दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित हो रहे विश्व पुस्तक मेला में लेखक सुशील स्वतंत्र की ‘त्रिलोकपति रावण खंड-एक’ पुस्तक चर्चा में
दिल्ली के प्रगति मैदान में 25 फरवरी से 5 मार्च तक आयोजित हो रहे विश्व पुस्तक मेला 2023 में ‘त्रिलोकपति रावण खंड-एक’ पुस्तक उपलब्ध होगी. इस पुस्तक के लेखक सुशील स्वतंत्र हैं, जो दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करते हुए साप्ताहिक अखबार के संपादक और फिर लेखक बनें. पुस्तक मेले के हॉल नंबर-2 के स्टाल नंबर-382 में उनकी यह पुस्तक उपलब्ध होगी.
महाखलनायक कैसे बन गया रावण, किसने बनाया उसको असत्य का प्रतीक ?
उक्त पुस्तक में लेखक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है, “रावण पर केन्द्रित कुछ किताबों को अगर छोड़ दें, तो हम पाएंगें कि रावण की कहानी उसके नज़रिये से अब तक कही नहीं गई है। वह वेदों का ज्ञाता था, महाज्ञानी था, शस्त्र-शास्त्र का महापंडित था, बलशाली था, पराक्रमी था, न्यायप्रिय राजा था तो फिर वह रावण महाखलनायक कैसे बन गया? किसने बनाया उसको असत्य का प्रतीक ?”
कैलाश पर्वत पर शिवजी से हुए टकराव तक की कहानी को इस खण्ड में संवाद शैली में
सुशील स्वतंत्र के मुताबिक असुर गाथा श्रृंखला के पहले पात्र, रावण, के जीवन पर आधारित उपन्यास #त्रिलोकपति_रावण का पहला खण्ड रावण के तरुणावस्था से आरंभ होता है, जब वह देखता है कि माता पार्वती के लिए बनाए गए उनके सपनों के स्वर्ण महल को दक्षिणा में महादेव से माँग लेने के लिए उसकी राक्षसवंशी माता कैकसी द्वारा पिता महर्षि विश्रवा को बाध्य किया गया। रावण की शिक्षा, राजगद्दी के लिए प्रतिस्पर्धा, षड्यंत्र, तिरस्कार, लंका विजय, अलकापुरी विजय, पुष्पक विमान पर कब्जा, नागलोक विजय, मंदोदरी से प्रेम जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं से गुजरते हुए कैलाश पर्वत पर शिवजी से हुए टकराव तक की कहानी को इस खण्ड में संवाद शैली में प्रस्तुत किया गया है।
पहला खण्ड पचास अध्यायों और लगभग सवा लाख शब्दों का है
सुशील स्वतंत्र के इस उपन्यास में रावण के जीवन में घटित होने वाले घटनाक्रम को जिस प्रकार प्रस्तुत किया गया है, उसको पढ़ने हुए लगता है कि जैसे उसकी सारी क्रूरता व्यक्तित्व के अंतर्निहित दुर्गुण न होकर परिस्थितिजन्य प्रतिक्रियाएँ थीं। यह पहला खण्ड पचास अध्यायों और लगभग सवा लाख शब्दों का है।
किसी के व्यक्तित्व के कितने आयाम हो सकते हैं? इस कल्पना की सारी हदों को पार करते हुए इस खण्ड में रावण को विभिन्न रूपों में, जैसे एक योद्धा, नेतृत्वकर्ता, सेनापति, भावुक पुत्र, शर्मिला प्रेमी, न्यायप्रिय सम्राट, विस्तारवादी आक्रांता, अहंकारी बलवान, आज्ञाकारी पुत्र, निष्ठुर अनुज एवं महाज्ञानी के रूप में, देखा जा सकता है।
संक्षिप्त लेखक परिचय
दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता से साप्ताहिक अखबार का संपादक और फिर लेखक बनें सुशील विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। 1978 में उनका जन्म हजारीबाग (अविभाजित बिहार) में हुआ। बचपन कोयला खदानों के ऊपर दौड़ते-भागते बीता। दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही वे झुग्गी बस्तियों में सामाजिक कार्य करने लगे थे। उन्हें लम्बे समय तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एच.आई.वी./एड्स जागरूकता के लिए उच्य जोखिम समूहों जैसे महिला यौन कर्मियों व ट्रकर्स के साथ काम करने का अनुभव है। ढाई दशक से दिल्ली उनकी कर्मभूमि रही है लेकिन कोयला खदानों की धूल बार-बार उन्हें अपनी ओर खींच लाती है।
दिल्ली एवं झारखंड के रामगढ़ दोनों ही जगहों में उनका प्रवास
फिलहाल दिल्ली एवं झारखंड के रामगढ़ दोनों ही जगहों में उनका प्रवास होता है। वे कविता, कहानी, आलेख, ऑडियो शो एवं उपन्यास लिखते हैं। वे हिंदी साहित्य की विस्तृत निर्देशिका “हिंदी साहित्यानामा” के संपादक एवं प्रकाशक हैं। असुर गाथा श्रृंखला की रचना के माध्यम से वे साहित्य जगत में अपने सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक योगदान के साथ उपस्थित हुए हैं। वे ऑडियो शो भी लिखते हैं, जिनका प्रसारण विभिन्न ऑडियो प्लेटफॉर्म्स पर चुका है।
उनकी रचनाएँ “संभावनाओं का शहर” कविता संग्रह एवं “ये वो संजना तो नहीं” उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुईं हैं। वे हिंदी साहित्य की विस्तृत निर्देशिका “हिंदी साहित्यानामा” के संपादक एवं प्रकाशक हैं।
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आजीविका के लिए एन.जी.ओ. के जुड़े हुए हैं
वे आजीविका के लिए एन.जी.ओ. जगत के साथ जुड़े रहने के साथ-साथ वर्षों से सामाजिक-साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। समानता और लोकतन्त्र में गहरी आस्था के कारण उनके लेखन में प्रतिबद्ध जनपक्षधरता स्पष्ट दिखाई देती है। वे माइथोलॉजी के अध्ययन में रुचि रखते हैं।
वर्तमान में लेखन के साथ-साथ एन.जी.ओ. कंसल्टेंसी करते हैं। वे जन सरोकार के मुद्दों के साथ जुड़कर महिला सशक्तिकरण, कला-संस्कृति, साहित्य एवं दक्षिण एशिया शांति विषयों पर कार्यकर्मों के संचालन व समन्वय के क्षेत्र में सक्रिय हैं। साप्ताहिक अखबार “हिंद वॉच” के संपादक होने के साथ-साथ कई सामाजिक, सांस्कृतिक, सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ प्रशिक्षक, मूल्यांकनकर्ता व सलाहकार के रूप में जुडे हुए हैं। वे सामाजिक संस्था ‘न्यू इंडिया मिशन’ के अध्यक्ष, धरती थियेटर के संस्थापक एवं संयोजक और सर्वधर्म समन्वय परिषद के सचिव भी हैं।
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जमशेदपुर: नशे के बढ़ते कारोबार के खिलाफ सामाजिक संस्थानों ने निकाला जागरूकता अभियान
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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