सारे लोक जिसमें समाए हैं. ईश्वर को भी झुकाने की क्षमता है जिसमें. जननी यूं ही नहीं कहा जाता उसे. जो अपने शरीर से शरीर को जन्म देती है, जो जीव को नौ माह गर्भ में धारण कर सारी तकलीफों को सहकर भी अपनी सन्तान की सुरक्षा के लिए हर पल कष्ट झेलकर हँसती, मुस्कराती और खुशियों का अनुभव करती है. और जन्म देकर सम्पूर्णा कहलाती है वो है मां. शिशु को संसार में लाने के बाद उसके जीवन को सजाती, संवारती है. जो एक बिन्दु को पूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करती है वो है मां. उसके लिए एक दिन सुरक्षित कर देने से उसका पद नहीं बढ़ जाता. सन्तान के लिए हर दिन ही मातृ दिवस है.
“मां” एक शब्द नहीं पूरा जहान है
मां तो सदैव ही वन्दन की, अभिनन्दन की अधिकारिणी है. मां एक शब्द नहीं पूरा जहान है. औलाद के लिए उसका संसार है. मां है तो दिल की धड़कने हैं. स्पन्दन है. मां नहीं तो सारा संसार ठहरा हुआ है. वो जीवन की खुशबु है. उसके होने पर संसार की सारी खुशियां झोली में होती हैं वो नहीं तो विरानी ही विरानी है. मां हमें संसार में लाकर ही महान काम नहीं करती वरन् वो हमारे अन्दर संस्कार भरकर हमें जीना सिखाती है. हमारे सिर पर आसमान बनाती है और हमारे पैरों को जमीन देती है. एक धरातल तैयार करती है.
सन्तान के लिए उस ईश्वर से भी बड़ी होती
मां का स्वभाव अपनी सन्तान के लिए सदैव उसके हितों से भरा होता है. अपनी सन्तान के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने में भी वह पीछे नहीं हटती. अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु हम ईश्वर की आराधना करते हैं पर मां सन्तान के लिए उस ईश्वर से भी बड़ी होती है. ईश्वर को पुकारना पड़ता है लेकिन मां अपनी सन्तान की इच्छा उसके भावों को बिन पुकारे भी समझ जाती है. मां को जानने की जरुरत ही नहीं पड़ती. वह सुख-दु:ख में हर पल हर क्षण हमारे साथ रहती है. शरीर से भी और मन से भी. वो ईश्वर तो है ही सच्चा गुरु भी है जो अच्छे संस्कारों को हमारे अन्दर डालती है और सभी चारित्रिक विशेषताओं से हमें सुसज्जित करती है. मां संसार के समस्त गुणों को माला रुप में पिरोकर हमें संस्कारवान बनाती है.
सन्तान की खुशी के लिए अपना अस्तित्व भी दांव पर लगा देती
मातृ-दिवस पर मां की वन्दना या उसके सम्मान में कुछ बोलकर या लिखकर ही इति श्री नहीं हो जाती. हमारा हर दिन, हर पल, उस मां को ही समर्पित होना चाहिए जो हमें इस संसार में लायी है. मां निःस्वार्थ भाव से अपनी सन्तान के लिए अपने जीवन को न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटती. वो सन्तान की खुशी के लिए अपना अस्तित्व भी दांव पर लगा देती है.
सारी-सारी रात जागकर अपनी नींदें कुर्बान कर, लोरियां सुनाकर, थपकियां देकर सुलाने वाली शिशु के घुटनों के बल चलने पर उसके पीछे-पीछे चल पड़ती है. लड़खड़ाने पर खुद गिरकर बच्चों को संभालती है. संभल जाने पर आश्वस्त होकर उसके सुन्दर भविष्य के लिए सपने बुनती है. अपनी सन्तान के सुखद संसार के लिए अपने तन-मन की भी परवाह नहीं करती. मातृ दिवस पर उस मां को कोटि- कोटि नमन है.
कभी कमजोर नहीं पड़ती
इस धरती पर विधाता की अनूठी कृति मां समुद्र की भांति अपने अन्दर असंख्य रत्नों को संजोए हुए है और सभी रत्नों से अपनी सन्तान का दामन भरने की क्षमता भी उसमें है. मां कभी कमजोर नहीं पड़ती है। कठिन से कठिन परिस्थिति में भी शक्ति बनकर साथ रहती है. समान भाव से अपनी सभी सन्तानों से प्रेम करने वाली मां को भी उसके जीवन में सभी सन्तानों का प्यार मिलना चाहिए. हर वो जीव भाग्यशाली है जिसे मां की छत्रछाया मिलती है.
मां के आंचल की निकटता प्राप्त होती है. अन्यथा मां के बिना तो संसार में जीने की कल्पना भी नहीं की जाती. मां अपने बच्चों की हर खुशी का ध्यान रखती है उसके अन्तर की आवाज को भी सुन लेती है. जैसे मां गर्भ में अपने शिशु का ख्याल रखती है ऐसे ही वह जन्म लेने के बाद भी अपनी सन्तान की इच्छा- अनिच्छा के प्रति समर्पित रहती है.
उसका प्यार शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता
अतिश्योक्ति नहीं कि हर जीव जो मां है वह अभूतपूर्व है. उसका प्यार शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है. बुद्धिजीवी मानव मां के संस्कारों से पल्लवित हो कर जब अपने पैरों पर खड़ा होता है तो कभी-कभी उसी मां के मन को चोट पहुंचा देता है, जिसने उसके लिए राह बनायी है. उसी के प्रति उदासीन हो जाता है, जिसने उसकी मंजिलें तय की हैं. कुछ बच्चे मां को सम्मान देना, उसकी कद्र करना भूल जाते हैं. शिक्षित-अशिक्षित दोनों ही वर्ग में कई बार सन्तान मां की वृद्धावस्था में उसका ख्याल नहीं रख पाते जिसकी वह हकदार है. जिस सन्तान के लिए मां ने जिन्दगी लगा दी उसी मां का तिरस्कार करने से बड़ा कोई गुनाह नहीं.
मां की भानावओं की कद्र करें
मां तो सदा से ही सन्तान को अपना लहू पिलाती आयी है. उसके दूध के कर्ज से तो मुक्त हो ही नहीं सकते. मां के लिए मातृदिवस की आवश्यकता ही नहीं फिर भी यदि आठ मई मातृ-दिवस के रुप में मनाया जाता है तो मां की भानावओं की कद्र करें. उसके प्रेम, त्याग, तपस्या, आस्था और विश्वास को कभी चोट ना पहुँचाएं. मां वो निर्झरणी है जिसके स्नेह रुपी निर्मल जल से सिंचित होकर हमारा जीवन पावन होता है. जो अपनी सन्तान के लिए ही जीवन समर्पित करती है वह मां अनमोल औषधि है.
सृजनकर्ता है. सम्पूर्ण सृष्टि है. इस छोटे से शब्द में सारी दुनिया समायी हुई है. मां है तो हम हैं. मां नहीं होती तो हम भी नहीं होते. उस मां को कोटि-कोटि नमन है. मां और मातृ भूमि का सदैव आदर करना चाहिए. कहा भी गया है l
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