघर्ष का ही नतीजा था कि अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा. उन्होंने साल 1938 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन किया और आदिवासियों के शोषण के खिलाफ राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ी.
वे आदिवासी महानायक के रूप में प्रसिद्ध हो गए, क्योंकि झारखंड आंदोलन को मजबूती प्रदान रहे थे. 50 के दशक में उन्होंने झारखंड पार्टी की स्थापना की. पहले आम चुनाव में उनकी पार्टी ने आदिवासी इलाकों में दमदार उपस्थिति भी दर्ज कराई. यही नहीं 1950 के दशक में झारखंड पार्टी ने बिहार में प्रमुख विपक्षी पार्टी की भी भूमिका निभाई, लेकिन धीरे-धीरे उनकी पार्टी की लोकप्रियता कम होने लगी.
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बाद में अन्य नेताओं ने आन्दोलन की बागडोर संभाली
इसके बाद उन्होंने अपने सहयोगियों से बिना विचार विमर्श किए 1963 में कांग्रेस के साथ विलय कर लिया. तब एनई होरो ने आंदोलन को नई दिशा दी. उन्होंने पार्टी की दोबारा स्थापना की. फिर बाद में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो, सूर्य सिंह बेसरा, बागुन सुंब्रुई जैसे नेताओं ने झारखंड आंदोलन को चरम तक पहुंचाया.
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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