‘चुहाड़ विद्रोह’ के महानायक क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो का 246वां शहादत दिवस मनाया गया
बोड़ाम प्रखण्ड के पाखरिया, माधवपुर, मूकरुडीह, बरियादा एंव चिड़का गांव में आज 5 अप्रैल को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी जन आंदोलन ‘चुहाड़ विद्रोह’ के महानायक क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो का 246वां शहादत दिवस मनाया गया।
झाड़खंड के नायकों की अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ बगावत की चर्चा होती है, तो इस सूची में क्रांतिवीर शहीद रघुनाथ महतो का नाम आता है.
वर्ष 1769 में रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ‘चुहाड़ विद्रोह के दौरान सर्वप्रथम नारा दिया था-
अपना गांव अपना राज,
दूर भगाओ विदेशी राज।
चुहाड़ आंदोलन ने अंग्रजों को ‘नाको चने चबवा’ दिये थे
झाड़खण्डी भाषा खतियान संघर्ष समिति के केंद्रीय महासचिव विश्वनाथ महतो ने रघुनाथ महतो की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शहीद रघुनाथ महतो का जन्म 21 मार्च 1738 को तत्कालीन बंगाल के छोटानागपुर के जंगलमहल (मानभूम) जिला अंतर्गत नीमडीह प्रखंड के एक छोटे से गाव घुंटियाडीह में हुआ था। वर्ष 1769 में रघुनाथ महतो के नेतृत्व में आदिवासियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल, जमीन के बचाव एवं नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए विद्रोह किया, जिसे ‘चुहाड़ विद्रोह’ कहा गया। यह विद्रोह 1769 से 1805 तक चला।
1769 ई. में घुनाथ महतो के नेतृत्व में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका गया
1765 ई. में जब ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा तत्कालीन बंगाल के छोटानागपुर के जंगलमहल जिले में सर्वप्रथम मालगुजारी वसूलना शुरू किया, तब अंग्रेजों के इस शोषण का विरोध शुरू हुआ। क्योंकि लोगों को लगा कि अंग्रेजों द्वारा यह उनकी स्वतंत्रता और उनके जल, जंगल, जमीन को हड़पने तैयारी है। अत: 1769 ई. में आदिवासी मूलवासी समाज के लोगों द्वारा रघुनाथ महतो के नेतृत्व में सबसे पहला विरोध किया गया और ब्रिटिश शासकों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका गया। अंग्रेजों को इसकी कतई आशा नहीं थी। उन्होंने अपने करिंदों (उनके पिट्ठू जमींदारों) से पूछा- ये लोग कौन हैं ? तो पिट्ठू जमींदारों ने इन विद्रोहियों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें ‘चुहाड़’ कहकर संबोधित किया। ऐसे में यह विद्रोह ‘चुहाड़ विद्रोह’ हो गया।
यह विद्रोह कोई जाति विशेष पर केंद्रित नहीं था। इसमें मांझी, कुड़मी, संथाल, भुमिज, मुंडा, हो, कुम्भकार, भुंईया आदि सभी समुदाय के लोग शामिल थे।
घमासान युद्ध में रघुनाथ महतो को भी गोली लगी
रघुनाथ महतो के समर्थक 1773 तक सभी इलाके में फैल चुके थे। चुहाड़ आंदोलन का फैलाव नीमडीह, पातकुम, बड़ाभूम, धालभूम, मेदनीपुर, किंचुग परगना राजनगर, गम्हरिया आदि तक हो गया। उन्होंने अंगरेजों के नाक में दम कर रखा था। 5 अप्रैल 1778 को जब रघुनाथ महतो जंगलों में अपने साथियों के साथ सभा कर रहे थे। सिल्ली प्रखंड के लोटा पहाड़ किनारे अंग्रेजों की रामगढ़ छावनी से हथियार लूटने की योजना को लेकर बैठक चल रही थी। इसी बीच गुप्त सूचना पर अंग्रेजी सेना ने रघुनाथ महतो एवं उनके सहयोगियों को चारों ओर से घेर लिया।
दोनों ओर से काफी देर तक घमासान युद्ध हुआ। रघुनाथ महतो को भी गोली लगी। यहां सैकड़ों विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया गया, रघुनाथ महतो और उनके कई साथी मारे गये।
आज के कार्यक्रम में किशोरी मोहन महतो, हेमंत महतो, गौतम महतो, बृंदावन महतो, लखन महतो, गणेश कुम्भकार, कृष्णा रजक, हिमांशु महतो, मृत्युंजय महतो, बहादुर सहिस, गोपेन महतो, अरुण महतो, तारापद, संतोष महतो, मृत्युंजय दास, शांतिराम महतो, निरंजन महतो, प्रदीप महतो, उत्तम महतो, मनिंद्र महतो, विश्वनाथ, स्वपन, जगरनाथ, रमेश, विशाल, सुखदेव, सार्थक, गणेश, आदि मौजूद थे।
शशांक शेखर विगत 30 वर्षों से पत्रकारिता, आकाशवाणी व सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं साथ ही लघु/फीचर फिल्मों व वृत्त चित्रों के लिए कथा-लेखन का कार्य भी विगत डेढ़ दशकों से कर रहे हैं. मशाल न्यूज़ में पिछले लगभग ढाई वर्षों से कार्यरत हैं.
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