सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि सरहद पार पाकिस्तान में भी आज के दिन लोग भगत सिंह (Bhagat Singh) को याद करते हैं. उन्हें याद करने के लिए वहां ख़ास कार्यक्रम का आयोजन होता है जिसमें समाज के अलग अलग वर्गों के लोग शामिल होते हैं.
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शादमान चौक पर ही फांसी दी गई थी.लाहौर में भगत सिंह की याद में उनकी विचारधारा और दुनिया को दिए गए संदेश के लिए लोग नारे लगा रहे हैं और मोमबत्तियां जला रहे हैं. भगत सिंह के पोस्टर भी हर जगह लगे हुए हैं.
राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी थी.
आज से ठीक 91 साल पहले 23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह और उनके सहयोगी राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी थी.
इस वजह से 23 मार्च की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है और इस दिन को याद करने के लिए देश में शहीद दिवस मनाया जाता है.
आज भी उनकी 91वीं पुण्यतिथि मनाने के लिए पाकिस्तान के शादमान चौक में कार्यकर्ता और आम लोग इकट्ठा हुए हैं.
वहां पाकिस्तान के पहले सिख पीएचडी कल्याण सिंह भी मौजूद हैं. उन्होंने कहा “भगत सिंह की सोच साम्राज्यी ताक़तों और जागीरदाराना सोच के ख़िलाफ़ थी.
आज़ादी हमें किसी भी सूरत में मिल जाती लेकिन साम्राज्यी ताक़तों की गुलामी से छुटकारा बहुत ज़रूरी है.उन्होंने आगे बताया कि असल आज़ादी यही है. उन्होंने कहा, “जरुरी ये है कि हमें अपने मौलिक अधिकारों की जानकारी हो और हम उन्हें समझ सके.”
जिस तरह भगत सिंह (Bhagat Singh), राजगुरु और सुखदेव ने अपनी जान दी, हमें भी अपने हक़ों के लिए मैदान में निकालना चाहिए और आवाज़ उठानी चाहिए.
शादमान चौक पर मौजूद एक शख्स ने उस जगह के महत्व के बारे में बात करते हुए बताया,
“हम इस जगह पर इसलिए इकट्ठे होते हैं क्योंकि उस वक़्त इसी जगह पर सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह को फांसी दी गई, ये जगह उनकी यादगार हैं.
उन्होंने कहा कि वो हर साल यहां आकार उन्हें प्रणाम करते हैं, उनका सजदा करते हैं और उनके पैग़ाम को लेकर आगे निकलते हैं.
उन्होंने आगे बताया, “यहां उन्होंने अपना आखिरी सांस लिया, अपने इंक़लाब के लिए जान दी और लोगों को बताया कि अपने असूलों को लिए जान भी दी जा सकती है.
इसलिए हम हिंदुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के तमाम लोगों के लिए, उनके मज़दूरों, किसानों, आदिवासी और कमज़ोर लोगों के लिए भगत सिंह का पैग़ाम लेकर हम घर-घर जाते हैं और कहते हैं कि जिस तरह भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपनी जान दी.
हमें भी अपने हक़ों के लिए मैदान में निकालना चाहिए और आवाज़ उठानी चाहिए.”
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